
स्पेशल डेस्क
लोकसभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तीन महत्वपूर्ण विधेयक पेश किए, जिन्हें मीडिया में “क्रिमिनल नेता बिल” के रूप में चर्चा मिल रही है। ये विधेयक हैं संविधान (130वां संशोधन) विधेयक 2025, केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक 2025, और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025। इनका मुख्य उद्देश्य गंभीर आपराधिक आरोपों में 30 दिनों से अधिक समय तक हिरासत में रहने वाले प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, या राज्य मंत्रियों को उनके पद से हटाने का प्रावधान करना है। सरकार इसे भ्रष्टाचार और आपराधिक गतिविधियों के खिलाफ कड़ा कदम बता रही है, जबकि विपक्ष ने इसे लोकतंत्र विरोधी और संविधान के खिलाफ करार देते हुए तीखा विरोध किया है।
बिल के प्रमुख प्रावधान
यदि कोई प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, या राज्य मंत्री गंभीर आपराधिक आरोपों (जिनमें 5 साल या उससे अधिक की सजा का प्रावधान हो) में 30 दिनों तक हिरासत में रहता है, तो उसे 31वें दिन स्वतः पद छोड़ना होगा। यह नियम केंद्र और राज्यों के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेशों के नेताओं पर भी लागू होगा।अमित शाह ने इन विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजने का प्रस्ताव रखा है ताकि व्यापक चर्चा हो सके।
भ्रष्टाचार और अपराध पर लगाम
सरकार का कहना है कि यह बिल राजनीति में भ्रष्टाचार और आपराधिक तत्वों को खत्म करने के लिए है। अमित शाह ने लोकसभा में कहा कि उन्होंने स्वयं 2010 में झूठे मामले में जेल जाने पर नैतिकता के आधार पर पद छोड़ा था, और ऐसे नेताओं को पद पर बने रहने का कोई हक नहीं जो गंभीर आरोपों में हिरासत में हों। सरकार इसे स्वच्छ प्रशासन की दिशा में कदम बता रही है, जिससे जनता का विश्वास शासन व्यवस्था पर बढ़ेगा।
विपक्ष की प्रतिक्रिया धड़का दिल !
विपक्ष ने इस बिल को लोकतंत्र विरोधी, संविधान के खिलाफ, और विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने की साजिश करार दिया है। विपक्षी दलों ने सदन में तीखा विरोध किया, जिसमें कुछ सांसदों ने बिल की प्रतियां फाड़कर अमित शाह की ओर फेंकीं और नारेबाजी की। सदन में हंगामे के कारण कार्यवाही को दोपहर 3 बजे तक स्थगित करना पड़ा।
लोकतंत्र और संविधान पर हमला
प्रियंका गांधी वाड्रा (कांग्रेस) ने इसे “संविधान-विरोधी” और “अलोकतांत्रिक” बताया। उन्होंने कहा कि “इस प्रावधान का दुरुपयोग कर किसी भी मुख्यमंत्री को झूठे मामलों में 30 दिन के लिए गिरफ्तार कर पद से हटाया जा सकता है, बिना अदालत में दोष सिद्ध हुए।
महुआ मोइत्रा (टीएमसी) ने इसे संघीय ढांचे और न्यायपालिका के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियों का दुरुपयोग कर विपक्षी नेताओं को फंसा सकती है।
असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM) ने बिल को असंवैधानिक बताते हुए कहा कि यह देश को “पुलिस राज्य” बनाने की कोशिश है और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने की आशंका
विपक्ष का आरोप है कि यह बिल केंद्र सरकार को गैर-भाजपा शासित राज्यों की सरकारों को अस्थिर करने का हथियार देगा। साकेत गोखले (टीएमसी) ने कहा कि पिछले 11 वर्षों में भाजपा के किसी मंत्री को गिरफ्तार नहीं किया गया, जबकि विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया गया।
उदाहरण के तौर पर, अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी का जिक्र किया गया। केजरीवाल ने जेल से इस्तीफा नहीं दिया था, जबकि सोरेन ने पद छोड़ दिया था। विपक्ष का कहना है कि यह बिल ऐसी स्थिति में नेताओं को जबरन हटाने का रास्ता खोलेगा।
न्यायिक प्रक्रिया का हनन
विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह बिल बिना अदालती दोषसिद्धि के नेताओं को हटाने का प्रावधान करता है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
विपक्षी सांसदों ने बिल पेश होने के दौरान लोकसभा की वेल में आकर नारेबाजी की और बिल की प्रतियां फाड़ीं। एक सांसद ने कहा, “हम टेबल तोड़ देंगे, बिल फाड़ देंगे।” डेरेक ओ’ब्रायन (टीएमसी) ने सरकार पर संसद को मजाक बनाने और लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने का आरोप लगाया।
यह सही कदम है: प्रशांत किशोर
प्रशांत किशोर (जन सुराज पार्टी) उन्होंने बिल का समर्थन करते हुए कहा कि “यह सही कदम है, क्योंकि संविधान निर्माताओं को शायद नहीं पता था कि सत्ता में बैठे लोग इतने भ्रष्ट हो सकते हैं कि उन्हें जेल जाना पड़े।”
जन लोकपाल आंदोलन की याद
यह बिल अन्ना हजारे के नेतृत्व वाले जन लोकपाल आंदोलन की याद दिलाता है, जिसमें प्रधानमंत्री तक को भ्रष्टाचार के दायरे में लाने की मांग थी। हालांकि, विपक्ष ने इसकी तुलना उस आंदोलन से करते हुए इसे राजनीतिक हथियार बताया।
विपक्ष का कहना है कि “केंद्र सरकार ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्षी नेताओं को फंसाने के लिए कर सकती है, जिससे गैर-भाजपा सरकारें अस्थिर होंगी।”
न्यायिक प्रक्रिया की अनदेखी
बिल में बिना दोष सिद्ध हुए पद से हटाने का प्रावधान संविधान के मूल ढांचे और “नैसर्गिक न्याय” के सिद्धांतों के खिलाफ माना जा रहा है। विपक्ष का आरोप है कि “यह बिल राजनीतिक विरोधियों को ठिकाने लगाने का हथियार है, न कि भ्रष्टाचार विरोधी कदम।”
अमित शाह ने बिल को संयुक्त संसदीय समिति को भेजने का प्रस्ताव रखा है, जिससे इस पर और चर्चा होगी। विपक्ष ने साफ कर दिया है कि वह इस बिल को पास नहीं होने देगा। आने वाले दिनों में संसद में और हंगामा होने की संभावना है। कुछ विपक्षी दलों और नेताओं ने सड़कों पर उतरने की चेतावनी दी है, जैसा कि किसान आंदोलन में हुआ था।
देश की राजनीति में भी गर्म
“क्रिमिनल नेता बिल” के नाम से चर्चित यह विधेयक भ्रष्टाचार और आपराधिक गतिविधियों पर अंकुश लगाने का सरकार का दावा है, लेकिन विपक्ष इसे लोकतंत्र और संविधान पर हमला मानता है। बिल का भविष्य अब जेपीसी की चर्चा और संसद में होने वाले टकराव पर निर्भर करेगा। यह मुद्दा न केवल संसद बल्कि देश की राजनीति में भी गर्म रहने वाला है।