Written by- Sakshi Srivastava
खैर विधानसभा सीट पर इस उपचुनाव में दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है। यह सीट बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि बीजेपी ने यहां पिछले दो चुनावों में जीत हासिल की थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद इस सीट पर दो बार चुनाव प्रचार किया है, जो उनकी पार्टी की मजबूत स्थिति को दर्शाता है।
वहीं, समाजवादी पार्टी (सपा) भी इस बार बीजेपी को सीधी चुनौती दे रही है। सपा के प्रचार में उनकी ओर से जोरदार प्रयास हो रहा है, खासकर जाट समुदाय के समर्थन को साधने के लिए। जयंत चौधरी, जिनकी अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोक दल (RLD) जाट बाहुल क्षेत्र में मजबूत है, भी अपनी पार्टी के प्रत्याशी को समर्थन दे रहे हैं और प्रचार में सक्रिय हैं।
वहीं खैर विधानसभा सीट पर इस उपचुनाव में स्थिति काफी दिलचस्प है, और अब तक के चुनाव प्रचार को देखकर यह साफ नजर आता है कि मुख्य मुकाबला समाजवादी पार्टी (एसपी) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच है। पश्चिमी यूपी का जाटलैंड होने के कारण इस सीट पर जाट समुदाय की अहम भूमिका है, और दोनों ही दल इसे अपने पक्ष में करने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं।
एसपी अध्यक्ष ने “पीडीए” (पार्टी, दल, गठबंधन) का नारा दिया है, जो कि चुनावी रणनीति के तौर पर एक गठबंधन का संकेत हो सकता है। उनका यह संदेश विशेष रूप से उस वर्ग को आकर्षित करने का है, जो बीजेपी के खिलाफ एकजुट हो सकता है। वहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का “बंटेंगे तो कटेंगे” का नारा बीजेपी के पक्ष में एकजुटता को बढ़ावा देने की कोशिश है, जिससे वे चुनावी ध्रुवीकरण को अपनी ओर मोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
बीजेपी के लिए यह सीट बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे इसे लगातार दो बार जीत चुकी हैं, और उनकी कोशिश यह होगी कि कोई भी विपक्षी गठबंधन उन्हें चुनौती न दे सके। वहीं एसपी इस बार पूरी ताकत से चुनावी मैदान में है, यह देखना होगा कि उनका गठबंधन फार्मूला बीजेपी के खिलाफ कितनी मजबूती से काम करता है।
इस सब के बीच, जाट समुदाय के साथ अन्य समाजिक समीकरण भी इस चुनाव के परिणामों को प्रभावित करेंगे। बुधवार को मतदान के बाद यह साफ हो जाएगा कि किसका चुनावी गणित ज्यादा प्रभावी रहा।
खैर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में बीजेपी, एसपी और बीएसपी तीनों ही दल अपनी-अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नजर आ रहे हैं, लेकिन इस सीट के जाट बहुल होने और बीजेपी-आरएलडी गठबंधन की स्थिति को देखते हुए बीजेपी की स्थिति फिलहाल मजबूत मानी जा रही है। बीजेपी और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) का गठबंधन जाट समुदाय को अपने पक्ष में करने के लिए मजबूत रणनीति बना रहा है, और पश्चिमी यूपी में जाटों का प्रभावी वोट बैंक बीजेपी के पक्ष में काम कर सकता है।
हालांकि, एसपी का “पीडीए” (पार्टी, दल, गठबंधन) का नारा भी उनके समर्थन में असर डालने की उम्मीदें पैदा करता है। इस नारे के जरिए एसपी जाटों सहित अन्य समुदायों को एकजुट करने की कोशिश कर रही है, और यदि इसका असर हुआ, तो जाट मतदाताओं में बिखराव हो सकता है, जिससे बीजेपी के लिए स्थिति थोड़ी कठिन हो सकती है।
बीएसपी, जो यहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के प्रयास में है, उनका वोट शेयर भी चुनाव परिणामों में असर डाल सकता है, लेकिन मुख्य मुकाबला एसपी और बीजेपी के बीच ही देखने को मिल रहा है।
