
सरल डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें 11 अगस्त के अपने पिछले आदेश में संशोधन किया गया। इस फैसले में कोर्ट ने आवारा कुत्तों को शेल्टर होम में स्थायी रूप से रखने के बजाय नसबंदी और टीकाकरण के बाद उन्हें उनके मूल क्षेत्रों में छोड़ने का निर्देश दिया। यह फैसला दिल्ली-एनसीआर सहित पूरे देश के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होगा।
नसबंदी और टीकाकरण अनिवार्य
सभी आवारा कुत्तों की नसबंदी (Sterilisation) और एंटी-रेबीज टीकाकरण (Immunisation) किया जाएगा। इसके बाद, उन्हें उसी क्षेत्र में छोड़ा जाएगा जहां से उन्हें पकड़ा गया था, ताकि वे अपने प्राकृतिक वातावरण में रह सकें।
शेल्टर होम केवल बीमार और आक्रामक कुत्तों के लिए केवल वे कुत्ते जो गंभीर रूप से बीमार (जैसे रेबीज से संक्रमित) या आक्रामक व्यवहार वाले हैं, उन्हें शेल्टर होम में रखा जाएगा। बाकी स्वस्थ और गैर-आक्रामक कुत्तों को शेल्टर होम में स्थायी रूप से नहीं रखा जाएगा।
निर्दिष्ट फीडिंग पॉइंट
कोर्ट ने हर नगर निगम ब्लॉक में आवारा कुत्तों के लिए विशेष फीडिंग पॉइंट बनाने का आदेश दिया। इन स्थानों पर ही कुत्तों को भोजन दिया जाएगा। सार्वजनिक स्थानों पर कुत्तों को खाना खिलाने पर प्रतिबंध होगा, और उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई की जाएगी।
कुत्तों को पकड़ने या इस प्रक्रिया में बाधा डालने वालों पर 25,000 से 2 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा। कोर्ट ने नगर निगमों को इस प्रक्रिया को पारदर्शी और जिम्मेदारी से लागू करने के लिए सख्त निर्देश दिए। यह आदेश पूरे देश में लागू होगा, और सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किए गए हैं। देशभर की निचली अदालतों में आवारा कुत्तों से संबंधित लंबित मामलों को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया है।
पशु कल्याण और मानव सुरक्षा में संतुलन
कोर्ट ने अपने फैसले में मानव सुरक्षा और पशु कल्याण दोनों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की है। नसबंदी के जरिए कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने और रेबीज के खतरे को कम करने पर जोर दिया गया है।
11 अगस्त का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने पहले दिल्ली-एनसीआर में सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर होम में स्थायी रूप से रखने का आदेश दिया था, ताकि रेबीज और कुत्तों के हमलों से होने वाली मौतों को रोका जा सके। इस फैसले का पशु कल्याण संगठनों और डॉग लवर्स ने विरोध किया, क्योंकि शेल्टर होम में पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है और यह पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियमों, 2001 के खिलाफ था।
विरोध और पुनर्विचार याचिका
पशु प्रेमियों, एनजीओ, और वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि शेल्टर होम में कुत्तों को रखना अव्यावहारिक है, क्योंकि इससे कुत्तों में तनाव, भूखमरी, और हिंसा बढ़ सकती है। साथ ही, दिल्ली में केवल 20 नसबंदी केंद्र हैं, जिनकी क्षमता 2,500 कुत्तों की है, जो 10 लाख आवारा कुत्तों की आबादी के लिए अपर्याप्त है।
14 अगस्त को सुनवाई के बाद, जस्टिस विक्रम नाथ की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने 11 अगस्त के आदेश पर पुनर्विचार किया और इसे संशोधित कर नसबंदी और टीकाकरण पर आधारित समाधान को प्राथमिकता दी।
डॉग लवर्स और पशु कल्याण संगठन
इस फैसले को पशु प्रेमियों ने राहत की सांस के रूप में देखा। बॉलीवुड अभिनेता जॉन अब्राहम और रणदीप हुड्डा ने फैसले का स्वागत किया, इसे पशु कल्याण और मानव सुरक्षा के बीच संतुलित कदम बताया। वहीं दिल्ली के मेयर राजा इकबाल सिंह ने फैसले का स्वागत किया और कहा कि “नगर निगम शेल्टर होम को कार्यात्मक बनाने और नसबंदी अभियान को तेज करने के लिए काम करेगा।”
कुछ लोग अभी भी इस फैसले से असहमत हैं, क्योंकि उनका मानना है कि “नसबंदी और टीकाकरण के बाद भी कुत्तों के हमले और रेबीज का खतरा पूरी तरह खत्म नहीं होगा।”
कुत्तों की आबादी और रेबीज के खतरे
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आवारा कुत्तों की समस्या का एक व्यावहारिक और संतुलित समाधान पेश करता है। नसबंदी और टीकाकरण के जरिए कुत्तों की आबादी और रेबीज के खतरे को नियंत्रित करने पर जोर दिया गया है, जबकि केवल बीमार और आक्रामक कुत्तों को ही शेल्टर होम में रखा जाएगा। यह आदेश पशु कल्याण और मानव सुरक्षा दोनों को ध्यान में रखकर लिया गया है, और इसे लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों पर होगी।