Written by – Sakshi Srivastava
आज हम बात करेंगे हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूरी पर स्थित सम्मू गांव की एक छोटे से गांव में हर साल दिवाली के समय एक अलग ही माहौल होता है। यहां के लोग इस खास पर्व को नहीं मनाते। इसकी पीछे एक गहरी वजह है, जो उनकी संस्कृति और परंपराओं से जुड़ी हुई है।
परंपरा का महत्व
इस गांव के लोगों का मानना है कि दिवाली के समय, जब सभी लोग दीप जलाकर खुशियां मनाते हैं, तब वे अपने पूर्वजों को याद करते हैं। यहां के लोग दिवाली के दिन अपने गांव में एक खास रस्म निभाते हैं। वे इस दिन अपने खोए हुए रिश्तेदारों को याद करते हैं और उनके लिए शोक मनाते हैं।
गांव की अनोखी पहचान
गांव की इस परंपरा ने उसे एक अलग पहचान दी है। यहां के लोग एकजुट होकर अपने पूर्वजों की याद में दीप जलाने के बजाय, उनके लिए श्रद्धांजलि देते हैं। यह एक ऐसा समय होता है जब गांव के लोग मिलकर अपने दुख साझा करते हैं और एक-दूसरे का सहारा बनते हैं।
एक दुखद घटना: दीपावली और सती प्रथा की कहानी
इस गांव में दीपावली का पर्व एक दुखद घटना से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि दीपावली के दिन, गांव की एक महिला अपने पति के साथ सती हो गई थी। यह महिला अपने मायके जाने के लिए निकली थी, जबकि उसका पति राजा के दरबार में सैनिक था।जैसे ही महिला गांव से कुछ दूर पहुंची, उसे यह दुखद समाचार मिला कि उसके पति की मृत्यु हो गई है। गांव के लोग उसके पति का शव लेकर आ रहे थे। इस घटना ने गांव में गहरी छाप छोड़ी और महिला ने अपने पति के प्रति श्रद्धांजलि देते हुए सती होने का निर्णय लिया।
युवा पीढ़ी निभा रही बुजुर्गों की परम्परा।
इस गांव की कहानी एक दुखद घटना से शुरू होती है, जब एक गर्भवती महिला अपने पति की मौत का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई और उसने अपने पति के साथ सती होने का निर्णय लिया। जाते-जाते उसने गांववालों को यह श्राप दिया कि इस गांव के लोग कभी भी दीपावली का त्यौहार नहीं मना पाएंगे।
श्राप का प्रभाव
उस दिन से लेकर आज तक, गांव में दीपावली का पर्व नहीं मनाया जाता। लोग केवल उस महिला की सती की मूर्ति की पूजा करते हैं, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिले। यह परंपरा गांव के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गई है।
युवा पीढ़ी की सोच
गांव के युवकों का मानना है कि वे बुजुर्गों की परंपरा का पालन कर रहे हैं। उनका यह मानना है कि इस श्राप का सम्मान करना और दिवाली न मनाना उनके लिए आवश्यक है। इस प्रकार, गांव की यह अनोखी परंपरा आज भी कायम है, जो उन्हें एकजुट रखती है और उनकी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखती है।