Written by – Sakshi Srivastava
हाल ही में, विभिन्न परीक्षाओं के अभ्यर्थी “एक दिन, एक शिफ्ट, नॉर्मलाइजेशन नहीं” के विरोध में एकजुट हो गए हैं। यह मामला मुख्य रूप से उन परीक्षाओं से जुड़ा है जो कई दिनों तक आयोजित होती हैं, और जिनमें अलग-अलग दिन पर विभिन्न शिफ्ट्स में परीक्षा होती है। अभ्यर्थियों का कहना है कि जब परीक्षा विभिन्न शिफ्ट्स में ली जाती है, तो इन शिफ्ट्स में सवालों की कठिनाई अलग-अलग हो सकती है, जिससे न्यायसंगत परिणाम नहीं मिल पाते।
नॉर्मलाइजेशन का क्या मतलब है?
नॉर्मलाइजेशन एक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से विभिन्न शिफ्ट्स की परीक्षा के परिणामों को समान स्तर पर लाया जाता है। यानी अगर किसी शिफ्ट के प्रश्न कठिन थे और किसी शिफ्ट के प्रश्न सरल थे, तो नॉर्मलाइजेशन के जरिए उन परिणामों को संतुलित किया जाता है। लेकिन कई अभ्यर्थी यह मानते हैं कि नॉर्मलाइजेशन की प्रक्रिया को न अपनाया जाना उनके साथ अन्याय है, क्योंकि यह उनकी मेहनत और क्षमता का सही मूल्यांकन नहीं करता।
अभ्यर्थियों का विरोध
अभ्यर्थियों का कहना है कि “एक दिन, एक शिफ्ट” का नियम लागू करने से सभी के लिए समान अवसर मिलेंगे, और परिणाम भी निष्पक्ष होंगे। उनका यह भी मानना है कि अगर नॉर्मलाइजेशन को लागू नहीं किया जाता है, तो अलग-अलग शिफ्ट्स में परीक्षा देने वाले छात्रों के बीच भेदभाव हो सकता है।
अभ्यर्थियों का यह भी तर्क है कि जब परीक्षा का स्तर समान नहीं होगा, तो इससे उन्हें सही मौका नहीं मिलेगा। इसलिए, वे यह मांग कर रहे हैं कि नॉर्मलाइजेशन को हटाकर, एक ही दिन और एक ही शिफ्ट में परीक्षा ली जाए ताकि सभी को समान अवसर मिले और परीक्षा का परिणाम निष्पक्ष हो।
अभ्यर्थियों की मांग क्या है?
अभ्यर्थियों की मुख्य मांग है कि “एक दिन, एक शिफ्ट” प्रणाली लागू की जाए और नॉर्मलाइजेशन की प्रक्रिया को हटाया जाए।
- एक दिन, एक शिफ्ट: अभ्यर्थियों का कहना है कि जब परीक्षा एक ही दिन और एक ही शिफ्ट में ली जाए, तो सभी छात्रों को समान स्तर पर अवसर मिलेगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि सभी के लिए परीक्षा के सवाल समान कठिनाई के स्तर के होंगे, जिससे परिणाम अधिक निष्पक्ष होंगे।
- नॉर्मलाइजेशन नहीं: नॉर्मलाइजेशन की प्रक्रिया में अलग-अलग शिफ्ट्स के प्रश्नों के कठिनाई स्तर को संतुलित करने की कोशिश की जाती है, लेकिन अभ्यर्थियों का मानना है कि यह प्रक्रिया कभी-कभी उनके साथ अन्याय कर सकती है। वे यह चाहते हैं कि नॉर्मलाइजेशन के बजाय सभी छात्रों के लिए समान परीक्षा वातावरण और सवाल दिए जाएं, ताकि किसी को अतिरिक्त लाभ या नुकसान न हो।
आइए जानते है पूरा मामला।
इन दोनों मांगों के जरिए अभ्यर्थी यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि परीक्षा परिणाम अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष हो।
छात्रों ने पहले भी 21 अक्टूबर को पीसीएस और आरओ-एआरओ प्रारंभिक परीक्षा के संबंध में आयोग के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। उनका मुख्य उद्देश्य ‘नो नॉर्मलाइजेशन’ और ‘एक दिन, एक शिफ्ट’ जैसी मांगों को लेकर था। इस विरोध में छात्रों ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि परीक्षा के आयोजन में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित हो।
