Written by- Sakshi Srivastava
दिल्ली के वरिष्ठ नेता और आम आदमी पार्टी (AAP) के पूर्व विधायक कैलाश गहलोत ने हाल ही में भारतीय जनता पार्टी (BJP) जॉइन की। उन्होंने इस फैसले को लेकर मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि यह निर्णय किसी भी बाहरी दबाव से प्रभावित होकर नहीं लिया गया। गहलोत ने स्पष्ट किया कि उनका यह कदम खुद के विचार और विश्लेषण पर आधारित था, न कि किसी पार्टी या व्यक्ति के दबाव में।
नजफगढ़ से विधायक कैलाश गहलोत सोमवार को भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) में शामिल हो गए। भाजपा मुख्यालय में केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई। इस मौके पर दिल्ली भाजपा के कई वरिष्ठ नेता भी मौजूद थे। कैलाश गहलोत का यह कदम दिल्ली की राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है, और यह माना जा रहा है कि उनका भाजपा में शामिल होना दिल्ली के चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकता है।
कैलाश गहलोत ने बताया कि आम आदमी पार्टी छोड़ना उनके लिए आसान नहीं था, क्योंकि वह कई सालों तक इस पार्टी के साथ जुड़े रहे और उसमें कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाई। लेकिन अब उनका मानना है कि बीजेपी ही दिल्ली और देश के लिए सही दिशा में काम कर रही है।
कैलाश गहलोत ने भाजपा में शामिल होने के बाद अपनी बात रखते हुए कहा कि उन्होंने कभी किसी के दबाव में आकर कोई निर्णय नहीं लिया। उन्होंने उन अफवाहों को नकारा, जिनमें यह कहा जा रहा था कि उनका यह कदम सीबीआई या किसी अन्य दबाव के कारण उठाया गया है। गहलोत ने स्पष्ट किया कि यह उनका व्यक्तिगत निर्णय था और यह कोई एक दिन में लिया गया निर्णय नहीं है।
उन्होंने आगे कहा कि अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद लाखों लोग एक विचारधारा से जुड़े थे, और उनका राजनीति में आने का मकसद हमेशा लोगों की सेवा करना रहा है। लेकिन, जब उन्हें आम आदमी पार्टी (आप) के अंदर के बदलाव और मूल्यों के पतन का सामना हुआ, तो वह हैरान रह गए। यह बयान इस बात को दर्शाता है कि गहलोत को पार्टी के भीतर उठ रही समस्याओं और दिशा से निराशा हुई, जिसके कारण उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया।
कैलाश गहलोत ने अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए कहा कि यह सिर्फ उनका व्यक्तिगत विचार नहीं है, बल्कि हजारों आम आदमी पार्टी (आप) के कार्यकर्ता भी इसी तरह की सोच रखते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि आम आदमी पार्टी अब “कुछ खास आदमी” बन गई है, और पार्टी में आम लोगों की आवाज दबने लगी है। गहलोत ने यह भी कहा कि अगर कोई सरकार सिर्फ केंद्र सरकार से लड़ाई में व्यस्त रहेगी, तो दिल्ली का विकास कैसे होगा?
उन्होंने अपनी मंत्री के रूप में किए गए काम को भी संदर्भित करते हुए कहा कि जितना भी समय उन्हें मंत्री के रूप में मिला, उन्होंने हमेशा अपनी पूरी कोशिश की कि वह दिल्ली के लिए बेहतर काम कर सकें। उनका यह बयान दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी की दिशा और नेतृत्व को लेकर बढ़ती निराशा को दर्शाता है।
कैलाश गहलोत ने भाजपा में शामिल होने के अपने निर्णय को और स्पष्ट करते हुए कहा कि उन्होंने यह कदम दिल्ली के विकास में योगदान देने के लिए उठाया है। उन्होंने कहा कि अब उनका लक्ष्य दिल्ली के विकास के लिए भाजपा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करना है। गहलोत ने बताया कि उन्होंने अपनी प्रैक्टिस छोड़कर सार्वजनिक सेवा शुरू की और भविष्य में भी यही करते रहेंगे।
उन्होंने आम आदमी पार्टी (आप) को छोड़ने के निर्णय को आसान नहीं बताया और कहा कि पार्टी में अब स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। गहलोत के मुताबिक, आप में आत्मविश्वास की कमी हो गई है और पार्टी में अब वह उत्साह नहीं रहा जो पहले हुआ करता था। इसके अलावा, गहलोत ने यह भी कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों से प्रेरित हैं और उन्हीं नीतियों को लागू करने के लिए भाजपा में शामिल हुए हैं।
