Written by- Sakshi Srivastava
मुरादाबाद की कुंदरकी विधानसभा उपचुनाव में सपा और भाजपा के बीच प्रतिष्ठा की एक बड़ी लड़ाई छिड़ी हुई है, जिसमें दोनों पार्टियों के लिए अपने राजनीतिक वर्चस्व को कायम रखना महत्वपूर्ण है। भाजपा के लिए यह उपचुनाव खासा चुनौतीपूर्ण है क्योंकि सपा की लंबे समय से कुंदरकी सीट पर पकड़ बनी हुई है, और भाजपा इस पर कब्जा करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। इस उपचुनाव में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह समेत सरकार के चार मंत्री और सपा के आठ जनप्रतिनिधियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।
कुंदरकी सीट पर जीत-हार का फैसला इन 18 जनप्रतिनिधियों की राजनीतिक भविष्यवाणी को प्रभावित कर सकता है। अगर भाजपा यहां जीतने में सफल होती है, तो यह सपा के वर्चस्व को चुनौती देने और भाजपा के लिए एक अहम राजनीतिक मोर्चा साबित हो सकता है। वहीं, सपा के लिए यह अपनी पकड़ बनाए रखने और उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका है।
मुरादाबाद जिले में छह विधानसभा क्षेत्र हैं, और इन क्षेत्रों में से 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी। भाजपा केवल मुरादाबाद नगर सीट पर ही जीत सकी थी, जबकि 2017 के चुनाव में भाजपा के पास दो सीटें थीं। यह दिखाता है कि सपा का इस जिले में मजबूत वर्चस्व है।
कुंदरकी विधानसभा सीट पर सपा का खासा दबदबा रहा है, जहां पिछले छह चुनावों (1996 से 2022 तक) में सपा ने चार बार जीत हासिल की, जबकि बसपा दो बार विजयी रही। इस सीट पर वर्तमान में चुनाव की स्थिति खास है, क्योंकि विधायक जियाउर्रहमान बर्क के सांसद बनने के बाद यह सीट रिक्त हो गई थी। 20 नवंबर को होने वाले मतदान में सपा और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला होने की संभावना है। भाजपा इस सीट को जीतने के लिए पूरी ताकत लगा रही है, जबकि सपा के लिए अपनी परंपरागत सीट पर अपना वर्चस्व बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होगा।
यह उपचुनाव न केवल कुंदरकी सीट के लिए, बल्कि जिले की सियासी दिशा को भी प्रभावित कर सकता है, क्योंकि इसकी जीत-हार सपा और भाजपा दोनों के लिए बड़े राजनीतिक संदेश का प्रतीक बन सकती है।
मुरादाबाद गृह जनपद होने के कारण भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं एमएलसी भूपेंद्र सिंह के लिए कुंदरकी सीट पर विशेष ध्यान केंद्रित करना स्वाभाविक है। भूपेंद्र सिंह इस सीट को भाजपा के लिए जीतने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं, ताकि जिले में पार्टी का वर्चस्व मजबूत किया जा सके।
इसके अलावा, मुरादाबाद जिले में भाजपा के पास जिला पंचायत अध्यक्ष, एक विधायक और तीन विधान परिषद सदस्य भी हैं, जो पार्टी के उम्मीदवार रामवीर सिंह के पक्ष में चुनाव प्रचार में सक्रिय रूप से जुटे हुए हैं। यह भाजपा के लिए एक मजबूत संसाधन साबित हो रहा है, क्योंकि ये जनप्रतिनिधि अपने-अपने क्षेत्रों में पार्टी के समर्थन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
भा.ज.पा. के नेताओं और कार्यकर्ताओं का यह संयुक्त प्रयास कुंदरकी सीट पर पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रहा है, जो सपा के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इस सियासी संघर्ष में इन सभी कारकों का बड़ा असर देखने को मिल सकता है।
दूसरी ओर, सपा भी कुंदरकी सीट पर अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। इसके लिए सपा ने जिले के आठ प्रमुख जनप्रतिनिधियों को जिम्मेदारियां सौंप दी हैं, जो पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में चुनाव प्रचार में सक्रिय रूप से जुटे हुए हैं।