अभ्यर्थी आयोग के निर्णय से असंतुष्ट हैं और उन्होंने सोशल मीडिया पर विरोध प्रदर्शन किया। खासतौर से, एक्स (Twitter) पर “हैशटैग यूपीपीएससी आरओ/एआरओ वनशिफ्ट” अभियान के तहत 2.40 लाख अभ्यर्थियों ने समर्थन किया। छात्रों का मानना है कि दो पालियों में परीक्षा होने से नॉर्मलाइजेशन की समस्या उत्पन्न होगी, जिससे उनका प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है। वहीं, आयोग का तर्क है कि नकल और निष्पक्ष परीक्षा सुनिश्चित करने के लिए दो दिन और दो पालियों में परीक्षा कराना आवश्यक है।
छात्रों की मांगों को न मानने के बाद आयोग ने परीक्षा तिथि की घोषणा कर दी, जिससे अभ्यर्थियों का गुस्सा और बढ़ गया। इसके बाद, छात्रों ने फिर से अपनी मांगों को लेकर आंदोलन किया, और 11 नवंबर को भी विरोध प्रदर्शन किया। प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भारी पुलिस बल तैनात किया और रास्तों को सील कर दिया, लेकिन इसके बावजूद छात्रों और पुलिस के बीच झड़प हो गई। यह स्थिति अभ्यर्थियों की निराशा और असंतोष को दर्शाती है, जो अपनी मांगों के प्रति आयोग की नकारात्मक प्रतिक्रिया से दुखी हैं।
आयोग ने दोनों भर्ती परीक्षाओं का आयोजन दिसंबर 2024 में निर्धारित किया है और ये परीक्षाएं एक से अधिक पालियों में आयोजित होंगी। आयोग ने यह भी घोषणा की है कि इन परीक्षाओं में मूल्यांकन के लिए नॉर्मलाइजेशन फॉर्मूले का उपयोग किया जाएगा, ताकि विभिन्न पालियों में आयोजित परीक्षा के परिणामों में समानता सुनिश्चित की जा सके। यह नॉर्मलाइजेशन फॉर्मूला छात्रों की चिंता को दूर करने के प्रयास के रूप में दिख रहा है, जो पहले परीक्षा के दो पालियों में आयोजन को लेकर असंतुष्ट थे।
यूपीपीएससी पीसीएस प्रारंभिक परीक्षा 7 और 8 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के 41 जिलों में आयोजित की जाएगी। परीक्षा दो सत्रों में आयोजित की जाएगी, जिसमें पहला सत्र सुबह 9:30 बजे से 11:30 बजे तक होगा और दूसरा सत्र दोपहर 2:30 बजे से शुरू होगा। इस प्रकार, परीक्षा को दो पालियों में बांटा गया है, जैसा कि पहले से घोषित किया गया था।
आरओ-एआरओ प्रारंभिक परीक्षा का आयोजन 22 और 23 दिसंबर को किया जाएगा, और कुल मिलाकर तीन पालियों में परीक्षा आयोजित की जाएगी। 22 दिसंबर को पहली पाली सुबह 9:00 से 12:00 बजे, दूसरी पाली दोपहर 2:30 से 5:30 बजे तक होगी, जबकि 23 दिसंबर को तीसरी पाली की परीक्षा सुबह 9:00 से 12:00 बजे तक होगी। इस प्रकार, परीक्षा का आयोजन तीन अलग-अलग समय स्लॉट्स में किया जाएगा।
आयोग ने परीक्षा तिथियों के साथ-साथ एक से अधिक शिफ्टों में होने वाली प्रारंभिक परीक्षा के लिए मूल्यांकन फॉर्मूला भी जारी किया है। हालांकि, छात्र इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं और उनकी मांग है कि दोनों परीक्षाओं को एक ही दिन, एक शिफ्ट में आयोजित किया जाए, ताकि नॉर्मलाइजेशन की समस्या से बचा जा सके। छात्रों का कहना है कि नॉर्मलाइजेशन के कारण उनके प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, और वे चाहते हैं कि इसे लागू न किया जाए।
