“52 इमली” (52 Imli) की घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी एक प्रसिद्ध और ऐतिहासिक घटना है, जो मध्य प्रदेश के Neemuch जिले के Mandsaur क्षेत्र में स्थित 52 इमली स्थल से जुड़ी है। यह स्थान आज़ादी के पहले ब्रिटिश शासन के खिलाफ किए गए संघर्षों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
1857 की पहली भारतीय स्वतंत्रता क्रांति के दौरान (जिसे सिपाही विद्रोह भी कहा जाता है), मन्दसौर और आसपास के क्षेत्र में भी विद्रोह हुआ था। उस समय अंग्रेजी हुकूमत ने कई स्वतंत्रता सेनानियों को पकड़ा और नीमच छावनी से लाकर मन्दसौर के निकट एक स्थान पर, जहाँ 52 इमली के पेड़ थे, उन्हें फांसी दी गई।
इस घटना की तारीख स्पष्ट रूप से इतिहास में दर्ज नहीं है, परन्तु यह माना जाता है कि यह घटना 1857 के विद्रोह के बाद, विशेषकर 1858 के आस-पास, घटी थी जब अंग्रेज विद्रोहियों को पकड़कर सजा दे रहे थे।
पकड़े गए 52 स्वतंत्रता सेनानियों को एक-एक करके 52 इमली के पेड़ों से फांसी पर लटकाया गया।
उस समय अंग्रेजों ने इसे दूसरों के लिए डर का प्रतीक बनाने के उद्देश्य से सार्वजनिक रूप से किया था।
यह स्थान आज़ादी के वीर शहीदों की स्मृति में एक स्मारक स्थल के रूप में संरक्षित है।
वहाँ एक शिलालेख और स्मारक बनाया गया है, जो इस वीरता की गाथा को याद दिलाता है।
“बावनी इमली” (या 52 इमली) उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के खजुहा कस्बे में स्थित एक ऐतिहासिक स्थल है, जहाँ 28 अप्रैल 1858 को अंग्रेजों ने स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर जोधा सिंह अटैया और उनके 51 साथियों को एक इमली के पेड़ पर फांसी दी थी। यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और दर्दनाक अध्याय के रूप में दर्ज है।
इस ऐतिहासिक स्थल पर एक स्मारक बनाया गया है, जिसमें तीन स्तंभ हैं। इन स्तंभों पर उन सभी 52 शहीदों के नाम और उनके पते अंकित हैं, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी हालाँकि, इन नामों की पूरी सूची ऑनलाइन उपलब्ध नहीं है, लेकिन यदि आप फतेहपुर जिले के खजुहा स्थित “बावनी इमली” स्मारक स्थल पर जाते हैं, तो वहाँ इन नामों को पढ़ सकते हैं।
स्मारक स्थल पर ठाकुर जोधा सिंह अटैया की एक विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है, जो उनकी वीरता और बलिदान की याद दिलाती है।
यह स्थल स्वतंत्रता संग्राम में शहीद हुए 52 क्रांतिकारियों की स्मृति में बनाया गया है और आज भी लोगों को उनके बलिदान की गाथा सुनाता है।