
आयुष गांधी
नई दिल्ली
आज पूरा देश 79वां स्वतंत्रता दिवस बड़े ही हर्षोल्लास, गर्व और राष्ट्रभक्ति के साथ मना रहा है। लाल किले की प्राचीर से लेकर गांव की चौपाल तक, हर कोना तिरंगे की शान से रोशन है। यह दिन सिर्फ जश्न का नहीं, बल्कि उन वीर जवानों को श्रद्धांजलि देने का भी दिन है जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर भारत को स्वतंत्रता दिलाई।
इसी मौके पर पत्रकार और लेखक प्रकाश मेहरा ने अपने विशेष लेख में स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को याद करते हुए अपनी मार्मिक कविता “स्वतंत्रता का दीप” के माध्यम से वीर जवानों के संघर्षों को शब्दों में पिरोया है।
“स्वतंत्रता का दीप” – प्रकाश मेहरा
धरती बोली लहू से सींचा, फूल बना हर वीर,
संघर्षों की छांव तले, खिला स्वतंत्रता का नीर।
न झुकी थी, न झुकेगी, ये माटी अभिमानी है,
हर दिल में तिरंगा अब, जीवन की कहानी है।
नए सवेरे का सूरज हम, अब खुद रोशनी देंगे,
भ्रष्ट अंधेरों के सीने पर, फिर सच के दीप जलेंगे।
याद रखें हर कुर्बानी को, न हो कोई भूल,
देशभक्ति अब हो कर्मों में, न केवल स्कूल!
संघर्ष से स्वतंत्रता तक
प्रकाश मेहरा की कविता सिर्फ शब्द नहीं, एक जीवंत दस्तावेज है – जो उस अदृश्य त्याग को सामने लाती है, जिसे हम अक्सर सिर्फ किताबों में पढ़ते हैं। उनके शब्दों में वो तपिश है, जो वीर जवानों की सीने में जलती थी। उनके अनुसार, “हमारी आज़ादी सिर्फ 15 अगस्त का दिन नहीं है, यह हर उस आहट का प्रतीक है, जो किसी माँ की गोद से उठे बेटे ने देश के नाम कर दी।”
जनता का भावनात्मक जुड़ाव
देशभर में लोगों ने इस कविता को सोशल मीडिया पर साझा कर इसे ‘देशभक्ति की नई आवाज़’ कहा है। स्कूलों, कॉलेजों और विभिन्न सरकारी आयोजनों में इस कविता की पंक्तियाँ गूंज उठीं। बच्चों ने चित्रों और रंगों के माध्यम से इसके भाव को दर्शाया, तो बुजुर्गों की आंखों में बीते दिनों की यादें ताज़ा हो गईं।
आज का दिन है श्रद्धांजलि देने का, कृतज्ञता जताने का, और संकल्प लेने का – कि हम उस दीप को कभी बुझने नहीं देंगे जिसे वीर जवानों ने जलाया था। “स्वतंत्रता का दीप” सिर्फ एक कविता नहीं, बल्कि हर भारतीय के दिल में जलता एक संकल्प है।