इस फॉर्मूले के अनुसार, किसी उम्मीदवार का प्रतिशत स्कोर जानने के लिए सबसे पहले यह देखा जाएगा कि उस उम्मीदवार ने कितने अंक प्राप्त किए हैं, और फिर यह निर्धारित किया जाएगा कि उस अंक या उससे कम अंक प्राप्त करने वाले कुल उम्मीदवारों की संख्या कितनी है। इस संख्या को उस शिफ्ट में उपस्थित कुल उम्मीदवारों की संख्या से भाग दिया जाएगा और फिर उसे 100 से गुणा किया जाएगा। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि उम्मीदवारों के प्रतिशत स्कोर दशमलव के बाद छह अंकों तक हो सकते हैं (00.000000%)। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी शिफ्टों में परीक्षा में उपस्थित उम्मीदवारों के अंकों का सही और समान मूल्यांकन किया जा सके।
यूपीपीएससी को पीसीएस प्रारंभिक परीक्षा-2024 के लिए उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में कुल 1758 परीक्षा केंद्रों की आवश्यकता थी, लेकिन आयोग को केवल 55 प्रतिशत केंद्र ही उपलब्ध हो सके। कुल 576,154 अभ्यर्थियों ने इस परीक्षा के लिए पंजीकरण कराया है, लेकिन जिलाधिकारियों के माध्यम से मानक के अनुसार सिर्फ 978 परीक्षा केंद्रों की ही सहमति मिली है, जिनमें केवल 435,074 अभ्यर्थियों की परीक्षा आयोजित की जा सकती है। इस स्थिति का मतलब है कि आयोग को परीक्षा केंद्रों की पर्याप्त संख्या नहीं मिल पा रही है, जिससे परीक्षा के आयोजन में चुनौतियां उत्पन्न हो सकती हैं।
इस वाक्य में बताया गया है कि आरओ/एआरओ परीक्षा के लिए 10,76,004 अभ्यर्थी पंजीकृत हैं, जो पीसीएस परीक्षा के मुकाबले कहीं अधिक हैं। शासनादेश के अनुसार, केवल मानक पर खरे परीक्षा केंद्रों को ही चयनित किया गया है, ताकि निजी या अधोमानक केंद्रों का उपयोग न किया जाए। इसके अलावा, परीक्षा केंद्रों का विस्तार कलेक्ट्रेट/कोषागार से 20 किलोमीटर की परिधि तक करने की कोशिश की गई, और विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, मेडिकल कॉलेजों तथा इंजीनियरिंग कॉलेजों को भी केंद्र के रूप में शामिल करने का प्रयास किया गया। हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद पर्याप्त संख्या में परीक्षा केंद्र नहीं मिल सके, जिससे परीक्षा आयोजन में कठिनाइयां उत्पन्न हो रही हैं।
परीक्षा केंद्रों की अपर्याप्त संख्या के कारण, यूपीपीएससी ने एक से अधिक दिनों में परीक्षा कराने का निर्णय लिया। इसके साथ ही, नॉर्मलाइजेशन (प्रसामान्यीकरण) की प्रक्रिया अपनाई गई, जिसे उच्चतम न्यायालय ने 7 जनवरी 2024 को पारित अपने निर्णय में उचित माना। यह निर्णय “सिविल अपील उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य बनाम अतुल कुमार द्विवेदी व अन्य” मामले में लिया गया था। नॉर्मलाइजेशन का उद्देश्य विभिन्न दिनों और शिफ्टों में आयोजित परीक्षाओं के परिणामों के बीच समानता सुनिश्चित करना है, ताकि सभी उम्मीदवारों को समान अवसर मिल सके।
नॉर्मलाइजेशन की प्रक्रिया केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों में भी लागू है। आंध्र प्रदेश, केरल और तेलंगाना जैसे राज्यों के लोक सेवा आयोग भी बहुपालीय परीक्षा के आयोजन के दौरान नॉर्मलाइजेशन का उपयोग करते हैं। यूपीपीएससी ने इस प्रक्रिया को लेकर किसी भी तरह के भ्रम को दूर करने के लिए पहली बार इसे सार्वजनिक रूप से अपनी विज्ञप्ति में स्पष्ट किया है, ताकि अभ्यर्थी समझ सकें कि यह प्रक्रिया क्यों और कैसे लागू की जाएगी।
अभ्यर्थियों का यह विरोध एक उचि सवाल उठाता है – क्या हमारी परीक्षाओं में न्याय सुनिश्चित किया जा रहा है? चाहे “एक दिन, एक शिफ्ट” का नियम हो या नॉर्मलाइजेशन की प्रक्रिया, इन सभी सवालों का उद्देश्य यह होना चाहिए कि सभी अभ्यर्थियों के साथ निष्पक्ष और समान व्यवहार किया जाए।