Written by– Sakshi Srivastava
छठ पूजा भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पूजा सूर्य देवता और उनकी पत्नी उषा देवी की पूजा अर्चना के रूप में की जाती है। इस पूजा का मुख्य आकर्षण होता है उषा अर्घ्य, जो प्रात: काल सूर्य उगने से पहले किया जाता है। यह पूजा संतान सुख, परिवार की समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए की जाती है, और साथ ही साथ यह सूर्य देवता और षष्ठी देवी की उपासना का एक तरीका भी है। विशेष रूप से महिलाएँ यह व्रत करती हैं, लेकिन समाज में परिवार के हर सदस्य की समृद्धि की कामना के साथ यह आयोजन किया जाता है।
आपको बता दें 7 नवंबर 2024 को डूबते सूर्य को अर्घ्य देने से इस पूजा का मुख्य अनुष्ठान पूरा होगा और फिर 8 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर इसका समापन होगा।
8 नवंबर 2024 को उषा अर्घ्य का समय
8 नवंबर 2024 को छठ पूजा के उषा अर्घ्य का समय सुबह 6 बजकर 38 के बीच होगा। यह समय सूर्य की पहली किरणों के साथ शुरू होता है, जब श्रद्धालु जल में खड़े होकर सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह अर्घ्य समर्पण का प्रतीक है और सूर्य देवता से जीवन की समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना की जाती है।
उषा अर्घ्य का महत्व
उषा अर्घ्य छठ पूजा का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण चरण होता है। इस दिन व्रति सूर्योदय से पहले उबटन करते हुए, व्रति शुद्धता के साथ पवित्र जल में खड़े होकर सूर्य देवता और उषा देवी की पूजा करते हैं। उषा अर्घ्य सूर्य देवता की उपासना के साथ-साथ व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की कामना की जाती है।
उषा अर्घ्य एक धार्मिक अनुष्ठान के साथ-साथ यह प्रकृति के प्रति श्रद्धा और सम्मान का भी प्रतीक है।
छठ पूजा की शुरुआत कैसे हुई थी।
छठ पूजा की शुरुआत भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन काल से मानी जाती है, और इसका संबंध सूर्य देवता और उनके साथ जुड़े विभिन्न पौराणिक कथाओं से है। यह पूजा मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाई जाती है।
कहा जाता है कि छठ पूजा का संबंध महाभारत के समय से भी है, जब पांडवों ने सूर्य देवता से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यह पूजा की थी। एक और प्रमुख कथा के अनुसार, यह पूजा एक द्रव्य विशेष पूजा के रूप में शुरू हुई थी, जिसमें कन्नौज के राजा द्वारा सूर्य देवता को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखा गया था।
इसके अलावा, लोक मान्यताओं के अनुसार, छठ पूजा की शुरुआत सूर्य देवता की पूजा करने के एक परंपरा से हुई थी, जिसमें सूर्य की किरणों से जीवन की शक्ति को और प्राकृतिक बलों को सम्मानित किया जाता है। खासतौर से यह पूजा महिलाओं द्वारा की जाती है, जो अपने परिवार की सुख-समृद्धि और स्वस्थ जीवन के लिए सूर्य देवता की उपासना करती हैं।
आपने जो पौराणिक कथा और व्रत की महिमा बताई, वह छठ पूजा के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती है। जैसा कि आपने बताया, राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी की संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी करने के लिए महर्षि कश्यप के मार्गदर्शन में यज्ञ हुआ था। जब उनके पुत्र का जन्म मृत्युप्राप्त हुआ, तब देवी षष्ठी ने राजा को आशीर्वाद दिया और उन्हें संतान की प्राप्ति का वचन दिया। इसके बाद राजा ने देवी षष्ठी की पूजा की और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को व्रत कर पूजा की, जिससे उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ। इसी घटना के बाद से छठ पूजा का आयोजन शुरू हुआ।
देवी षष्ठी को बच्चे की रक्षा करने वाली, आयु देने वाली और विशेष रूप से माताओं की रक्षा करने वाली देवी माना जाता है। यही कारण है कि इस पूजा में विशेष रूप से संतान सुख, परिवार की सुख-समृद्धि और बच्चों की अच्छी सेहत के लिए प्रार्थना की जाती है।
छठ पूजा का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह पूजा सूर्य देवता और षष्ठी देवी की पूजा का संयोजन है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं—प्राकृतिक ऊर्जा, स्वास्थ्य, समृद्धि, और संतति की सुरक्षा—का प्रतीक हैं।
आपने सही उल्लेख किया कि चैत्र और कार्तिक माह की षष्ठी तिथि पर यह पूजा विशेष महत्व रखती है। इस दिन व्रति पूरे मनोयोग से उपवास रखते हुए सूर्य देव और षष्ठी देवी की आराधना करते हैं। यह पूजा न केवल धार्मिक आस्थाओं का प्रतीक है, बल्कि समाज में पारंपरिक आस्थाओं और संस्कारों को भी संजोने का एक महत्वपूर्ण अवसर बन चुकी है।
समय के साथ, यह पूजा समाज के विभिन्न हिस्सों में फैल गई और अब इसे विशेष रूप से एक सामाजिक और धार्मिक आयोजन के रूप में मनाया जाता है।