
स्पेशल डेस्क
हाल ही में दिल्ली के मदनपुर खादर इलाके में एक बड़े जमीन घोटाले का खुलासा हुआ है, जिसमें अल-फलाह ग्रुप के फाउंडर और चेयरमैन जवाद अहमद सिद्दीकी (जिन्हें जवाद के नाम से जाना जाता है) पर दशकों पहले मर चुके लोगों की करोड़ों रुपये कीमत की जमीनों को फर्जी दस्तावेजों के जरिए बेचने और हड़पने का आरोप लगा है। यह मामला प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच से जुड़ा है, जो मूल रूप से दिल्ली के लाल किले के पास 10 नवंबर को हुए कार ब्लास्ट (जिसमें 15 लोग मारे गए) की जांच से शुरू हुआ था। ब्लास्ट के मुख्य आरोपी डॉ. उमर उन नबी अल-फलाह यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र और असिस्टेंट प्रोफेसर थे, जिसके बाद ग्रुप की वित्तीय और संपत्ति संबंधी अनियमितताओं की पड़ताल तेज हो गई।
फर्जीवाड़ा कैसे हुआ !
मामला दिल्ली के मदनपुर खादर गांव की लगभग 10 एकड़ जमीन से जुड़ा है, जिसकी कीमत करोड़ों रुपये बताई जा रही है। यह जमीन मूल रूप से हिंदू परिवारों की थी, और इसे “सीक्रेट पार्किंग” के नाम से इस्तेमाल किया जा रहा था। ED की जांच में पाया गया कि जवाद ने 2004 में जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी (GPA) के जरिए यह जमीन तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन (जो अल-फलाह ग्रुप से जुड़ा है) के नाम ट्रांसफर कराई। लेकिन दस्तावेजों में 30 से अधिक मृतकों (जिनकी मौत 1970-80 के दशक में हो चुकी थी) को “विक्रेता” या “सह-मालिक” दिखाया गया। इन मृतकों के हस्ताक्षर और अंगूठे के निशान नकली तरीके से बनाए गए थे। एक विनोद कुमार नामक व्यक्ति ने इन मृतकों की ओर से साइन किए, जबकि वे लंबे समय से मृत थे।
यह फर्जी ट्रांसफर सीधे तरबिया फाउंडेशन को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया, जो जवाद के नियंत्रण में है। ED ने दैनिक भास्कर की रिपोर्ट पर मुहर लगाते हुए कहा कि यह “मुर्दों की जमीन के सौदागरों” का कारनामा है, जो रजिस्ट्री सिस्टम की कमजोरियों को उजागर करता है।
ED की जांच और अन्य आरोप
यह जमीन घोटाला ED के बड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस का हिस्सा है गिरफ्तारी 18 नवंबर को ED ने जवाद को PMLA (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) की धारा 19 के तहत गिरफ्तार किया। दिल्ली की साकेत कोर्ट ने उन्हें 13 दिनों की ED रिमांड (1 दिसंबर तक) में भेजा, जहां वित्तीय विश्लेषण के आधार पर पूछताछ हो रही है। 2018-19 से 2024-25 के बीच अल-फलाह यूनिवर्सिटी ने फर्जी मान्यता (UGC की सेक्शन 2(f) के तहत, लेकिन 12(B) नहीं) दिखाकर 415.10 करोड़ रुपये की “अवैध कमाई” की। यह रकम दान, शुल्क और अन्य स्रोतों से आई, लेकिन अपराध से अर्जित मानी जा रही है। पैसे को परिवार की शेल कंपनियों (पत्नी और बच्चों की) में लेयर किया गया, जैसे निर्माण और कैटरिंग ठेके।ED ने छापों में 48 लाख रुपये नकद जब्त किए।
मध्य प्रदेश के महू (इंदौर के पास) में जवाद के पैतृक मकान पर बिना इजाजत निर्माण के लिए बुलडोजर नोटिस जारी हुआ (1996-97 से लंबित), लेकिन MP हाईकोर्ट ने 22 नवंबर को स्टे दे दिया। जवाद के भाई हमूद सिद्दीकी को भी धोखाधड़ी, दंगा और हत्या के प्रयास के मामलों में गिरफ्तार किया गया।
अल-फलाह ग्रुप और जवाद कौन हैं ?
1995 में स्थापित अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट जवाद द्वारा नियंत्रित है, जो फरीदाबाद (हरियाणा) में अल-फलाह यूनिवर्सिटी चलाता है। ग्रुप ने 90 के दशक से तेज विस्तार किया, लेकिन अब आतंकवाद (दिल्ली ब्लास्ट कनेक्शन), फर्जी चिटफंड (2001 में अल-फहद बैंक स्कैम) और संपत्ति घोटालों से जुड़ा है। जन्म 15 नवंबर 1964, महू (MP) के निवासी। पिता मौलाना हम्माद सिद्दीकी शहर काजी थे। जवाद ने इंदौर के देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की और जामिया मिलिया में पढ़ाया। वे ग्रुप के सभी वित्तीय फैसले लेते रहे।
आगे की जांच पीड़ितों का दर्द !
कई हिंदू परिवारों की जमीनें बिना पता चले “बिक” गईं। वे सरकारी रिकॉर्ड पर भरोसा करके चुप थे, लेकिन अब ED की जांच से सच्चाई सामने आई। यह मामला रजिस्ट्री और संपत्ति दस्तावेजों की कमजोरियों को उजागर करता है, जहां मृतकों को “जिंदा” दिखाकर सौदे हो जाते हैं। ED अन्य सह-आरोपियों (परिवार के सदस्य, विनोद कुमार आदि) की तलाश में है। UGC ने भी यूनिवर्सिटी की मान्यता पर सवाल उठाए हैं। मामला कोर्ट में चल रहा है, और दिल्ली पुलिस/ NIA ब्लास्ट कनेक्शन की जांच जारी रखे हुए हैं। यह घोटाला न केवल आर्थिक अपराध है, बल्कि सामाजिक विश्वास को तोड़ने वाला भी। जांच पूरी होने पर और खुलासे हो सकते हैं।