सपा का ये नेतृत्व समूह चुनावी रणनीति को धरातल पर उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। सपा के ये जनप्रतिनिधि स्थानीय स्तर पर पार्टी के संदेश को पहुंचाने, अपने-अपने क्षेत्रों में वोट बैंक को मजबूत करने और पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए काम कर रहे हैं।
इस तरह से, भाजपा और सपा दोनों के पास अपनी-अपनी मजबूत टीम है, जो कुंदरकी सीट पर अपनी पार्टी के वर्चस्व को कायम रखने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। यह चुनावी मुकाबला न केवल कुंदरकी की सीट के लिए, बल्कि दोनों दलों के लिए राजनीतिक प्रतिष्ठा की भी महत्वपूर्ण कसौटी बन गया है।
सपा ने कोई कसर नहीं छोड़ी।
सपा ने कुंदरकी उपचुनाव जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकी है और इसके लिए आठ जनप्रतिनिधियों को चुनाव मैदान में उतारा है। इनमें चार सांसद (एक राज्यसभा सांसद) और चार विधायक शामिल हैं, जो पार्टी के लिए कुंदरकी सीट पर जीत सुनिश्चित करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इन नेताओं पर यह भारी दबाव है कि वे पार्टी को लगातार चौथी बार इस सीट पर जीत दिलाएं, जिससे सपा का वर्चस्व कायम रहे।
इस उपचुनाव में अगर सपा जीतने में सफल होती है, तो प्रत्याशी हाजी रिजवान की यह चौथी जीत होगी, जो उनके और पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी। यह सपा के लिए अपनी पकड़ को और मजबूत करने का मौका होगा, जबकि भाजपा इसे चुनौती देने के लिए पूरी ताकत लगा रही है। इस तरह, कुंदरकी सीट पर सपा और भाजपा के बीच संघर्ष अब एक बड़ी सियासी प्रतिस्पर्धा बन चुका है, जिसका नतीजा दोनों दलों के लिए महत्वपूर्ण होगा।
कुंदरकी विधानसभा सीट की सियासत का दायरा केवल मुरादाबाद जिले तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दिल्ली और लखनऊ दोनों की सियासत से भी जुड़ी हुई है। यह सीट मुरादाबाद जिले में तो स्थित है, लेकिन लोकसभा स्तर पर इसका संबंध जिले से बाहर भी है। दरअसल, कुंदरकी विधानसभा सीट लोकसभा क्षेत्र के लिहाज से संभल से जुड़ी हुई है।
संभल लोकसभा क्षेत्र से वर्तमान में डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क के पोते, जियाउर्रहमान बर्क सांसद हैं। जियाउर्रहमान बर्क ने अपनी सियासी यात्रा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाए हैं, और उनकी पहचान अब क्षेत्रीय राजनीति के एक अहम चेहरे के रूप में बनने लगी है। कुंदरकी विधानसभा सीट का लोकसभा क्षेत्र बदलना इसे एक दिलचस्प सियासी परिपेक्ष्य में डालता है, क्योंकि यहां की जीत-हार केवल स्थानीय राजनीति पर ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी असर डाल सकती है।
यहां पर दिए गए नेताओं की सूची में शामिल कुछ प्रमुख भाजपा नेता इस प्रकार हैं:
- भूपेंद्र चौधरी – प्रदेश अध्यक्ष और एमएलसी, पार्टी की रणनीति बनाने और चुनावी प्रचार में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।
- सत्यपाल सैनी – प्रदेश उपाध्यक्ष और एमएलसी, पार्टी के लिए सियासी माहौल तैयार करने में अहम भूमिका।
- जसवंत सैनी, धर्मपाल सिंह, जेपीएस राठौर, गुलाब देवी – ये सभी मंत्री हैं और कुंदरकी उपचुनाव में भाजपा के उम्मीदवार के पक्ष में चुनाव प्रचार में सक्रिय हैं।
- रितेश गुप्ता – मुरादाबाद नगर के विधायक, जो स्थानीय स्तर पर भाजपा का समर्थन जुटाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
- डॉ. शैफाली सिंह – जिला पंचायत अध्यक्ष, जो जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा के पक्ष में समर्थन जुटाने में सक्रिय हैं।
