Written by– Sakshi Srivastava
कुंभ मेला और छठ पूजा की तरह, अब दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश तक सूर्योदय से पहले श्रद्धालु सूर्य देव को अर्घ्य देने की तैयारी में जुटे हैं। इस समय विशेष रूप से गंगा, यमुना, और अन्य नदियों के घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ने वाली है। लोग दिनभर के उपवासी रहते हैं और सूर्यास्त के समय पानी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
गंगा घाटों पर इस समय पूजा के लिए विशेष व्यवस्थाएं की जा रही हैं, ताकि श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो। कई स्थानों पर अस्थायी पूजा स्थल बनाए गए हैं और घाटों पर साफ-सफाई की जा रही है। दिल्ली और उत्तर प्रदेश में छठ पूजा के मौके पर यह दृश्य हर साल देखा जाता है, जहां लाखों लोग सूर्य देव की उपासना करते हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, छठ पूजा में सूर्य देव को अर्घ्य देना सेहत, समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व श्रद्धा और विश्वास का पर्व है, जो समाज के विभिन्न वर्गों को एक साथ जोड़ता है।
छठ पूजा भारत के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जिसे बहुत श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन सूर्य देवता को अर्घ्य देने के लिए व्रति सुबह और शाम नदी किनारे या कृत्रिम घाटों पर एकत्र होते हैं। खासकर उत्तर भारत में, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहार में यह पर्व बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है।
“कांचे ही बांसा के बहंगिया” जैसे पारंपरिक गीतों के साथ इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि ये गीत न केवल धार्मिक आस्था को प्रकट करते हैं, बल्कि लोक कला और संस्कृति की भी अभिव्यक्ति करते हैं। व्रति सूर्योदय से पहले नदी में स्नान कर सूर्य को अर्घ्य देते हैं, और फिर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही पर्व का समापन होता है।
यह पर्व विशेष रूप से परिवार, समाज और आस्था के बीच गहरे संबंधों को सुदृढ़ करने का अवसर भी होता है।
दिल्ली के घाटों पर इस समय का दृश्य वास्तव में अद्वितीय और भक्तिमय होता है। लाखों श्रद्धालुओं ने छठ पूजा के दौरान उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए पूरी रात घाटों पर बिताई, और इन घाटों को सजाने के लिए दीयों और रंगीन रोशनियों का उपयोग किया गया। यह दृश्य न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक था, बल्कि दिल्ली की सांस्कृतिक समृद्धि का भी शानदार उदाहरण था।
महिलाएं, जो इस पर्व में प्रमुख रूप से शामिल होती हैं, अपने सिर पर पूजा सामग्री से भरी टोकरियां लेकर घाटों पर पहुंची और पूरी श्रद्धा और भक्ति से सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया। इस समय घाटों पर एक अद्भुत वातावरण था—मंगलमय संगीत, धार्मिक गानें, और दीपों की रौशनी के बीच श्रद्धालुओं की भक्ति और श्रद्धा को देखना वाकई बहुत भावनात्मक और दिव्य अनुभव होता है।
यह खबर छठ पूजा के आयोजन के दौरान सरकारी अधिकारियों द्वारा उठाए गए एक महत्वपूर्ण कदम को दर्शाती है। यूपी की पूर्वी नहर में पिछले 15 दिनों से चल रही मरम्मत के कारण पानी की आपूर्ति बंद थी, लेकिन छठ पर्व के अवसर पर श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए 474 क्यूसेक पानी छोड़ा गया। इसका उद्देश्य था कि श्रद्धालु छठ पूजा के दौरान बहते पानी में अपनी पूजा अर्चना कर सकें, जैसा कि इस पर्व की परंपरा है।
यह कदम वास्तव में श्रद्धालुओं की आस्था और उनकी धार्मिक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है। उत्तर प्रदेश की पूर्वी नहर में पिछले कुछ दिनों से मरम्मत कार्य चल रहा था, जिसके कारण पानी की आपूर्ति बंद थी। लेकिन छठ पूजा के अवसर पर श्रद्धालुओं के जल में अर्घ्य अर्पित करने की परंपरा को बनाए रखने के लिए, पूर्वी नहर में 474 क्यूसेक पानी छोड़ा गया।
साथ ही, पश्चिमी यमुना नहर में 2209 क्यूसेक पानी की आपूर्ति की गई, ताकि यमुना नदी का जल स्तर बनाए रखा जा सके। इस तरह से यमुना नदी के जल बहाव को भी निरंतर बनाए रखने के लिए 352 क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा है। यह सब मिलाकर, यह सुनिश्चित किया गया कि श्रद्धालु अपने पारंपरिक रूप से नदी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर सकें और पूजा के दौरान किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पड़े।
ऐसी व्यवस्थाओं से यह स्पष्ट होता है कि धार्मिक आयोजनों में प्रशासन की सक्रिय भूमिका और श्रद्धालुओं की भावनाओं का सम्मान कितना महत्वपूर्ण है।