उनका यह बयान दिल्ली की राजनीति में बदलाव की ओर इशारा करता है, जिसमें भाजपा की नीतियों और नेतृत्व को लेकर उनका समर्थन स्पष्ट है।
कैलाश गहलोत ने रविवार को आम आदमी पार्टी (आप) की प्राथमिक सदस्यता और मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। गहलोत 19 फरवरी 2015 को पहली बार दिल्ली सरकार में परिवहन मंत्री के रूप में शपथ ली थी और इसके बाद वह लगातार तीन बार मंत्री बनाए गए। इस्तीफा देने से पहले, उन्होंने आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को पत्र लिखकर पार्टी की स्थिति पर गंभीर आरोप लगाए थे।
गहलोत ने पत्र में पार्टी के भीतर बढ़ती निराशा, संगठन की कमजोर होती स्थिति और उसकी नीतियों पर सवाल उठाए। उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी में अब वह नेतृत्व नहीं रहा जो पहले हुआ करता था, और यह उनके लिए निराशाजनक था। उनका इस्तीफा इस बात को दर्शाता है कि गहलोत को आप की कार्यशैली और दिशा में बदलाव की आवश्यकता महसूस हो रही थी, और उन्होंने भाजपा में शामिल होकर अपनी राजनीतिक यात्रा को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया।
दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने कैलाश गहलोत का इस्तीफा स्वीकार कर लिया, जो दिल्ली सरकार में परिवहन मंत्री थे। इस दौरान आम आदमी पार्टी (आप) के सूत्रों का कहना था कि कैलाश गहलोत के खिलाफ ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) और इनकम टैक्स के कई मामले चल रहे थे, और उनके ऊपर कई बार इन एजेंसियों ने छापेमारी भी की थी। इन आरोपों के अनुसार, गहलोत को भाजपा में शामिल होने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा था, और यह माना जा रहा था कि वह छापेमारी से बचने के लिए भाजपा में शामिल हुए हैं।
आप के नेताओं ने यह भी आरोप लगाया कि यह भाजपा का एक “गंदा षड्यंत्र” है। उनका कहना था कि भाजपा दिल्ली चुनावों को ईडी और सीबीआई जैसे केंद्रीय एजेंसियों के बल पर जीतने की कोशिश कर रही है।
खुद आप मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना संभालेंगी गहलोत के विभाग।
कैलाश गहलोत के इस्तीफे के बाद, उनके सभी विभाग मुख्यमंत्री आतिशी को सौंप दिए गए हैं। सरकार के सूत्रों के अनुसार, अब गहलोत के परिवहन मंत्री के तौर पर जो भी जिम्मेदारियां थीं, वे मुख्यमंत्री आतिशी के पास रहेंगी। इस बदलाव के बाद, मुख्यमंत्री आतिशी ने दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना को इस संबंध में प्रस्ताव भेज दिया है, ताकि औपचारिक रूप से विभागों का हस्तांतरण किया जा सके।
यह कदम दिल्ली सरकार के भीतर प्रशासनिक बदलाव को दर्शाता है, जहां गहलोत के इस्तीफे के बाद मुख्यमंत्री को अतिरिक्त जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं। इस बदलाव से दिल्ली सरकार की कार्यप्रणाली और संचालन पर असर पड़ सकता है, खासकर उस विभाग में जो गहलोत के पास था।
आम आदमी पार्टी ने किया बड़ा दावा।
आम आदमी पार्टी (आप) ने दावा किया है कि भाजपा के कई बड़े नेता सोमवार को उनकी पार्टी में शामिल होंगे। पार्टी के सूत्रों के अनुसार, आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल इस संबंध में सोमवार को एक प्रेस वार्ता करेंगे। यह प्रेस वार्ता दोपहर दो बजे आयोजित होगी, जिसमें केजरीवाल भाजपा के नेताओं के आप में शामिल होने की घोषणा करेंगे।
इस कदम को आप दिल्ली और अन्य राज्यों में भाजपा के खिलाफ अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने की एक कोशिश के रूप में देख रही है। यह घटना दिल्ली की राजनीति में एक और महत्वपूर्ण मोड़ को दर्शाती है, जहां दोनों प्रमुख पार्टियां एक-दूसरे को चुनौती दे रही हैं।
गहलोत ने बीजेपी में शामिल होने के बाद कहा कि उनका उद्देश्य दिल्ली के लोगों की सेवा करना और उन्हें विकास की नई दिशा देना है।
यह कदम भारतीय राजनीति में एक और बदलाव की ओर इशारा करता है, जहां नेता अपनी राजनीतिक विचारधारा और पार्टी से परे, व्यक्तिगत निर्णयों के आधार पर पार्टियां बदल रहे हैं।