
सरल डेस्क
यूरोप, जिसे अक्सर ठंडे मौसम और सर्द हवाओं के लिए जाना जाता है, अब तेज गर्मी से जूझ रहा है। 2024 की गर्मियों में यहां रिकॉर्डतोड़ तापमान ने भारी तबाही मचाई। ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, सिर्फ पिछले साल ही 62,700 से ज्यादा लोगों की मौतें गर्मी से जुड़ी वजहों से हुईं। यह आंकड़ा इस बात का संकेत है कि जलवायु परिवर्तन अब किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरी दुनिया के लिए गंभीर खतरा बन चुका है।
वैज्ञानिक रिपोर्ट का खुलासा
यह रिपोर्ट प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल नेचर मेडिसिन में सोमवार को प्रकाशित हुई। अध्ययन बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ (ISGlobal) के शोधकर्ताओं ने किया। इसके लिए 32 यूरोपीय देशों के रोजाना मौतों का डेटा लिया गया। रिपोर्ट में बताया गया कि 2022 से 2024 के बीच तीन सालों में कुल 1,81,000 से ज्यादा लोग गर्मी की वजह से समय से पहले मौत का शिकार बने।
महिलाएं और बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित
शोध में यह भी सामने आया कि महिलाओं और बुजुर्गों पर गर्मी का असर सबसे ज्यादा पड़ा। कमजोर प्रतिरोधक क्षमता और स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों की वजह से इन वर्गों में मृत्यु दर अधिक रही।
यूरोप क्यों हो रहा है संवेदनशील?
विशेषज्ञों का कहना है कि यूरोप में परंपरागत रूप से ठंडा मौसम रहा है, इसलिए यहां के बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य व्यवस्थाएं अत्यधिक गर्मी झेलने के लिए तैयार नहीं हैं। एयर कंडीशनिंग की पहुंच सीमित है, पुराने घरों और इमारतों में तापमान को नियंत्रित करने की सुविधाएं नहीं हैं। यही वजह है कि जब लू जैसी स्थिति बनती है तो मौतों की संख्या अचानक बढ़ जाती है।
जलवायु परिवर्तन का संकेत
यह रिपोर्ट केवल यूरोप के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए चेतावनी है। वैज्ञानिक मानते हैं कि बढ़ता हुआ ग्लोबल वॉर्मिंग का स्तर आने वाले वर्षों में स्वास्थ्य संकट को और गहरा करेगा। भारत, अफ्रीका और एशिया जैसे पहले से ही गर्म क्षेत्रों में इसका प्रभाव और भी खतरनाक हो सकता है।
क्या है समाधान?
विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि सरकारों और समाजों को तुरंत कदम उठाने होंगे— शहरी क्षेत्रों में हरियाली और ठंडी छांव वाले स्थान बढ़ाना। घरों और दफ्तरों को गर्मी-प्रतिरोधी बनाने के उपाय करना। स्वास्थ्य सेवाओं को आपातकालीन हालात के लिए तैयार करना। और सबसे अहम, कार्बन उत्सर्जन को कम करके जलवायु परिवर्तन की रफ्तार धीमी करना।