
सरल डेस्क
पटना का गांधी मैदान न केवल स्वतंत्रता संग्राम और जेपी आंदोलन का साक्षी रहा है, बल्कि बिहार की आधुनिक राजनीति का केंद्र भी बन चुका है। यहां 12 फरवरी 1994 को नीतीश कुमार ने अपने तत्कालीन मित्र और मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को खुली चुनौती देकर अपनी राजनीतिक यात्रा की दिशा बदल दी थी। ठीक 31 साल बाद, 20 नवंबर को उसी मैदान में नीतीश कुमार ने रिकॉर्ड 10वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। यह घटना न केवल नीतीश के लंबे राजनीतिक सफर की मिसाल है, बल्कि बिहार में सत्ता के उतार-चढ़ाव की पूरी कहानी को भी दर्शाती है।
लालू-नीतीश दोस्ती का अंत और नई शुरुआत
1990 के दशक में बिहार में जनता दल की सरकार थी, जिसमें लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री बने। नीतीश कुमार लालू के करीबी सहयोगी थे और 1990 के विधानसभा चुनाव में लालू को मुख्यमंत्री बनाने में उनकी अहम भूमिका थी। दोनों OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) नेताओं के रूप में उभर रहे थे, लेकिन लालू का यादव-केंद्रित दबदबा कुर्मी (नीतीश का समुदाय) समेत अन्य OBC समुदायों में असंतोष पैदा कर रहा था। मुंगेरी लाल आयोग की आरक्षण सिफारिशों को लागू करने में देरी और ‘कोटा विदिन कोटा’ (आरक्षण में उप-आरक्षण) की मांग ने विवाद को भड़काया।
12 फरवरी 1994 को पटना के गांधी मैदान में कुर्मी चेतना रैली का आयोजन हुआ। आयोजक सतीश कुमार सिंह थे, जिन्होंने पूरे बिहार से कुर्मी समुदाय को लामबंद किया। रैली का मुख्य मुद्दा OBC अधिकारों की रक्षा, विशेष रूप से कुर्मी समुदाय के लिए ‘हिस्सेदारी’ (भागीदारी) की मांग था। जनसैलाब इतना विशाल था कि लालू यादव की 1993 की ‘गरीब रैली’ के रिकॉर्ड को तोड़ दिया गया।
नीतीश की चुनौती
लालू ने नीतीश को रैली न जाने की सलाह दी, लेकिन नीतीश गांधी मैदान पहुंचे। मंच पर चप्पलें फेंकी गईं, जो लालू के खिलाफ गुस्से का प्रतीक थी। नीतीश ने भाषण में कहा, “भीख नहीं, हिस्सेदारी चाहिए। जो सरकार हमारे हितों को नजरअंदाज करती है, वो सत्ता में रह नहीं सकती।” यह लालू सरकार पर सीधी चोट थी। नीतीश ने लालू को ‘डिफेंड’ करने की कोशिश की, लेकिन भीड़ के दबाव में खुलकर बगावत कर दी।
इस रैली ने लालू-नीतीश की दोस्ती तोड़ दी। 1995 के विधानसभा चुनाव में लालू ने जीत हासिल की, लेकिन नीतीश ने समता पार्टी बनाकर अलग राह चुनी। यह घटना बिहार में OBC राजनीति के विभाजन का प्रतीक बनी। बाद में 1997 के चारा घोटाले के कारण लालू को जेल हुई, और नीतीश का कद बढ़ा।
10वीं बार मुख्यमंत्री, गांधी मैदान में इतिहास रचा
2025 बिहार विधानसभा चुनाव में NDA (BJP-JDU गठबंधन) को प्रचंड बहुमत मिला। नीतीश कुमार को सर्वसम्मति से नेता चुना गया। 19 नवंबर को विधायक दल की बैठक में सम्राट चौधरी ने उनका नाम प्रस्तावित किया। शपथ ग्रहण 20 नवंबर को गांधी मैदान में आयोजित हुआ – 2010 के बाद पहली बार यहां ऐसा समारोह। राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने नीतीश को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। उनके साथ सम्राट चौधरी (BJP) और विजय कुमार सिन्हा (BJP) ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
कुल 27 सदस्यीय मंत्रिमंडल
26 मंत्रियों ने शपथ ली, जिसमें JDU से 12, BJP से 13 और HAM से 1 मंत्री शामिल। प्रमुख नाम विजय कुमार चौधरी, विजेंद्र प्रसाद यादव, श्रवण कुमार, मंगल पांडेय, दिलीप जैसवाल, अशोक चौधरी, लेस्ली सिंह, मदन सहनी, नितिन नवीन, रामकृपाल यादव, जमा खान (मुस्लिम प्रतिनिधि)। 3 महिलाएं (लेस्ली सिंह, मीरा यादव, रेणु देवी), 3 नए चेहरे, ब्राह्मण (मंगल पांडेय), कायस्थ (नितिन नवीन) और मुस्लिम (जमा खान) का प्रतिनिधित्व।
मौजूदगी और उत्साह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा, NDA शासित राज्यों के मुख्यमंत्री (जैसे योगी आदित्यनाथ, भूपेंद्र पटेल) और केंद्रीय मंत्री उपस्थित। जनसैलाब उमड़ा, मोदी ने ‘बिहारी गमछा’ लहराकर प्रणाम किया।
नीतीश ने 3 मार्च 2000 से अब तक 19+ वर्ष बिहार पर शासन किया है। नीतीश बिहार के सबसे लंबे समय तक CM रहने वाले नेता हैं (19+ वर्ष)। यदि यह कार्यकाल पूरा हुआ, तो वे देश में सबसे अधिक समय (पवन चामलिंग के 24 वर्ष) तक CM रहने का रिकॉर्ड तोड़ सकते हैं। यह मैदान महात्मा गांधी, जयप्रकाश नारायण के आंदोलनों का गवाह रहा। लालू ने 1990 में यहां शपथ ली नीतीश ने 2010, 2020 और अब 2025 में। कुल 4 बार यहां CM शपथ हुए। प्रतीक 1994 की चुनौती से 2025 की जीत तक, यह मैदान नीतीश के उत्थान का प्रतीक बन गया।
विपक्ष ने शपथ पर दी प्रतिक्रिया
विपक्ष (RJD-कांग्रेस) ने शुभकामनाएं दीं, लेकिन वादों (रोजगार, शिक्षा) पर अमल की मांग की। नीतीश का 10वां कार्यकाल बिहार को ‘विकसित’ बनाने पर केंद्रित रहेगा, लेकिन गठबंधन की स्थिरता चुनौती बनी रहेगी।यह घटना बिहार राजनीति में एक चक्र पूर्ण होने जैसी है – जहां चुनौती देने वाला नेता आज उसी मंच पर विजयी होकर लौटा। गांधी मैदान ने फिर इतिहास रचा।