
सरल डेस्क
कर्नाटक, जो 2023 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत का प्रतीक था और जिसे पार्टी का ‘सबसे बड़ा किला’ माना जाता है, आजकल आंतरिक कलह की भेंट चढ़ रहा है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार (डीकेएस) के बीच सत्ता की लड़ाई ने न केवल राज्य सरकार की छवि को धूमिल किया है, बल्कि विपक्षी भाजपा को भी मौका दे दिया है। यह संघर्ष 2.5 साल पुराना वादा पूरा करने की मांग से भड़का है, लेकिन अब यह हाईकमान के हस्तक्षेप, विधायकों के दिल्ली दौरे और भाजपा की ‘वेट एंड वॉच’ रणनीति तक फैल चुका है।
2.5 साल पुराना ‘वादा’ जो बन गया विवाद
2023 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 135 सीटें जीतकर भाजपा-जेडीएस गठबंधन को सत्ता से बेदखल कर दिया। सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाया गया, जबकि डीके शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री का पद मिला। कथित तौर पर, हाईकमान ने शिवकुमार को ‘2.5 साल बाद मुख्यमंत्री बनाने’ का मौखिक वादा किया था, ताकि दोनों गुटों (अहिंदा और वोकाल) में संतुलन बने रहे।
यह दरार चुनाव के तुरंत बाद ही दिखने लगी। शिवकुमार ने सोनिया गांधी को अपना ‘गोद लिया बेटा’ बताया, लेकिन सिद्धारमैया की मजबूत पकड़ (विशेषकर अहिंदा समुदाय में) ने उन्हें सीएम की कुर्सी पर जमा रखा। पिछले 2.5 सालों में, दोनों ने एक-दूसरे के विभागों में हस्तक्षेप किया, जिससे प्रशासनिक अराजकता बढ़ी।
नवंबर 2025 में तीव्रता 2.5 साल का मील का पत्थर
20 नवंबर 2025 को सिद्धारमैया सरकार के 2.5 साल पूरे होने पर संकट चरम पर पहुंच गया। शिवकुमार ने दिल्ली में हाईकमान से मुलाकात की और ‘वादा निभाने’ की मांग की। उनके समर्थक विधायक (करीब 50) भी दिल्ली पहुंचे, जबकि सिद्धारमैया ने बेंगलुरु में अपने कैंप की बैठक बुलाई। 27 नवंबर को सिद्धारमैया ने पोस्ट किया, “शब्द नहीं, सत्ता ही दुनिया बदलती है” (Word doesn’t change the world, power does), जो सीधे शिवकुमार पर तंज था। जवाब में शिवकुमार ने कहा, “शब्द ही शक्ति है” (Word is power), और हाईकमान को याद दिलाया कि ‘वादा निभाना जरूरी है’।
क्या है हाईकमान की दुविधा
मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से कई दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन फैसला टल रहा है। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि यह ‘फर्जी खबरें’ हैं, लेकिन आंतरिक स्रोतों का कहना है कि हाईकमान सिद्धारमैया को हटाने से हिचक रहा है, क्योंकि वे पार्टी का ‘मास लीडर’ हैं।
दोनों पक्षों के दावे और ताकत
मुख्य दावा सिद्धारमैया, परमेश्वर 70+ विधायक, अहिंदा वोट बैंक “पूर्ण 5 साल का कार्यकाल पूरा करूंगा। मेरी स्थिति मजबूत हो रही है।” मंत्रिमंडल फेरबदल की अफवाहों को खारिज किया।
डीके शिवकुमार, गौरीशंकर 50+ विधायक, वोकाल समुदाय, युवा लॉबी “2.5 साल का वादा निभाया जाए। मैं मुख्यमंत्री पद के लिए तैयार हूं।” दिल्ली लॉबिंग तेज। राज्य में पांच गारंटी योजनाओं (महिला सशक्तिकरण, किसान सहायता आदि) पर असर पड़ा है। आर्थिक विकास रुका, बेंगलुरु में बाढ़ और अपराध जैसे मुद्दे अनदेखे।
भाजपा की ‘वेट एंड वॉच’ रणनीति
भाजपा केंद्रीय नेतृत्व (जैसे शाहनवाज हुसैन, शेजाद पूनावाला) ने कांग्रेस को ‘पावर एंड पैसे’ की पार्टी बताया, लेकिन तत्काल कार्रवाई से परहेज किया। राज्य इकाई ने ‘नो कॉन्फिडेंस मोशन’ की तैयारी शुरू कर दी है, जो बेलगावी विधानसभा सत्र (दिसंबर 2025) में लाया जा सकता है।एआई वीडियो और मीम्स से कांग्रेस को ‘साबुन ओपेरा’ बताया। ‘नो चेयर नोवेंबर’ कैंपेन से मजाक उड़ाया। अगर कैंप तोड़फोड़ हुई या सरकार गिर गई, तो जल्दी चुनाव की मांग। जेडीएस के साथ गठबंधन की संभावना।
केंद्रीय नेताओं के बयान
एनवी सुभाष ने कहा, “कांग्रेस का अंतिम कार्यकाल है। गारंटियां फेल, अब सत्ता की भूख।” बूरा नरसैया गौड़ ने इसे ‘पैसा-पावर’ की लड़ाई कहा। भाजपा को फायदा- राज्य में उनकी सीटें बढ़ सकती हैं, खासकर अगर डीके शिवकुमार जैसे नेता नाराज होकर अलग हों।
किला ढहने का खतरा ?
हाईकमान सिद्धारमैया को बनाए रखे और शिवकुमार को मंत्रिमंडल में बड़ा पद दे। लेकिन इससे आंतरिक विद्रोह बढ़ सकता है। अगर शिवकुमार को CM बनाया गया, तो सिद्धारमैया समर्थक बगावत कर सकते हैं। इससे सरकार अस्थिर, और भाजपा का नो-कॉन्फिडेंस मोशन सफल हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि “कर्नाटक कांग्रेस का ‘किला’ 2028 चुनावों से पहले ही कमजोर पड़ सकता है। प्रशासनिक लकवा मर गया है। बेंगलुरु में ट्रैफिक, बाढ़ और रोजगार जैसे मुद्दे अनसुलझे।’
भाजपा की ‘वेट एंड वॉच’ मोड स्मार्ट
यह जंग कांग्रेस के लिए ‘अंतर्कलह का जहर’ साबित हो रही है, जो 2023 की जीत को धूमिल कर रही है। सिद्धारमैया की जिद और शिवकुमार की महत्वाकांक्षा ने हाईकमान को दुविधा में डाल दिया है। भाजपा की ‘वेट एंड वॉच’ मोड स्मार्ट लग रही है- वे बिना हाथ गंदे किए फायदा उठा रहे हैं। अगर जल्द फैसला न हुआ, तो कर्नाटक का ‘सबसे बड़ा किला’ सचमुच ढह सकता है, और भाजपा को सत्ता का रास्ता साफ हो जाएगा। स्थिति तेजी से बदल रही है, इसलिए आंखें दिल्ली और बेंगलुरु पर टिकी हैं।