
स्पेशल डेस्क
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्नातक डिग्री से संबंधित जानकारी सार्वजनिक करने का निर्देश दिया गया था। यह मामला 2016 में शुरू हुआ, जब आरटीआई कार्यकर्ता नीरज ने 1978 में बीए की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड की जांच की मांग की थी, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी का नाम भी शामिल था।
CIC ने दिसंबर 2016 में दिल्ली विश्वविद्यालय को 1978 के बीए रिकॉर्ड की जांच की अनुमति दी थी, यह तर्क देते हुए कि प्रधानमंत्री जैसे सार्वजनिक व्यक्ति की शैक्षिक योग्यता पारदर्शिता के लिए सार्वजनिक दस्तावेज मानी जानी चाहिए।
दिल्ली विश्वविद्यालय की याचिका
दिल्ली विश्वविद्यालय ने 2017 में इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी। विश्वविद्यालय ने तर्क दिया कि शैक्षिक रिकॉर्ड “फिड्यूशियरी कैपेसिटी” (विश्वास की जिम्मेदारी) में रखे जाते हैं और इन्हें निजी जानकारी माना जाता है। विश्वविद्यालय ने कहा कि “वह कोर्ट के समक्ष रिकॉर्ड पेश करने को तैयार है, लेकिन आरटीआई के तहत “अजनबियों” द्वारा जांच के लिए इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।”
हाई कोर्ट का फैसला
जस्टिस सचिन दत्ता ने 27 फरवरी 2025 को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा था और 25 अगस्त को इसे सुनाया। कोर्ट ने माना कि “निजता का अधिकार (भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत) सूचना के अधिकार से ऊपर है, खासकर जब तक कोई स्पष्ट जनहित साबित न हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि “केवल जिज्ञासा या राजनीतिक कारणों से निजी जानकारी का खुलासा नहीं किया जा सकता।”
दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर से
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि “निजता का अधिकार “जानने के अधिकार” से अधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय छात्रों की जानकारी को नैतिक जिम्मेदारी के तहत सुरक्षित रखता है।
आरटीआई आवेदक की ओर से
सीनियर वकील संजय हेगड़े ने तर्क दिया कि “आरटीआई अधिनियम जनहित में शैक्षिक रिकॉर्ड के खुलासे की अनुमति देता है, क्योंकि डिग्री सार्वजनिक मान्यता है और पहले विश्वविद्यालयों द्वारा नोटिस बोर्ड, वेबसाइट या समाचार पत्रों में प्रकाशित की जाती थी।”
पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग
यह फैसला निजता के अधिकार को मजबूत करता है, लेकिन पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग को लेकर सवाल उठा सकता है। विपक्षी दल, खासकर आम आदमी पार्टी (AAP), ने पहले भी इस मुद्दे को उठाया था। गुजरात हाई कोर्ट ने 2023 में भी इसी तरह के एक मामले में CIC के आदेश को रद्द किया था और AAP नेता अरविंद केजरीवाल पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया था।
क्या है आगे की संभावना ?
दोनों पक्ष इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं, जिससे यह मामला और जटिल हो सकता है। यह विवाद निजता और सार्वजनिक पारदर्शिता के बीच संतुलन को लेकर एक महत्वपूर्ण कानूनी बहस का हिस्सा बना हुआ है।
दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले ने स्पष्ट किया कि “दिल्ली विश्वविद्यालय को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्नातक डिग्री की जानकारी सार्वजनिक करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। यह निर्णय निजता के अधिकार को प्राथमिकता देता है और आरटीआई के दुरुपयोग को रोकने की दिशा में एक कदम माना जा सकता है। हालांकि, इस मामले का राजनीतिक और कानूनी महत्व इसे भविष्य में और चर्चा में रख सकता है।