जी, खैर विधानसभा उपचुनाव में एसपी-पीडीए गठबंधन के प्रत्याशी के रूप में तेजवीर सिंह गुड्डू की पुत्रवधु चारु कैन मैदान में हैं, जो जाट समुदाय से आती हैं। चारु कैन का राजनीतिक इतिहास भी दिलचस्प है, क्योंकि उन्होंने पिछला चुनाव बीएसपी के बैनर तले लड़ा था और दूसरे स्थान पर रही थीं। उनके इस अच्छे प्रदर्शन को देखकर ही एसपी ने उन्हें इस बार मौका दिया है, ताकि वह जाट और अनुसूचित जाति (एससी) के मतदाताओं को आकर्षित कर सकें।
चारु कैन की उम्मीदवारी, खासकर एससी समुदाय से उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि और जाट समाज से उनका संबंध, एसपी के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक कदम हो सकता है। एसपी-पीडीए गठबंधन का उद्देश्य विभिन्न समाजिक वर्गों, खासकर जाट और एससी समुदाय, को एकजुट करना है, जिससे बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत विरोधी धारा तैयार की जा सके। एसपी की यह कोशिश है कि जाटों और अनुसूचित जातियों के बीच बिखराव को रोकते हुए उन्हें अपने पक्ष में लाया जाए, जैसा कि पिछले चुनाव में बीएसपी के बैनर तले उनकी स्थिति से संकेत मिलता है।
चारु कैन के लिए यह चुनाव एक बड़ी चुनौती हो सकती है, क्योंकि उन्हें जाटों और अन्य जातिगत समीकरणों को साधना होगा, और साथ ही बीजेपी-आरएलडी गठबंधन के मजबूत प्रत्याशी सुरेंद्र दिलेर से मुकाबला करना होगा। इस सीट पर जाटों का प्रभावी वोट बैंक निर्णायक साबित हो सकता है, और अगर एसपी का “पीडीए” गठबंधन, जाट और एससी समुदाय को एकजुट करने में सफल रहता है, तो मुकाबला बीजेपी के लिए कठिन हो सकता है।
खैर विधानसभा उपचुनाव में बीएसपी से डॉ. पहल सिंह चुनावी मैदान में हैं, जबकि बीजेपी अपनी जातीय समीकरणों के हिसाब से चुनावी रणनीति बना रही है। जाटों को साधने के लिए बीजेपी के नेता सक्रिय हैं, वहीं ठाकुर बाहुल्य इलाकों में जयवीर सिंह की सक्रियता पार्टी को मजबूती दे रही है। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी बीजेपी को समर्थन मिलने की उम्मीद है, और ब्राह्मण समुदाय को भी बीजेपी अपने पक्ष में लाने के प्रयासों में जुटी है। इस प्रकार, जातीय समीकरण इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, और बीजेपी की रणनीतियों से मुकाबला कड़ा हो सकता है।
खैर विधानसभा सीट, जिसे जाटलैंड के नाम से जाना जाता है, मूल रूप से खेती-किसानी पर निर्भर क्षेत्र है। इस क्षेत्र का ऐतिहासिक या धार्मिक महत्व सीमित है, लेकिन टप्पल में हरियाणा बॉर्डर पर यमुना का किनारा और गौमत कस्बे में स्थित दाऊजी का मंदिर यहां के प्रमुख स्थल हैं। चौधरी चरण सिंह के समय से यह सीट जाट समुदाय के प्रभाव में रही है, और उनके बाद भी जाटों की निर्णायक भूमिका बनी रही है। चरण सिंह की बेटी, ज्ञानवती सिंह, एक बार इस सीट से विधायक रही थीं, जो इस क्षेत्र में जाट समुदाय की राजनीतिक ताकत को और मजबूत करती है। इस सीट पर जाटों का प्रभाव हमेशा महत्वपूर्ण रहा है, और यह चुनाव भी जाटों के वोट पर केंद्रित रहेगा।
खैर विधानसभा सीट पर परंपरागत रूप से किसी एक परिवार का कब्जा नहीं रहा है, लेकिन चौधरी चरण सिंह और उनके बाद उनके बेटे चौधरी अजित सिंह का प्रभाव इस क्षेत्र में हमेशा मजबूत रहा है। अधिकतर विधायक चौ. चरण सिंह या उनके परिवार के सदस्य या समर्थकों द्वारा ही चुने गए हैं। हालांकि, 2017 में बीजेपी ने आरएलडी से यह सीट छीन ली थी, और फिर 2022 में दूसरी बार जीत दर्ज की। इस तरह, पिछले कुछ वर्षों में बीजेपी ने इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत की है, जो अब आरएलडी और सपा जैसे दलों के लिए चुनौती बन गई है।
यह आंकड़े चुनावी क्षेत्र या किसी विशेष क्षेत्र के मतदाताओं के बारे में हैं। इसमें कुल मतदाता 402,819 हैं, जिनमें से 215,088 पुरुष मतदाता हैं और 187,709 महिला मतदाता हैं।
जातीय मतदान।
- जाट – 1,10,000 मतदाता
- ब्राह्मण – 50,000 मतदाता
- जाटव – 40,000 मतदाता
- मुसलिम – 30,000 मतदाता
- अन्य एससी – 25,000 मतदाता
- वैश्य – 25,000 मतदाता
- अन्य जातियां – बाकी मतदाता
कुल मतदाता संख्या 402,819 है।