
स्पेशल डेस्क
जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के प्रमुख और आतंकी फंडिंग मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे यासीन मलिक ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया है, जिसमें उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह पर सनसनीखेज आरोप लगाया है। मलिक का दावा है कि 2006 में पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के संस्थापक और 26/11 मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड हाफिज सईद से उनकी मुलाकात भारतीय खुफिया एजेंसियों (इंटेलिजेंस ब्यूरो – IB) के कहने पर हुई थी। इसके बाद, जब वे भारत लौटे, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने व्यक्तिगत रूप से उन्हें धन्यवाद दिया और उनकी “प्रयासों, धैर्य और समर्पण” की सराहना की। यह दावा 25 अप्रैल 2025 को दाखिल हलफनामे में किया गया है, जो हाल ही में सार्वजनिक हुआ है। आइए पूरे मामले को विस्तार में एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं।
यूनाइटेड जिहाद काउंसिल की बैठक
मलिक के अनुसार, 2005 में कश्मीर में आए विनाशकारी भूकंप के बाद वे पाकिस्तान गए थे, जहां भूकंप राहत कार्य के लिए आमंत्रित किया गया था। इससे पहले, दिल्ली में IB के तत्कालीन स्पेशल डायरेक्टर वी.के. जोशी ने उनसे मुलाकात की और अनुरोध किया कि वे पाकिस्तानी राजनीतिक नेताओं के अलावा हाफिज सईद और अन्य उग्रवादी नेताओं से भी बात करें। जोशी का कथित तर्क था कि “कश्मीर मुद्दे पर शांति प्रक्रिया तभी सफल होगी, जब उग्रवादी तत्वों को भी शामिल किया जाए।” मलिक ने दावा किया कि उन्होंने सईद के साथ यूनाइटेड जिहाद काउंसिल की बैठक में भाग लिया और वहां शांति का संदेश दिया।
भारत लौटने के बाद
मलिक ने कहा कि पाकिस्तान से दिल्ली लौटते ही जोशी ने होटल में डीब्रीफिंग की और उन्हें प्रधानमंत्री को तुरंत ब्रीफ करने को कहा। उसी शाम, मलिक ने पीएमओ में मनमोहन सिंह से मुलाकात की, जहां राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) एम.के. नारायणन भी मौजूद थे। मलिक ने अपनी मुलाकातों का ब्योरा दिया, तो सिंह ने कथित रूप से कहा: “मेरे प्रयासों, समय, धैर्य और समर्पण के लिए धन्यवाद।” मलिक ने इसे “शांति प्रयासों का हिस्सा” बताया, लेकिन बाद में यही मुलाकात उनके खिलाफ सबूत के रूप में इस्तेमाल हुई।
हलफनामे में मलिक के दावे
हलफनामे में मलिक ने यह भी कहा कि 1990 में गिरफ्तारी के बाद छह लगातार सरकारों (वी.पी. सिंह से मनमोहन सिंह तक) ने उन्हें “सक्रिय रूप से शामिल” किया। उन्होंने पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी, सोनिया गांधी, पी. चिदंबरम, आई.के. गुजराल और राजेश पायलट जैसे नेताओं से मुलाकातों का जिक्र किया। मलिक ने अपने केस को “विश्वासघात” बताया, क्योंकि IB के ही कहने पर की गई मुलाकात को अब आतंकवाद से जोड़ा जा रहा है।
यह दावा NIA के आतंकी फंडिंग केस से जुड़ा है, जहां मलिक पर हाफिज सईद, सैयद सलाहुद्दीन और शब्बीर शाह जैसे पाक-आधारित गुटों के साथ साजिश रचने का आरोप है। 2022 में उन्होंने दोष स्वीकार किया, लेकिन मौत की सजा से बच गए।
आतंकवादियों से सौदेबाजी : बीजेपी
बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने इसे “शॉकिंग” बताते हुए कहा कि यह UPA सरकार की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति पर सवाल उठाता है। उन्होंने मलिक को “कट्टर आतंकी” कहा, जो 1990 में चार वायुसेना अधिकारियों की हत्या का दोषी है, और मांग की कि कानून की पूरी ताकत से कार्रवाई हो। मालवीय ने ट्वीट किया “यह UPA की कमजोरी का प्रमाण है, जहां आतंकवादियों से ‘शांति’ के नाम पर सौदेबाजी की गई।”
कांग्रेस की चुप्पी क्यों ?
अभी तक कांग्रेस ने कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि, X (पूर्व ट्विटर) पर यूजर्स ने इसे कांग्रेस की “गद्दारी” का सबूत बताया। कुछ पोस्ट्स में राहुल गांधी को टैग कर “आतंकवादियों से दोस्ती” का आरोप लगाया गया।
सोशल मीडिया पर बहस
X पर #YasinMalik, #ManmohanSingh और #HafizSaeed ट्रेंड कर रहा है। कई यूजर्स ने पुरानी तस्वीरें शेयर कीं, जहां मलिक 2006 में मनमोहन सिंह से मिलते दिख रहे हैं। एक यूजर ने लिखा “कांग्रेस की ‘अमन की आशा’ का असली चेहरा।” दूसरी ओर, कुछ ने इसे “बैकचैनल डिप्लोमेसी” का हिस्सा बताया, लेकिन बहुमत ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माना।
मुलाकात की तारीख 2006 (पाकिस्तान भूकंप राहत के दौरान) IB अधिकारी वी.के. जोशी (स्पेशल डायरेक्टर) पीएम मुलाकात उसी शाम, NSA एम.के. नारायणन के साथ मलिक का आरोप मुलाकात IB के अनुरोध पर, पीएम ने धन्यवाद दिया मलिक उम्रकैद काट रहे; JKLF पर 5 साल का बैन बढ़ा।
क्या यह दावा सत्यापित है?
यह मलिक का एकतरफा बयान है, जिसका कोई स्वतंत्र प्रमाण नहीं मिला। सरकार ने अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन अगर सही साबित हुआ, तो यह भारत-पाक शांति प्रक्रिया पर बड़ा सवाल खड़ा करेगा। मलिक की विश्वसनीयता संदिग्ध है, क्योंकि वे आतंकी गतिविधियों (जैसे 1990 का रावलपोरा हमला) के दोषी हैं।
यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा और राजनीतिक नैतिकता पर बहस छेड़ रहा है। क्या UPA की “शांति नीति” ने आतंकवाद को बढ़ावा दिया ? आने वाले दिनों में कोर्ट की सुनवाई और सरकारी स्पष्टीकरण पर नजर रहेगी।