
स्पेशल डेस्क
दिल्ली;- सुप्रीम कोर्ट में 2020 के दिल्ली दंगों से जुड़े “लार्जर कॉन्स्पिरेसी” (बड़ी साजिश) केस की सुनवाई हुई, जिसमें शरजील इमाम, उमर खालिद, गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर और शिफा-उर-रहमान जैसे आरोपी जमानत के लिए अपील कर रहे थे। दिल्ली पुलिस ने इनकी जमानत का कड़ा विरोध किया और हलफनामा दाखिल कर कहा कि दंगे कोई स्वतःस्फूर्त घटना नहीं थे, बल्कि एक सुनियोजित “रेजीम चेंज ऑपरेशन” (शासन परिवर्तन की साजिश) थे। पुलिस ने विशेष रूप से पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे की टाइमिंग का जिक्र किया, दावा किया कि यह संयोग नहीं, बल्कि साजिश का हिस्सा था ताकि अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींचा जा सके। आइए विस्तार में एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते है।
क्या है पूरा मामला ?
फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्व दिल्ली में सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान सांप्रदायिक हिंसा भड़की, जिसमें 53 लोग मारे गए और 700 से ज्यादा घायल हुए। पुलिस का दावा है कि यह “लार्जर कॉन्स्पिरेसी” का नतीजा था, जिसमें आरोपी UAPA (गैरकानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम) के तहत गिरफ्तार हैं। आरोपी दिल्ली हाईकोर्ट से जमानत खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। हाईकोर्ट ने सितंबर 2025 में इनकी जमानत ठुकरा दी थी, कहा था कि दंगे “सामान्य प्रदर्शन” नहीं, बल्कि “पूर्वनियोजित साजिश” थे।
जस्टिस अरविंद कुमार और एनवी अंजरिया की बेंच ने सुनवाई की। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने पुलिस का पक्ष रखा।
पुलिस की मुख्य दलीलें
“संयोग नहीं, साजिश”दिल्ली पुलिस ने 300 पेज से ज्यादा का हलफनामा दाखिल किया, जिसमें निम्नलिखित प्रमुख बिंदु हैं:ट्रंप विजिट की टाइमिंग: दंगे ट्रंप के फरवरी 2020 के भारत दौरे के ठीक समय पर भड़काए गए। पुलिस ने चैट मैसेज और डिजिटल सबूत दिखाए, जो ट्रंप का जिक्र करते हैं। यह अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींचने के लिए किया गया, ताकि सीएए को “मुस्लिमों के खिलाफ नरसंहार” के रूप में पेश किया जा सके। इससे भारत की वैश्विक छवि खराब होती और “रेजीम चेंज” (शासन बदलाव) की कोशिश होती। “यह संयोग नहीं, साजिश है। दंगे ट्रंप के दौरे के साथ सिंक्रोनाइज करने के लिए प्लान किए गए थे।”
रेजीम चेंज का उद्देश्य
सीएए विरोधी प्रदर्शन “शांतिपूर्ण” का दिखावा था, लेकिन असल मकसद था सांप्रदायिक हिंसा भड़काकर पूरे देश में अराजकता फैलाना, आर्थिक नुकसान पहुंचाना और सरकार गिराना। पुलिस ने इसे “रेजीम चेंज ऑपरेशन” कहा, जो बांग्लादेश और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों की घटनाओं से मिलता-जुलता है।
आरोपियों की क्या है भूमिका ?
शरजील इमाम “टॉप कॉन्स्पिरेटर”, उमर खालिद के “शिष्य”। पुलिस ने उसके चाकचौंद, जामिया, अलीगढ़ और आसनसोल में दिए “भड़काऊ भाषणों” के वीडियो दिखाए। उसने दिसंबर 2019 में दंगों का पहला चरण इंजीनियर किया। उमर खालिद मुख्य साजिशकर्ता, प्रदर्शनों को “रेडिकलाइजिंग कैटेलिस्ट” (भड़काने वाला उत्प्रेरक) के रूप में इस्तेमाल किया। गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर आदि ने साजिश में हिस्सा लिया, जिसमें हथियारबंद विद्रोह की योजना थी। ये “इंटेलेक्चुअल्स” (डॉक्टर, इंजीनियर जैसे बुद्धिजीवी) जमीनी स्तर के आतंकियों से ज्यादा खतरनाक हैं, क्योंकि वे साजिश रचते हैं।
डिजिटल/टेक्निकल चैट्स, कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स (CDR), सोशल मीडिया पोस्ट। साजिश की मीटिंग्स (जैसे 8 दिसंबर 2019, जंगपुरा) के रिकॉर्ड। गवाहों के बयान, जो साजिश को “गहरी जड़ वाली” बताते हैं। 750 से ज्यादा FIR दर्ज, लेकिन आरोपी ट्रायल में सहयोग नहीं कर रहे, जिससे देरी हो रही है। जमानत नहीं, “जेल एंड नॉट बेल”।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
आरोपियों का पक्ष (संक्षेप में) वकील कपिल सिब्बल और अन्य ने कहा “5 साल से ज्यादा जेल में हैं, ट्रायल में देरी पुलिस की गलती है। कोई ठोस सबूत नहीं, सिर्फ भाषणों को तोड़ा-मरोड़ा गया। प्रदर्शन शांतिपूर्ण थे, दंगे पुलिस की नाकामी से भड़के। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां कोर्ट ने पुलिस से पूछा काउंटर-अफिडेविट क्यों देरी से दाखिल किया? (अक्टूबर 2025 में कोर्ट ने नाराजगी जताई थी।) अगली तारीख पर फैसला, लेकिन पुलिस की दलीलें मजबूत लग रही हैं।
यह केस UAPA के दुरुपयोग का उदाहरण माना जा रहा है, लेकिन पुलिस इसे “राष्ट्रीय सुरक्षा” का मुद्दा बता रही है। ट्रंप विजिट का जिक्र पुराना है (2020 से), लेकिन अब फिर उठा, जो साजिश सिद्ध करने के लिए इस्तेमाल हो रहा।