
स्पेशल डेस्क
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया को लेकर विपक्ष द्वारा उठाए गए सवालों और विरोध के जवाब में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार ने कई महत्वपूर्ण बयान दिए हैं। यह मुद्दा बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण को लेकर गहराए विवाद से जुड़ा है, जिस पर विपक्ष ने सत्तारूढ़ एनडीए के पक्ष में साजिश और मतदाताओं के अधिकारों के हनन का आरोप लगाया है। इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिकाएं दायर की गई हैं। आइए मुख्य चुनाव आयुक्त के जवाब और इस मुद्दे से जुड़ी पूरी रिपोर्ट एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते है।
मुख्य चुनाव आयुक्त का जवाब
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने SIR प्रक्रिया का बचाव करते हुए विपक्ष से कई तीखे सवाल पूछे, जो इस प्रक्रिया की पारदर्शिता और आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। उनके प्रमुख बयान निम्नलिखित हैं:मृत, फर्जी और अपात्र मतदाताओं पर सवाल:ज्ञानेश कुमार ने विपक्ष से पूछा, “क्या चुनाव आयोग को मृत मतदाताओं, स्थायी रूप से पलायन कर चुके मतदाताओं, दो जगहों पर पंजीकृत मतदाताओं, फर्जी मतदाताओं या विदेशी मतदाताओं को वोटर लिस्ट में शामिल करने की अनुमति देनी चाहिए?”
उन्होंने कहा कि “क्या आयोग को ऐसी प्रक्रिया को बढ़ावा देना चाहिए जो संविधान के खिलाफ हो और फर्जी वोटिंग का रास्ता खोले। उदाहरण के लिए, उन्होंने बिहार में अब तक की SIR प्रक्रिया में 21 लाख मृत मतदाताओं, 31 लाख स्थायी रूप से पलायन कर चुके मतदाताओं और 7 लाख दोहरे पंजीकरण वाले मतदाताओं की पहचान का हवाला दिया।
पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया
ज्ञानेश कुमार ने जोर देकर कहा कि SIR एक पूरी तरह पारदर्शी प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची को शुद्ध करना और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना है। उन्होंने इसे “लोकतंत्र की आधारशिला” करार दिया। उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों से सलाह-मशविरा किया गया और 1.5 लाख से अधिक बूथ लेवल एजेंट्स (BLA) नियुक्त किए गए, जो पात्र मतदाताओं से संपर्क कर रहे हैं।
आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि 2003 की मतदाता सूची में शामिल 4.96 करोड़ मतदाताओं को कोई अतिरिक्त दस्तावेज जमा करने की आवश्यकता नहीं है, जबकि शेष 3 करोड़ मतदाताओं को 11 में से कोई एक दस्तावेज जमा करना होगा।
विपक्ष के आरोपों का खंडन
विपक्ष के आरोपों पर जवाब देते हुए, ज्ञानेश कुमार ने कहा कि SIR प्रक्रिया को “लोकतंत्र की हत्या” बताना गलत है। उन्होंने पूछा, “क्या आयोग लोकतंत्र की हत्या होने दे?” उन्होंने यह भी कहा कि विपक्षी दल, जो अब इस प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं, पहले मतदाता सूची में सुधार की मांग करते रहे हैं। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में कहा कि SIR प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 326, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 16 और 19, और अधिनियम 1951 की धारा 62 के अनुरूप है, जो मतदाता पात्रता को परिभाषित करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट में प्रक्रिया की वैधता
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं के जवाब में, आयोग ने कहा कि “SIR का उद्देश्य अपात्र मतदाताओं को हटाना और पात्र मतदाताओं को शामिल करना है। आयोग ने स्वीकार किया कि “इतनी बड़ी प्रक्रिया में कुछ गलतियां हो सकती हैं, जिसके लिए ड्राफ्ट मतदाता सूची पर दावा-आपत्तियां मांगी गई हैं।
कोर्ट में यह भी बताया गया कि “पिछले चार महीनों में 5,000 से अधिक बैठकें की गईं, जिनमें 28,000 से अधिक लोग, जिसमें राजनीतिक दलों के नेता शामिल थे, भाग ले चुके हैं। ज्ञानेश कुमार ने कहा कि इन सवालों पर सभी को, विशेष रूप से भारत के नागरिकों को, राजनीतिक विचारधाराओं से ऊपर उठकर गहराई से विचार करना होगा। उन्होंने इसे “आवश्यक चिंतन” का समय बताया।
विपक्ष के सवाल और आरोप
विपक्ष, विशेष रूप से राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस, और अन्य इंडिया गठबंधन के दलों ने SIR प्रक्रिया पर कई आपत्तियां उठाई हैं मतदाताओं के अधिकारों का हनन विपक्ष का दावा है कि “SIR प्रक्रिया के जरिए लाखों पात्र मतदाताओं, विशेष रूप से गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के, नाम वोटर लिस्ट से हटाए जा रहे हैं, जिससे उनका मताधिकार छिन सकता है।
एनजीओ ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (ADR) और विपक्षी नेताओं जैसे मनोज झा और योगेंद्र यादव ने दावा किया कि SIR प्रक्रिया गैर-पारदर्शी है और इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ERO) को अनियंत्रित अधिकार देती है। RJD के मनोज झा ने कहा कि पहली बार मतदाताओं से नागरिकता का दस्तावेजी प्रमाण मांगा जा रहा है, जो पहले सिर्फ जन्मतिथि और निवास के प्रमाण तक सीमित था।
ADR ने आरोप लगाया कि कुछ बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) बिना मतदाताओं की जानकारी के फॉर्म भर रहे हैं, और मृत लोगों के नाम से भी आवेदन जमा हो रहे हैं। RJD नेता तेजस्वी यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने SIR को “लोकतंत्र के खिलाफ साजिश” और “वोट चोरी” करार दिया।
SIR प्रक्रिया का उद्देश्य
SIR का उद्देश्य मतदाता सूची को अपडेट करना और मृत, पलायन कर चुके, दोहरे पंजीकरण वाले, या अपात्र मतदाताओं को हटाकर एक शुद्ध और विश्वसनीय सूची तैयार करना है। यह प्रक्रिया जून 2025 में शुरू हुई और 25 जुलाई तक चली। इसके बाद 1 अगस्त को ड्राफ्ट मतदाता सूची प्रकाशित की गई।
बिहार में SIR के पहले चरण में 7.24 करोड़ मतदाता बचे, जबकि 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए, जिनमें 20 लाख मृत, 28 लाख पलायन कर चुके, 7 लाख दोहरे पंजीकरण वाले, और 1 लाख ऐसे मतदाता शामिल हैं जिनका पता नहीं चला। 2003 की मतदाता सूची में शामिल मतदाताओं को अतिरिक्त दस्तावेज की जरूरत नहीं, लेकिन नए मतदाताओं को 11 में से कोई एक दस्तावेज जमा करना होगा। आधार और राशन कार्ड को स्वीकार्य दस्तावेजों से हटाने का मुद्दा भी विवाद का हिस्सा है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
SIR के खिलाफ 28 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं, जिनमें इसे असंवैधानिक और गैर-पारदर्शी बताया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को आयोग को आधार, राशन कार्ड, और वोटर आईडी को स्वीकार करने का निर्देश दिया था, लेकिन आयोग ने आधार को स्वीकार न करने का तर्क दिया। 12 अगस्त को हुई सुनवाई में, याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि 65 लाख लोगों के नाम गलत तरीके से हटाए गए, और कुछ जीवित लोगों को मृत घोषित किया गया। आयोग ने जवाब में कहा कि ड्राफ्ट लिस्ट पर दावा-आपत्तियां मांगी गई हैं, और बड़ी प्रक्रिया में कुछ गलतियां स्वाभाविक हैं।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
तेजस्वी यादव ने SIR को “वोटबंदी” करार देते हुए कहा कि बिहार के एक भी व्यक्ति का नाम वोटर लिस्ट से नहीं कटना चाहिए। उन्होंने चुनाव बहिष्कार की धमकी भी दी।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे “वोट चोरी” बताया और संसद में विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया। विपक्षी दलों ने संसद के मकर द्वार पर प्रदर्शन किया, जिसमें सोनिया गांधी भी शामिल थीं, और “SIR – लोकतंत्र पर वार” जैसे नारे लगाए गए।
SIR का उद्देश्य निष्पक्ष और पारदर्शी
आयोग का कहना है कि “SIR का उद्देश्य निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करना है, और यह प्रक्रिया बिहार के बाद पूरे देश में चरणबद्ध तरीके से लागू की जाएगी।” आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि “वह न तो किसी पक्ष और न ही विपक्ष के साथ है, बल्कि सभी दलों को समकक्ष मानता है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में, ज्ञानेश कुमार ने कहा कि पिछले दो दशकों से सभी दल मतदाता सूची में सुधार की मांग करते रहे हैं, और SIR उसी का हिस्सा है।
सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने SIR प्रक्रिया को लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक बताते हुए विपक्ष के आरोपों को खारिज किया है। उनके सवालों ने विपक्ष को जवाब देने के लिए मजबूर किया है, विशेष रूप से मृत और अपात्र मतदाताओं को वोटर लिस्ट में रखने के मुद्दे पर। हालांकि, विपक्ष का विरोध और सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई इस मुद्दे को और जटिल बनाए हुए हैं। आयोग का दावा है कि SIR से कोई भी पात्र मतदाता नहीं छूटेगा, और यह प्रक्रिया निष्पक्ष चुनाव के लिए जरूरी है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला और विपक्ष की आगे की रणनीति इस विवाद की दिशा तय करेगी।
देखिए चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस