Written by – Sakshi Srivastava
उत्तर प्रदेश के मदरसा कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। Chief Justice of India (CJI) की अध्यक्षता वाली बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए यूपी सरकार के मदरसा शिक्षा व्यवस्था को वैध ठहराया है। इस फैसले के तहत, राज्य सरकार द्वारा मदरसों के पंजीकरण और मान्यता देने के लिए लागू किए गए नियमों को सही ठहराया गया है, जो पहले हाईकोर्ट द्वारा खारिज कर दिए गए थे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2022 में यह कहा था कि उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश से मदरसों का पंजीकरण करना या उनका निरीक्षण करना संविधान के अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता) का उल्लंघन हो सकता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर विपरीत निर्णय लिया। इस फैसले से अब उत्तर प्रदेश के सभी मदरसों को राज्य सरकार के नियमों के तहत पंजीकरण कराना होगा और उनकी मान्यता की प्रक्रिया पूरी करनी होगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का 22 मार्च का फैसला, जिसमें उसने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मदरसों में शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्रों को नियमित स्कूलों में दाखिला देने का आदेश दिया था, धार्मिक और संवैधानिक विवाद का कारण बना। कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि मदरसा शिक्षा संविधान के धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है। इस फैसले के खिलाफ 5 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने सीजेआई की अध्यक्षता में एक पीठ गठित की और हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी, जिससे मदरसा छात्रों को राहत मिली। इस निर्णय ने सरकार और न्यायपालिका के बीच संवैधानिक दृष्टिकोण पर बहस को और भी तेज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने ‘उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004’ की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए यह निर्णय दिया कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता। कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए कहा कि यह कानून संविधान के मूल ढांचे और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ नहीं है। उच्च न्यायालय ने जो यह निष्कर्ष निकाला था कि मदरसा शिक्षा से संबंधित यह कानून धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करता है, सुप्रीम कोर्ट ने उसे गलत ठहराया और मदरसा शिक्षा के अधिकार को संविधान के तहत उचित ठहराया।
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 22 मार्च के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें उत्तर प्रदेश मदरसा अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश मदरसा अधिनियम केवल इस हद तक असंवैधानिक है कि यह ‘फाजिल’ और ‘कामिल’ जैसी मदरसा आधारित डिग्रियों को उच्च शिक्षा के रूप में मान्यता देता है, जो कि यूजीसी (यूनीवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन) अधिनियम के खिलाफ है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम की मुख्य विधायी योजना मदरसों में दी जा रही शिक्षा के स्तर को मानकीकरण करने के लिए है, और यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता। इस प्रकार, कोर्ट ने मदरसा शिक्षा के सुधार की दिशा में कदम उठाने के उद्देश्य को मान्यता दी, लेकिन उच्च शिक्षा के संदर्भ में कुछ सुधार की आवश्यकता जताई।
आखिर क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट का फैसला, जिसमें उसने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 22 मार्च के फैसले को खारिज कर दिया, कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर आधारित था:
- उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम की वैधता: कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा और यह स्पष्ट किया कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता।
- फाजिल और कामिल डिग्रियों पर सवाल: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मदरसा शिक्षा बोर्ड द्वारा प्रदान की जा रही ‘फाजिल’ और ‘कामिल’ डिग्रियां उच्च शिक्षा की डिग्री के रूप में यूजीसी (यूनीवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन) अधिनियम के अनुरूप नहीं हैं, और इस संबंध में सुधार की आवश्यकता है। इसका मतलब यह था कि मदरसों में दी जा रही शिक्षा को मान्यता देने के लिए इन डिग्रियों को यूजीसी के मानकों के तहत लाना होगा।
- मदरसा शिक्षा का मानकीकरण: कोर्ट ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम की विधायी योजना मदरसों में शिक्षा के स्तर को मानकीकरण करना है, ताकि मदरसों में दी जा रही शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर हो और उसे राज्य शिक्षा प्रणाली से जोड़ने में मदद मिल सके।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फैसले को खारिज कर दिया था, जिसमें मदरसा अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया गया था। कोर्ट ने माना कि उच्च न्यायालय ने गलत तरीके से यह निर्णय लिया था कि मदरसा अधिनियम धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट का निर्णय एक तरह से मदरसा शिक्षा के सुधार की दिशा में था।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मदरसा छात्रों और उत्तर प्रदेश सरकार को राहत मिली।
- मदरसा छात्रों को राहत: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज करते हुए उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। इससे 17 लाख से अधिक मदरसा छात्रों को राहत मिली, क्योंकि कोर्ट ने मदरसा शिक्षा के अस्तित्व को संरक्षित किया और उसकी वैधता को स्वीकार किया।
- उत्तर प्रदेश सरकार को राहत: सुप्रीम कोर्ट ने मदरसा शिक्षा को एक वैध और मानकीकृत ढंग से संचालित करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के कदम को सही ठहराया। इससे राज्य सरकार को यह अधिकार मिला कि वह मदरसों में शिक्षा के स्तर को सुधारने और उसे अन्य शैक्षिक संस्थानों के साथ तालमेल बैठाने के लिए काम कर सकती है, बिना संविधान के किसी सिद्धांत का उल्लंघन किए।
इस फैसले ने एक तरफ मदरसा शिक्षा को मान्यता दी, वहीं दूसरी तरफ इसे सुधारने और उसे उच्च शिक्षा के मानकों से जोड़ने की दिशा में कदम उठाने का मार्ग भी प्रशस्त किया।
यह था पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने 5 नवंबर 2024 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें उत्तर प्रदेश मदरसा कानून को असंवैधानिक करार दिया गया था। कोर्ट ने इस कानून को पूरी तरह से वैध और संवैधानिक मान्यता प्रदान की, जिससे मदरसा शिक्षा को एक कानूनी ढांचे के तहत चलाए जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 22 अक्टूबर 2024 को हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की थी और उसके बाद फैसला सुरक्षित रखा था। अब इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को संवैधानिक रूप से सही और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के अनुरूप ठहराया।
इस फैसले से मदरसा छात्रों और उत्तर प्रदेश सरकार को राहत मिली है, क्योंकि अब राज्य सरकार को मदरसों में शिक्षा के मानकीकरण और सुधार की दिशा में काम करने की अनुमति मिल गई है, साथ ही मदरसा शिक्षा को वैध रूप से संचालित करने का रास्ता साफ हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जुड़े विभिन्न पक्षों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दीं:
- मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़:
- सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। कोर्ट ने यह कहा कि मदरसा शिक्षा को असंवैधानिक करार देना गलत था, और यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ नहीं है।
- सुप्रीम कोर्ट ने:
- कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि मदरसा शिक्षा को मानकीकरण के तहत लाने के लिए यह अधिनियम बनाया गया था और यह संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि मदरसों द्वारा दी जाने वाली ‘फाजिल’ और ‘कामिल’ डिग्रियों को यूजीसी के मानकों से मेल नहीं खातीं, इस पर सुधार की आवश्यकता है।
- उत्तर प्रदेश सरकार:
- उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। सरकार ने इसे अपने मदरसा शिक्षा सुधार योजना के तहत एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा, जिससे मदरसों में शिक्षा का स्तर सुधर सकता है और उसे सरकारी शिक्षा प्रणाली से जोड़ा जा सकता है।
- मदरसा शिक्षा से जुड़ी संस्थाएं और छात्र:
- मदरसा शिक्षा से जुड़े संगठनों और छात्रों ने इस फैसले को एक बड़ी राहत के रूप में लिया। उन्हें उम्मीद है कि अब मदरसा शिक्षा को अधिक मान्यता मिलेगी और इसका स्तर सुधारने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे।