
सुप्रीम कोर्ट ने 11 नवंबर को विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया पर सुनवाई के दौरान स्पष्ट कहा कि चुनाव आयोग देश में वोटर लिस्ट का शोधन (revision) पहली बार नहीं कर रहा है। यह बयान तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में SIR को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आया, जहां विपक्षी दलों (जैसे DMK, TMC, CPI(M) और कांग्रेस) ने इसे “नागरिकता जांच” का बहाना बताते हुए लाखों वोटरों के मताधिकार छीनने का आरोप लगाया। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि वे इतने आशंकित क्यों हैं, जबकि यह प्रक्रिया संवैधानिक है और पहले भी कई बार की गई है। कोर्ट ने चुनाव आयोग से दो हफ्ते में जवाब मांगा और अगली सुनवाई 26-27 नवंबर को तय की। साथ ही, मद्रास और कलकत्ता हाईकोर्ट को इस मुद्दे पर सुनवाई स्थगित करने का निर्देश दिया।
SIR प्रक्रिया क्या है ?
SIR वोटर लिस्ट को अपडेट करने की एक गहन प्रक्रिया है, जिसमें मृत वोटरों, डुप्लिकेट नामों और शिफ्टेड वोटरों को हटाया जाता है। नए पात्र वोटरों को जोड़ा जाता है। बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर एन्यूमरेशन फॉर्म भरवाते हैं। यह सामान्य वार्षिक संक्षिप्त पुनरीक्षण (SSR) से अलग है, जो ज्यादा विस्तृत है।
चुनाव आयोग ने इसे 12 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों (बिहार, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल आदि) में शुरू किया है, जहां 2026 में चुनाव हैं। बिहार में यह जून 2025 से चल रही है, जहां अंतिम लिस्ट 30 सितंबर को जारी हुई (कुल 7.42 करोड़ वोटर)। प्रक्रिया 4 नवंबर से दूसरे चरण में है, जो 4 दिसंबर तक चलेगी; ड्राफ्ट लिस्ट 9 दिसंबर और फाइनल 7 फरवरी 2026 को आएगी।सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा ‘पहली बार नहीं’?
कोर्ट ने विपक्ष के दावों का किया खंडन
कोर्ट ने विपक्ष के दावों का खंडन करते हुए कहा कि “SIR जैसी शोधन प्रक्रिया पहले भी हुई है, लेकिन पिछली बार यह ज्यादा सतर्क और लंबी (करीब 3 साल) थी। उदाहरण 2003 में बिहार आखिरी बड़ा SIR, जो 20 साल बाद दोहराया जा रहा है। 2013 में: पूरे देश में गहन शोधन हुआ था। कोर्ट ने जोर दिया कि चुनाव आयोग संवैधानिक संस्था है, और प्रक्रिया में कोई “कार्यात्मक कमी” हो तो उसे सुधारा जा सकता है, लेकिन इसे रोकना उचित नहीं।
याचिकाकर्ता कपिल सिब्बल (DMK की ओर से) ने तर्क दिया कि अब सिर्फ 1 महीने में SIR करना जल्दबाजी है, जिससे लाखों नाम कट सकते हैं। कोर्ट ने सहमति जताई कि समय कम है, लेकिन प्रक्रिया को वैध माना। NGO एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने सुझाव दिया कि 2003 की लिस्ट मशीन-रीडेबल फॉर्म में जारी की जाए ताकि पारदर्शिता बने, लेकिन कोर्ट ने 2018 के कमल नाथ मामले का हवाला देकर गोपनीयता का मुद्दा उठाया।
बिहार SIR पर कोर्ट के पिछले निर्देश
बिहार में SIR को कई बार चुनौती दी गई, और कोर्ट ने कई अंतरिम आदेश दिए:जुलाई 2025: SIR पर रोक से इनकार, लेकिन आधार, वोटर ID (EPIC) और राशन कार्ड को वैध दस्तावेज मानने का निर्देश। कोर्ट ने कहा, “शोधन में कुछ गलत नहीं, समस्या टाइमिंग की है।”
अगस्त 2025 ड्राफ्ट लिस्ट से हटे 65 लाख नामों की सूची 19 अगस्त तक जारी करने का आदेश। आयोग ने कहा, नाम कटने के कारण मृत्यु, पलायन या डुप्लिकेट थे। सितंबर 2025 आधार को 12वें वैध दस्तावेज के रूप में शामिल करने का आदेश। कोई नाम बिना सुनवाई/नोटिस के न काटा जाए। अक्टूबर 2025 फाइनल लिस्ट प्रकाशन पर भरोसा जताया, लेकिन 3.66 लाख वोटरों की जानकारी मांगी। कोर्ट ने कहा, “हम पूरी प्रक्रिया की समीक्षा करेंगे।”
कोर्ट का मुख्य निर्देश
10 जुलाई 2025 आधार/EPIC/राशन कार्ड मानें; SIR जारी रखें। वोटरों को राहत, प्रक्रिया वैध। 9 अगस्त 2025 कोई नाम बिना नोटिस/सुनवाई न काटें। पारदर्शिता बढ़ी। 14 अगस्त 2025 65 लाख हटे नामों की लिस्ट जारी करें। ड्राफ्ट में नाम कटने पर विवाद कम। 8 सितंबर 2025 आधार को 12वां दस्तावेज बनाएं। अधिक दस्तावेज स्वीकार, समावेशी। 16 अक्टूबर 2025 फाइनल लिस्ट प्रकाशित करने पर भरोसा। चुनाव की तैयारी तेज।
विपक्ष vs आयोग/सरकार का पक्ष विपक्ष
SIR को “नागरिकता स्क्रीनिंग” बताते हुए कहा कि यह अल्पसंख्यक/गरीब वोटरों को निशाना बना रहा। बिहार में 47 लाख नाम कटने का दावा। AIADMK (तमिलनाडु) ने समर्थन किया।
चुनाव आयोग ने कहा कि “राज्य “पीछे रहने की होड़” में हैं। कोई वोटर बिना मौका दिए न हटाया जाएगा राजनीतिक दलों को शामिल किया गया। बिहार में 45% फॉर्म एकत्र, जागरूकता अभियान चल रहे। कोर्ट का रुख संतुलित – प्रक्रिया को वैध माना, लेकिन टाइमिंग/पारदर्शिता पर सवाल। अगर “मास एक्सक्लूजन” साबित हुआ तो हस्तक्षेप करेगा।
यह मामला बिहार विधानसभा चुनाव (6-11 नवंबर 2025) से जुड़ा है, जहां SIR को “मदर ऑफ ऑल इलेक्शंस” कहा गया। पूरी रिपोर्ट से साफ है कि कोर्ट SIR को रोकने के पक्ष में नहीं, लेकिन निगरानी रखेगा। अगर अपडेट चाहिए, तो बताएं।