Written by- Sakshi Srivastava
अढ़ाई दिन का झोपड़ा, जो देश की प्राचीन मस्जिदों में से एक मानी जाती है, हाल के समय में विवादों का केंद्र बन चुका है। इस बार विवाद का मुद्दा यहां नमाज अदा करने को लेकर उठ रहा है। हाल ही में, हिंदू और जैन संतों ने यहां आकर नमाज पढ़ने का विरोध किया। उनका कहना है कि मस्जिद के गर्भगृह और दीवारों पर जो खंभे हैं, वे स्पष्ट रूप से हिंदू और जैन मंदिरों की वास्तुकला शैली से मेल खाते हैं, जिससे यह मस्जिद धार्मिक दृष्टि से विवादास्पद बन गई है।
असल में, साल की शुरुआत में जब एक जैन साधु अढ़ाई दिन का झोपड़ा देखने के लिए पहुंचे, तो उन्हें कुछ समुदाय विशेष के लोगों ने रोक दिया। इस घटना के बाद विवाद और भी बढ़ गया, क्योंकि अढ़ाई दिन का झोपड़ा एक प्रमुख पर्यटन स्थल है, जिसकी देखरेख भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा की जाती है। इस घटना ने अजमेर और पूरे देश के जैन समुदाय में आक्रोश पैदा किया, और उन्होंने प्रशासन के सामने अपनी आपत्तियां दर्ज कराई।
‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद का निर्माण 1192 ई. में अफगान सेनापति मोहम्मद गोरी के आदेश पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने कराया था। इस स्थान पर पहले एक विशाल संस्कृत विद्यालय और मंदिर स्थित थे, जिन्हें ध्वस्त करके मस्जिद का रूप दिया गया। मस्जिद के मुख्य द्वार के बाईं ओर संगमरमर पर एक शिलालेख है, जिसमें उस पुराने विद्यालय का उल्लेख संस्कृत में किया गया है।
इस मस्जिद में कुल 70 स्तंभ हैं, जो उन प्राचीन मंदिरों से लिए गए थे जिन्हें तोड़ा गया था, लेकिन इन स्तंभों को वैसा का वैसा छोड़ दिया गया। इन स्तंभों की ऊंचाई लगभग 25 फीट है और हर एक पर खूबसूरत नक्काशी की गई है। 90 के दशक में, इस स्थल पर कई प्राचीन मूर्तियां बिखरी पड़ी मिली थीं, जिन्हें बाद में संरक्षित किया गया। इन सभी तत्वों ने इस स्थल को ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बना दिया है।
अढ़ाई दिन का झोपड़ा नाम की लंबी कहानी है। माना जाता है कि तब मोहम्मद गोरी पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद अजमेर से गुजर रहा था। इसी दौरान उसे वास्तु के लिहाज से बेहद उम्दा हिंदू धर्मस्थल नजर आए। गोरी ने अपने सेनापति कुदुबुद्दीन ऐबक को आदेश दिया कि इनमें से सबसे सुंदर स्थल पर मस्जिद बना दी जाए. गोरी ने इसके लिए 60 घंटों यानी ढाई दिन का वक्त दिया। गोरी के दौरान हेरात के वास्तुविद अबु बकर ने इसका डिजाइन तैयार किया था। जिसपर हिंदू ही कामगारों ने 60 घंटों तक लगातार बिना रुके काम किया और मस्जिद तैयार कर दी।