
आयूष गांधी
पत्रकारिता एक पेशा नहीं, एक जिम्मेदारी है। यह सच की मशाल थामे अंधेरे में रोशनी की किरण बनती है। लेकिन इस मशाल को थामे रखना आसान नहीं होता — यह बात बख़ूबी समझाई है पत्रकार/लेखक प्रकाश मेहरा ने अपनी नई किताब “Journalism Without Borders” में जो अगले माह अगस्त में प्रकाशित होने की संभावना है।
करीब 130 पन्नों की यह पुस्तक सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि एक पत्रकार की आत्मा की आवाज़ है — एक सच्चाई जो सीमाओं, भाषाओं और व्यवस्थाओं से परे है।
एक संघर्षशील पत्रकार की यात्रा !
प्रकाश मेहरा की यह रचना उनके जीवन के उतार-चढ़ावों, जमीनी अनुभवों और अडिग साहस की कहानी है। एक छोटे शहर से निकलकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रकारिता के फलक तक पहुँचने की यह यात्रा आसान नहीं थी। उन्होंने झूठ, डर और दबाव के विरुद्ध कलम को हथियार बनाया, और सच को जन-जन तक पहुँचाने का प्रण लिया।
उनकी जीवनी हमें यह बताती है कि पत्रकार बनना सिर्फ खबरें लिखना नहीं है — यह एक निरंतर संघर्ष है, जहाँ आपको सत्ता की आँखों में आँखें डालकर सच बोलना होता है। “Journalism Without Borders” इसी जज़्बे का नाम है।
दर्द की दास्ताँ और पत्रकारिता की जिम्मेदारी !
किताब में सिर्फ सफलता की कहानियाँ नहीं हैं, बल्कि वो घाव भी हैं जो पत्रकारिता के मैदान में चलते हुए लेखक को मिले। उन्होंने उन मोर्चों का ज़िक्र किया है जहाँ एक स्वतंत्र पत्रकार को अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए लड़ना पड़ा। सेंसरशिप, धमकियाँ, मानसिक तनाव, और आर्थिक अनिश्चितता — ये सब उनके अनुभव का हिस्सा रहे हैं।
लेकिन इन कठिनाइयों ने उन्हें तोड़ा नहीं, बल्कि और मजबूत बनाया। उन्होंने दिखाया कि “एक सच्चा पत्रकार सीमाओं में नहीं बंधता — न भूगोल की, न भाषा की, न ही विचारों की।”
सच की मशाल बनकर
प्रकाश मेहरा का यह प्रयास खास इसलिए है क्योंकि इसमें पत्रकारिता को ग्लैमर नहीं, ज़िम्मेदारी के चश्मे से देखा गया है। यह पुस्तक युवा पत्रकारों के लिए एक मार्गदर्शक की तरह है। यह बताती है कि चाहे कितनी भी अंधेरी रात हो, एक सच्चा पत्रकार हमेशा रोशनी की तलाश करता है और दूसरों के लिए वह रोशनी बनता है।
“Journalism Without Borders” सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि पत्रकारिता के उस रूप का परिचय है, जो डर से नहीं, दृढ़ता से चलता है। यह उन सबके लिए एक प्रेरणा है जो अपने अंदर एक जिज्ञासु, ईमानदार और निडर पत्रकार को महसूस करते हैं।
प्रकाश मेहरा की यह किताब आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाएगी कि “पत्रकारिता कभी सीमाओं में नहीं बंधती — इसकी सीमा सिर्फ सच होती है, और सच हमेशा आज़ाद होता है।”