
स्पेशल डेस्क
हाल ही में, उत्तराखंड के बाद हरियाणा सरकार ने भी अपने स्कूलों में सुबह की प्रार्थना सभा (मॉर्निंग प्रेयर) में श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों को अनिवार्य करने का निर्णय लिया है। इस पहल का उद्देश्य छात्रों में आध्यात्मिकता, नैतिक मूल्यों, चरित्र निर्माण, और भारतीय ज्ञान परंपरा को बढ़ावा देना है। इस निर्णय को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत लागू किया गया है, जिसमें स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को पाठ्यक्रम में शामिल करने की अनुमति दी गई है।
उत्तराखंड में गीता श्लोक की शुरुआत
उत्तराखंड सरकार ने 15 जुलाई 2025 से अपने सभी सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में प्रार्थना सभा के दौरान गीता के एक श्लोक का दैनिक पाठ शुरू किया। यह आदेश माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती द्वारा जारी किया गया। प्रत्येक दिन प्रार्थना सभा में एक श्लोक अर्थ सहित पढ़ा और समझाया जाएगा। इसका वैज्ञानिक और नैतिक महत्व भी छात्रों को बताया जाएगा।
सप्ताह का श्लोक
हर सप्ताह एक मूल्य आधारित श्लोक को “श्लोक ऑफ द वीक” घोषित किया जाएगा, जिसे स्कूल के नोटिस बोर्ड पर अर्थ सहित प्रदर्शित किया जाएगा। सप्ताह के अंत में इस पर चर्चा और फीडबैक लिया जाएगा। छात्रों को भारतीय ज्ञान परंपरा से जोड़ना, नैतिक मूल्यों, आत्म-नियंत्रण, और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर अगले शैक्षणिक सत्र (2026) से गीता और रामायण को स्कूल पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा। उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शामून कासमी ने इस पहल का स्वागत किया, जबकि कुछ शिक्षक संगठनों और कांग्रेस ने संविधान का हवाला देकर इसका विरोध किया।
हरियाणा में गीता श्लोक की शुरुआत
हरियाणा ने उत्तराखंड के नक्शेकदम पर चलते हुए 17 जुलाई 2025 से अपने सभी स्कूलों (सरकारी और निजी) में प्रार्थना सभा के दौरान गीता के श्लोकों का पाठ अनिवार्य किया। इसकी औपचारिक शुरुआत भिवानी के सर्वपल्ली राधाकृष्णन लैब स्कूल में हुई। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड (HBSE) ने सभी स्कूलों को पत्र जारी कर प्रार्थना सभा में गीता के श्लोकों का पाठ शुरू करने का आदेश दिया।
बोर्ड अध्यक्ष डॉ. पवन कुमार ने कहा कि गीता जीवन का सार है और इसके श्लोक बच्चों के सर्वांगीण विकास, आध्यात्मिक चेतना, और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देंगे। भिवानी में आयोजित कार्यक्रम में गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने ऑनलाइन माध्यम से छात्रों को आशीर्वाद दिया। स्वामी ज्ञानानंद लंबे समय से गीता के प्रचार-प्रसार में सक्रिय हैं।
यह पहल नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति और दर्शन से जोड़ने का प्रयास है। बोर्ड का कहना है कि यह छात्रों को गीता के ज्ञान को जीवन में उतारने के लिए प्रेरित करेगा। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने पहले ही कक्षा 8 तक के पाठ्यक्रम में गीता को शामिल करने की घोषणा की थी।
दोनों राज्यों में समानताएं और अंतर समानताएं
दोनों राज्यों में गीता के श्लोकों को प्रार्थना सभा में शामिल किया गया है। उद्देश्य नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा को बढ़ावा देना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत स्थानीय परंपराओं को शामिल करने की अनुमति का उपयोग। दोनों में सप्ताह के श्लोक और चर्चा की व्यवस्था है।
उत्तराखंड में यह नियम मुख्य रूप से सरकारी स्कूलों पर लागू है, जबकि हरियाणा में सभी स्कूलों (सरकारी और निजी) पर लागू है। उत्तराखंड में रामायण को भी पाठ्यक्रम में शामिल करने की योजना है, जबकि हरियाणा में अभी केवल गीता पर ध्यान है।उत्तराखंड में विरोध देखा गया, जबकि हरियाणा में अभी तक व्यापक विरोध की खबर नहीं है।
क्या हैं प्रतिक्रियाएं समर्थन ?
गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद और उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती कासमी ने इसे भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने वाला कदम बताया। कासमी ने कहा कि राम और कृष्ण भारतीय पूर्वज हैं, और उनके बारे में जानना हर भारतीय के लिए जरूरी है। उत्तराखंड में अनुसूचित जाति जनजाति शिक्षक एसोसिएशन और कांग्रेस ने इसे संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ बताया।
संभावित प्रभाव छात्रों पर
गीता के श्लोकों से नैतिक मूल्य, आत्म-नियंत्रण, और तनाव प्रबंधन जैसे गुणों का विकास हो सकता है। यह उन्हें भारतीय दर्शन और संस्कृति से जोड़ेगा। यह कदम NEP 2020 के तहत पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक शिक्षा के साथ जोड़ने की दिशा में एक कदम है। कुछ समूह इसे धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ मान सकते हैं, जिससे बहस छिड़ सकती है।
उत्तराखंड और हरियाणा में गीता के श्लोकों को प्रार्थना सभा में शामिल करना भारतीय संस्कृति और नैतिक शिक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। दोनों राज्य इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत लागू कर रहे हैं, लेकिन इसका प्रभाव और स्वीकार्यता भविष्य में सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करेगी।