
बिहार डेस्क
बिहार की राजधानी पटना में हाल के महीनों में डोमिसाइल नीति (स्थानीय निवास आधारित आरक्षण) को लागू करने की मांग को लेकर छात्रों का आंदोलन तेज हो गया है। छात्रों की मुख्य मांग है कि बिहार में सरकारी नौकरियों, खासकर शिक्षक भर्ती (TRE), पुलिस भर्ती (दारोगा/सिपाही), बीपीएससी, बीएसएससी और अन्य सरकारी सेवाओं में स्थानीय निवासियों को प्राथमिकता दी जाए। उनका कहना है कि अन्य राज्यों जैसे झारखंड, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में डोमिसाइल नीति लागू होने से स्थानीय युवाओं को रोजगार में लाभ मिलता है, लेकिन बिहार में ऐसी नीति की कमी के कारण स्थानीय युवा बेरोजगारी और पलायन का शिकार हो रहे हैं।
हाल की घटनाएँ और प्रदर्शन
1 अगस्त: बिहार स्टूडेंट यूनियन (BSU) के बैनर तले सैकड़ों छात्रों ने पटना कॉलेज से मार्च शुरू किया, जो गांधी मैदान, जेपी गोलंबर, और डाकबंगला चौराहे तक पहुंचा।
2 जुलाई: हजारों छात्रों ने भारी बारिश के बावजूद पटना कॉलेज से डाकबंगला चौराहे तक मार्च निकाला। प्रदर्शनकारी गांधी मैदान, मुसल्लहपुर हाट, भिखना पहाड़ी, नया टोला, मछुआ टोली, और हथुआ मार्केट जैसे प्रमुख मार्गों से होते हुए मुख्यमंत्री आवास की ओर बढ़े।
“वोट दे बिहारी, नौकरी ले बाहरी, अब नहीं चलेगा”
प्रदर्शनकारियों ने “वोट दे बिहारी, नौकरी ले बाहरी, अब नहीं चलेगा” जैसे नारे लगाए और बिहार सरकार से नौकरियों में 90-100% डोमिसाइल नीति लागू करने की मांग की। शिक्षक भर्ती (TRE-4): प्राथमिक शिक्षक भर्ती में 100% डोमिसाइल आरक्षण और माध्यमिक/उच्च माध्यमिक शिक्षक भर्ती में 90% आरक्षण। बीपीएससी, बीएसएससी, पुलिस (दारोगा/सिपाही), लाइब्रेरियन आदि में कम से कम 90% सीटें बिहार के मूल निवासियों के लिए आरक्षित की जाएं। छात्रों का तर्क है कि बिहार के संसाधनों और नौकरियों पर पहला हक स्थानीय युवाओं का होना चाहिए, क्योंकि अन्य राज्यों के अभ्यर्थी बिहार में नौकरियाँ ले रहे हैं, जिससे स्थानीय युवाओं का हक छिन रहा है।
पुलिस से झड़प और लाठीचार्ज
2 जुलाई को डाकबंगला चौराहे पर पुलिस ने बैरिकेड लगाकर प्रदर्शनकारियों को मुख्यमंत्री आवास की ओर बढ़ने से रोका। जब छात्रों ने बैरिकेड तोड़ने की कोशिश की, तो पुलिस ने हल्का लाठीचार्ज किया, जिसमें कई छात्र घायल हुए। छह प्रदर्शनकारियों, जिनमें दो महिलाएँ शामिल थीं, को हिरासत में लिया गया।
1 अगस्त को जेपी गोलंबर पर पुलिस ने बैरिकेडिंग की, और छात्रों के साथ धक्का-मुक्की हुई। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए बल प्रयोग किया, जिससे तनाव की स्थिति बनी। प्रदर्शन के दौरान सड़क जाम होने से यातायात प्रभावित हुआ, और पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भारी बल तैनात किया। छात्र नेता दिलीप कुमार इस आंदोलन के प्रमुख चेहरा रहे हैं। उन्होंने बिहार के सभी जिलों से छात्रों को एकजुट होने का आह्वान किया। बिहार स्टूडेंट यूनियन (BSU) ने आंदोलन को संगठित किया और सरकार को सात दिन का अल्टीमेटम दिया कि यदि मांगें नहीं मानी गईं, तो आंदोलन और तेज होगा।
छात्रों को विपक्ष का समर्थन
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव ने 2020 के चुनाव में 85% डोमिसाइल नीति का वादा किया था, लेकिन सत्ता में रहते हुए इसे लागू नहीं किया। अब विपक्ष में रहकर वे इस मुद्दे पर सरकार को घेर रहे हैं। जन सुराज के प्रशांत किशोर ने आंदोलन का समर्थन करते हुए नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, और डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि बिहार के युवाओं के साथ धोखा हो रहा है।
सरकार ने अभी तक डोमिसाइल नीति पर कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया है। कुछ नेताओं ने इसे लागू करने की संभावना से इनकार किया है।
बिहार में सियासी तापमान बढ़ा
2 अगस्त तक आंदोलन ने बिहार में सियासी तापमान बढ़ा दिया है, खासकर 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले। सोशल मीडिया पर यह मुद्दा ट्रेंड कर रहा है, और छात्र संगठनों ने इसे हर गांव और पंचायत तक ले जाने की चेतावनी दी है। छात्रों ने स्पष्ट किया है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, आंदोलन जारी रहेगा। प्रशासन ने प्रदर्शन को अनधिकृत बताते हुए सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी है, लेकिन छात्र अपनी मांगों पर अड़े हैं। कुछ प्रदर्शनकारियों ने पड़ोसी राज्यों (झारखंड, उत्तराखंड) का उदाहरण दिया, जहाँ डोमिसाइल नीति से स्थानीय युवाओं को लाभ मिल रहा है।
छात्र संगठनों ने चेतावनी दी
छात्रों का कहना है कि डोमिसाइल नीति की कमी के कारण बिहार के युवा बेरोजगारी और पलायन का सामना कर रहे हैं। यह मुद्दा बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है। विपक्षी दल इसे भुनाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि सरकार पर दबाव बढ़ रहा है। छात्र संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो आंदोलन को और व्यापक किया जाएगा।
बिहार के युवाओं का भविष्य
पटना में डोमिसाइल नीति को लेकर छात्रों का आंदोलन बिहार में बेरोजगारी और स्थानीय युवाओं के हक की लड़ाई का प्रतीक बन गया है। पुलिस के साथ झड़प और लाठीचार्ज ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया है। सरकार की ओर से अभी तक कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है, जिसके कारण यह आंदोलन और तेज होने की संभावना है। यह मुद्दा न केवल सामाजिक और आर्थिक, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह बिहार के युवाओं के भविष्य और राज्य की नौकरी नीतियों से जुड़ा है।