Written by-Sakshi Srivastava
झांसी के महारानी लक्ष्मी बाई मेडिकल कॉलेज के नवजात शिशु गहन चिकित्सा वार्ड (एसएनसीयू) में हुई एक भीषण आग दुर्घटना ने कई परिवारों को गहरे दुख में डाल दिया। इस हादसे में 10 नवजात शिशुओं की झुलसने और दम घुटने से मौत हो गई। वार्ड में कुल 55 नवजात भर्ती थे, जिनमें से 45 को समय रहते सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया।
आग के कारण वार्ड में तैनात डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए स्थिति बहुत चुनौतीपूर्ण थी। उन्होंने अपनी पूरी कोशिश की, लेकिन कुछ नवजात शिशु समय पर इलाज न मिल पाने के कारण अपनी जान नहीं बचा सके।
यह घटना अस्पतालों में सुरक्षा के महत्वपूर्ण पहलुओं को एक बार फिर सामने लाती है। अस्पतालों में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए तत्काल सुधार और सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है।
परिजनों के लिए यह एक अत्यंत दर्दनाक पल था, क्योंकि वे अपने मासूम बच्चों को खो बैठे। झुलसे और दम घुटने से मरे बच्चों के शवों को पहचानना भी परिजनों के लिए एक कठिन कार्य बन गया।
इस हादसे ने अस्पतालों में बेहतर सुरक्षा व्यवस्था की जरूरत को उजागर किया है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों और बच्चों की जान को बचाया जा सके।
यह घटना चिकित्सा और सुरक्षा उपायों की गंभीर चूक को उजागर करती है। ऐसे में यह बेहद महत्वपूर्ण है कि इस घटना की विस्तृत जांच की जाए और भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कड़े सुरक्षा उपाय लागू किए जाएं।
नवजात शिशु गहन चिकित्सा कक्ष (एसएनसीयू) में आग की लपटों का देख परिजनों में अफरातफरी मच गई। कई परिजन बिना किसी भय के आग की लपटों की ओर दौड़े और कुछ ने तो बिना हिचकिचाए अंदर घुसकर अपने बच्चों को बचाने की कोशिश की। दमकलकर्मियों ने किसी तरह से इन परिजनों को बाहर निकाला और आग बुझाने के बाद वार्ड में फंसे नवजातों को सुरक्षित बाहर निकाला। जैसे ही नवजातों को बाहर लाया गया, कई परिजन घबराए हुए और बदहवास हालत में अपने बच्चों को लेकर भाग गए। इस घटना से अस्पताल में हड़कंप मच गया और पूरे परिसर में तनाव का माहौल था।
एसएनसीयू वार्ड में भर्ती नवजातों के लिए पहचान के तौर पर आमतौर पर उनके हाथ में मां के नाम की स्लिप या पांव में रिबन बांधा जाता है। यह पहचान चिह्न उन नवजातों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है, जो पीलिया, निमोनिया जैसे गंभीर रोगों से पीड़ित होते हैं। लेकिन जब आगजनी की घटना हुई, तो अफरातफरी और तनाव के बीच अधिकांश नवजातों के हाथ से स्लिप या रिबन निकल गए। इस वजह से जब इन नवजातों को बाहर निकाला गया, तो उनके पास कोई पहचान चिह्न नहीं था। परिजनों की घबराहट और तनाव के कारण, जो भी नवजात किसी के हाथ में आया, उन्होंने उसे बिना किसी पहचान के अपने साथ ले लिया। इस स्थिति ने अस्पताल में और अधिक भ्रम पैदा कर दिया, और नवजातों की पहचान में मुश्किलें उत्पन्न हो गईं।
आगजनी के बाद जब नवजातों को उनके वार्ड से बाहर निकाला गया, तो कई मां-बाप अपने बच्चों को तलाशते हुए रोते-बिलखते अस्पताल में इधर-उधर दौड़ते रहे। महोबा की संजना और जालौन के संतराम जैसे माता-पिता, जो अपने बच्चों की खोज में पागल हो गए थे, पूरी तरह से बेकाबू हो गए। वे हर किसी से, चाहे वह डॉक्टर हों, कर्मचारी हों या अधिकारी, अपने बच्चों के बारे में गुहार लगाते रहे, लेकिन किसी ने भी उन्हें संतोषजनक जवाब नहीं दिया। बच्चे के लापता होने से उनका मानसिक और भावनात्मक संकट और बढ़ गया, क्योंकि वे न सिर्फ अपने बच्चों के खोने के डर से घबराए हुए थे, बल्कि अस्पताल प्रशासन की ओर से कोई स्पष्ट सूचना या सहायता भी नहीं मिल रही थी। यह स्थिति अत्यधिक तनावपूर्ण और दिल दहला देने वाली थी।
रानी सेन नामक महिला ने देर रात अस्पताल में अधिकारियों को बताया कि उनका तीन दिन का बच्चा लापता है। रानी ने अपनी आपबीती सुनाते हुए बताया कि उनकी देवरानी, संध्या, को तीन दिन पहले बच्चा हुआ था। तबीयत बिगड़ने के बाद उसे इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज के एसएनसीयू वार्ड में भर्ती कराया गया था। लेकिन आग लगने के बाद संध्या का बच्चा कहीं नहीं मिल रहा था। रानी की आवाज में बेचैनी और डर था, क्योंकि उसे अपने बच्चे के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल रही थी। वह लगातार डॉक्टरों और अस्पताल के कर्मचारियों से गुहार लगाती रही, लेकिन किसी से भी स्पष्ट उत्तर नहीं मिला। यह स्थिति न सिर्फ रानी के लिए, बल्कि अन्य परिजनों के लिए भी अत्यधिक मानसिक तनाव का कारण बन गई।
कई घरों में मन्नतों के बाद कुछ दिन पहले नवजातों की किलकारियां गूजी थीं, लेकिन अब वह किलकारी दर्द और शोक में बदल गई थी। परिजन, जिनके दिलों में उम्मीदें थीं, अब कलेजे पर पत्थर रखकर, बुरी तरह से घबराए हुए, अस्पताल में रखे शवों के बीच अपने नवजातों को तलाश रहे थे। दमकलकर्मी जैसे ही नवजातों को बचाकर बाहर लाते, परिजन उन्हें घेरकर अपने बच्चों को पहचानने की कोशिश करते। यह दृश्य अत्यंत हृदयविदारक था। बचाव कार्य के दौरान एक के बाद एक 10 शव बाहर निकाले गए, जिससे अस्पताल परिसर में और भी अफरातफरी फैल गई। यह भयावह स्थिति न केवल उस त्रासदी को और गहरा कर रही थी, बल्कि परिजनों के लिए अपार मानसिक और भावनात्मक पीड़ा का कारण भी बन रही थी।
झांसी के महारानी लक्ष्मी बाई मेडिकल कॉलेज के नवजात शिशु गहन चिकित्सा वार्ड (एसएनसीयू) में एक भयानक आग लगने से 10 नवजात शिशुओं की मौत हो गई। इन बच्चों की मौत झुलसने और दम घुटने के कारण हुई। जिस वार्ड में आग लगी थी, वहां कुल 55 नवजात भर्ती थे, जिनमें से 45 को किसी तरह सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। घटना की सूचना मिलते ही दमकल की गाड़ियां मौके पर पहुंच गईं, और स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सेना को भी बुला लिया गया। सेना और दमकल कर्मियों ने मिलकर आग पर काबू पाया और बचाव कार्य में मदद की। हालांकि, इस भयावह हादसे में उन 10 नवजातों की जान चली गई, जो किसी भी तरह से समय पर बाहर नहीं निकल पाए। यह घटना अस्पताल और आसपास के क्षेत्र में गहरी शोक और दुख का कारण बन गई।
सीएमएस डॉ. सचिन माहूर के अनुसार, हादसा शार्ट सर्किट के कारण हुआ, जिससे ऑक्सीजन कंसनट्रेटर में आग लग गई। आग इतनी तेजी से फैल गई कि देखते ही देखते पूरी नवजात शिशु गहन चिकित्सा वार्ड (एसएनसीयू) इसकी चपेट में आ गया। आग के कारण वार्ड में अफरातफरी का माहौल बन गया और भगदड़ मच गई। अस्पताल के स्टाफ और परिजन घबराए हुए नवजातों को लेकर बाहर की ओर दौड़े, ताकि उन्हें सुरक्षित निकाला जा सके। इस घटना ने न केवल अस्पताल में, बल्कि आसपास के इलाके में भी भारी संकट उत्पन्न कर दिया।
इस घटना में शिशुओं के परिवारों के प्रति गहरी संवेदनाएं व्यक्त की जाती हैं।