
अनिल गुप्ता
सरल डेस्क
कर्नाटक में कांग्रेस की सत्ता को लेकर चल रही खींचतान के बीच उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के सामने ही ‘कुर्बानी’ की बात उठाई। उन्होंने पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के उदाहरण का हवाला देते हुए कहा कि नेतृत्व में त्याग कांग्रेस की परंपरा है। यह बयान 28 नवंबर यानि आज को एक कार्यक्रम के दौरान आया, जहां सिद्धारमैया और शिवकुमार एक ही मंच पर थे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि “यह बयान सीएम पद के रोटेशन (घुमाव) को लेकर चर्चा के चरम पर आया है और इसमें शिवकुमार का अप्रत्यक्ष संदेश छिपा है।”
सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह का उदाहरण
शिवकुमार ने सोनिया गांधी की 2004 की घटना का जिक्र किया, जब कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित जीत हासिल की थी। सोनिया को प्रधानमंत्री पद की पेशकश हुई, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया और अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को पीएम बनाने का सुझाव दिया। शिवकुमार ने इसे ‘कुर्बानी’ का प्रतीक बताया। शिवकुमार का उद्धरण था “सोनिया गांधी ने 20 साल तक कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में सेवा की। उन्होंने अपनी पावर कुर्बान कर दी। जब पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने सोनिया गांधी को भारत का अगला प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया, तो उन्होंने वह पद लेने से मना कर दिया। इसके बजाय उन्होंने मनमोहन सिंह को अगला प्राइम मिनिस्टर बनने का सुझाव दिया, जो इकोनॉमिक्स के एक्सपर्ट थे और देश का विकास कर सकते थे। उनके जरिए ही आशा वर्कर्स जैसी योजनाएं लागू हुईं।”
शिवकुमार ने जोर देकर कहा कि कांग्रेस में हमेशा से नेताओं ने पद के लिए लालच नहीं किया, बल्कि पार्टी और देश के हित में त्याग किया है। यह बयान सिद्धारमैया की मौजूदगी में आया, जो खुद सीएम पद पर पूरे 5 साल बने रहने का ऐलान कर चुके हैं।
कर्नाटक में सत्ता का घमासान
2023 के चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद कथित तौर पर सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच सीएम पद के रोटेशन का फॉर्मूला था—2.5 साल प्रत्येक को। लेकिन यह कभी आधिकारिक नहीं हुआ। सिद्धारमैया ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि वे पूरे कार्यकाल रहेंगे।
क्या है वर्तमान तनाव !
शिवकुमार के समर्थक हाईकमान को 2023 के ‘समझौते’ की याद दिला रहे हैं। शुक्रवार शाम को शिवकुमार दिल्ली पहुंचने वाले हैं, जहां वे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मुलाकात कर सकते हैं। यह मुलाकात सत्ता संतुलन को लेकर हो सकती है। यह बयान कर्नाटक कांग्रेस के आंतरिक कलह को उजागर करता है। शिवकुमार रोटेशन की मांग कर रहे हैं, जबकि सिद्धारमैया मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं। सोनिया के उदाहरण से शिवकुमार यह संदेश दे रहे हैं कि त्याग की परंपरा राज्य स्तर पर भी लागू होनी चाहिए।
यह घटना कर्नाटक कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि इससे पार्टी की एकजुटता पर सवाल उठ रहे हैं। अगर रोटेशन होता है, तो यह राष्ट्रीय स्तर पर भी एक उदाहरण बनेगा।