- डॉ. जयपाल सिंह व्यस्त और गोपाल अंजान – दोनों एमएलसी, जो पार्टी के लिए चुनावी रणनीतियों और प्रचार में योगदान दे रहे हैं।
यह सभी नेता और कार्यकर्ता भाजपा की ओर से कुंदरकी सीट पर अपनी पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।
यहां पर सपा के प्रमुख नेता और जनप्रतिनिधियों की सूची है:
- रुचिवीरा – सांसद, मुरादाबाद, जो पार्टी के लिए मुरादाबाद क्षेत्र में समर्थन जुटाने में जुटे हैं।
- जियाउर्रहमान बर्क – सांसद, संभल, जिनके परिवार का सपा से लंबा जुड़ाव है और वे कुंदरकी उपचुनाव में पार्टी के लिए सियासी ताकत बना रहे हैं।
- जावेद अली – राज्यसभा सांसद, जो सपा के राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव और प्रचार में भाग ले रहे हैं।
- आदित्य यादव – सांसद, बदायूं, जो पार्टी के लिए जनसभाओं और प्रचार में सक्रिय रूप से शामिल हैं।
- कमाल अख्तर – विधायक, कांठ, जो अपनी विधानसभा क्षेत्र से पार्टी के लिए समर्थन जुटाने का काम कर रहे हैं।
- नवाबजान – विधायक, ठाकुरद्वारा, जो क्षेत्रीय प्रचार और सपा की स्थिति को मजबूत करने में मदद कर रहे हैं।
- मोहम्मद फहीम – विधायक, बिलारी, जो कुंदरकी सीट पर सपा के समर्थन को बढ़ाने के लिए सक्रिय हैं।
- हाजी नासिर कुरैशी – विधायक, मुरादाबाद देहात, जो पार्टी के लिए स्थानीय स्तर पर रणनीति और प्रचार का हिस्सा हैं।
यह सभी नेता और जनप्रतिनिधि कुंदरकी उपचुनाव में सपा के उम्मीदवार हाजी रिजवान की जीत सुनिश्चित करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं।
कुंदरकी उपचुनाव में उम्मीदवारों को अपने ही दल के भीतरघात से जूझना पड़ रहा है, जो चुनावी रणनीति को और भी चुनौतीपूर्ण बना रहा है। जैसे-जैसे मतदान की तारीख करीब आ रही है, वैसे-वैसे विरोध और असंतोष खुलकर सामने आने लगे हैं। पार्टी के भीतर के कुछ नेता या कार्यकर्ता टिकट वितरण को लेकर नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं, जिससे सियासी माहौल और गर्म हो गया है।
इस तरह के भीतरघात से निपटने के लिए उम्मीदवार अपने भरोसेमंद सिपाहसलारों से लगातार संपर्क में हैं और उन्हें व्हाट्सएप कॉल के जरिए दिशा-निर्देश दे रहे हैं। यह डिजिटल माध्यम अब चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा बन गया है, जहां उम्मीदवार अपनी टीम के साथ त्वरित और प्रभावी संवाद स्थापित कर रहे हैं। अंदरूनी विवादों को सुलझाने के लिए उम्मीदवार अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं ताकि चुनावी मैदान में एकजुटता बनाए रखी जा सके और विरोधी दल को किसी प्रकार की छवि को नुकसान पहुँचाने का मौका न मिले।
कुंदरकी उपचुनाव में सियासी रण बहुत ही पेचीदा हो चुका है, खासकर जब भीतरघात और विश्वासघात के मुद्दे सामने आ रहे हैं। प्रत्याशियों का भरोसा जीतने के लिए उनके अपने ही सिपाहसलार अब नेता जी की चुगली करने में पीछे नहीं हट रहे हैं। ये सिपाहसलार पार्टी के भीतर चल रहे असंतोष और विरोध को खुलकर सामने लाने में लगे हैं, जिससे उम्मीदवारों को और भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
वहीं, जो उम्मीदवार खुद को भीतरघात का शिकार पा रहे हैं, वे शांत नहीं बैठने वाले हैं। चुनाव प्रचार में प्रदेश के बड़े नेता और पदाधिकारी जब क्षेत्र में आते हैं, तो ये उम्मीदवार उनके सामने अपनी शिकायतें रख रहे हैं, और अपनी बातों को प्रमाणित करने के लिए सबूत भी पेश कर रहे हैं। व्हाट्सएप पर इन भीतरघाती गतिविधियों की सूचनाएं भेजी जा रही हैं, ताकि प्रदेश नेतृत्व तक इन शिकायतों को जल्दी से पहुंचाया जा सके।