Written by-Sakshi Srivastava

मां अन्नपूर्णा भारतीय संस्कृति में भोजन और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। उनका नाम ‘अन्न’ (अनाज) और ‘पूर्णा’ (पूरा या संपन्न) से लिया गया है, यानी वह देवी जो अन्न और समृद्धि से भरपूर करती हैं। खासतौर पर उनके पूजा में धान की बालियों का महत्व है, जो उनके आशीर्वाद का प्रतीक मानी जाती हैं।
यह विशेष व्रत, जो मां अन्नपूर्णा के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि से प्रारंभ होता है। इस बार, 20 नवंबर से शुरू हो रहे इस व्रत के दौरान श्रद्धालु 17 दिनों तक अनवरत उपासना करते हैं। व्रत की विशेषता यह है कि श्रद्धालु 17 गांठ का धागा धारण कर अपने संकल्प को मजबूत करते हैं, जो इस पूजा की पवित्रता और परंपरा का हिस्सा है।
इस बार मां अन्नपूर्णा का शृंगार खास तौर पर धान की बालियों से किया जाएगा, जो समृद्धि और अन्न के महत्व को दर्शाता है। साथ ही, माता को चावल का भोग अर्पित किया जाएगा, जो विशेष रूप से उनके आशीर्वाद के रूप में भोजन और समृद्धि की प्राप्ति का प्रतीक है। यह व्रत समग्र रूप से समृद्धि, आन्नपूर्णता और श्रद्धा का अनुष्ठान है, जिसे श्रद्धालु गहरी आस्था और ध्यान से निभाते हैं।
मां अन्नपूर्णा के 17 दिवसीय महाव्रत की शुरुआत 20 नवंबर, बुधवार से होगी और इसका समापन 7 दिसंबर को पूर्णाहुति के साथ होगा। इस व्रत में श्रद्धालु विशेष रूप से संकल्प लेते हैं और 17 गांठ का धागा अन्नपूर्णा मंदिर से प्राप्त करते हैं। पुरुष इस धागे को दाएं हाथ में और महिलाएं बाएं हाथ में धारण करती हैं। यह धागा व्रत के संकल्प और समृद्धि की प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है।
मां अन्नपूर्णा का धान से शृंगार
पूर्वांचल के किसान अपनी धान की पहली फसल को श्रद्धा और आस्था के साथ मां अन्नपूर्णा के चरणों में अर्पित करते हैं। यह परंपरा इस व्रत के विशेष हिस्से के रूप में महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे कृषि कार्य और समृद्धि के साथ जोड़ा जाता है। धान की बालियों का प्रसाद आठ दिसंबर को भक्तों में वितरित किया जाएगा, जो मां अन्नपूर्णा की कृपा और आशीर्वाद का प्रतीक होता है।
महंत शंकर पुरी ने बताया कि मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि, यानी 20 नवंबर से मां अन्नपूर्णा का महाव्रत शुरू होगा और इसका समापन 7 दिसंबर को उद्यापन के साथ होगा। व्रत के इस दौरान मां अन्नपूर्णा को चावल का भोग अर्पित किया जाएगा, और साथ ही किसानों के द्वारा अर्पित की गई पहली धान की फसल से मां का शृंगार किया जाएगा। यह आयोजन किसान समुदाय के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उनके कड़ी मेहनत और समृद्धि की प्रतीक होता है।
मां अन्नपूर्णा के शृंगार में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ होती है धान की बालियां। इस दिन विशेष रूप से मंदिरों में धान की बालियों से देवी का शृंगार किया जाता है, ताकि उन पर उनका आशीर्वाद बना रहे और अन्न की कोई कमी न हो। यह परंपरा विशेष रूप से अन्नपूर्णा जयन्ती या अन्य अन्न संबंधित अवसरों पर मनाई जाती है।
चावल का भोग और उसका महत्व
मां अन्नपूर्णा को चावल का भोग अर्पित करने की परंपरा भी बहुत पुरानी है। यह माना जाता है कि जब मां को चावल का भोग अर्पित किया जाता है, तो घर में समृद्धि, खुशहाली और अन्न की कमी नहीं होती। चावल को देवी को अर्पित करते समय उसका शुद्ध और प्रसन्नचित्त मन से भोग अर्पित किया जाना चाहिए।
पूजा विधि
- साफ-सफाई: सबसे पहले पूजा स्थान को साफ करें और वहां एक ताजे आसन पर बैठें।
- पानी का चढ़ाव: एक बर्तन में पानी भरें और उसमें चावल डालकर मां अन्नपूर्णा को अर्पित करें।
- धान की बालियां: मां के चरणों में धान की बालियों को अर्पित कर उनका शृंगार करें।
- दीपक और अगरबत्तियां: दीपक और अगरबत्तियां जलाकर वातावरण को पवित्र करें।
- भोग अर्पित करना: चावल, दाल, और अन्य अन्न पदार्थों से भोग अर्पित करें।
- प्रार्थना: मां से अन्न और समृद्धि के लिए प्रार्थना करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।

मां अन्नपूर्णा की पूजा में धान की बालियों और चावल का भोग अर्पित करने की परंपरा भारतीय संस्कृति में समृद्धि और अन्न की पूर्ति के प्रतीक के रूप में देखी जाती है। यह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि हमें भोजन के महत्व और उसकी उपासना के प्रति हमारी श्रद्धा को भी दर्शाता है।