
स्पेशल डेस्क
आम आदमी पार्टी (AAP) ने आधिकारिक रूप से भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन (INDIA) से नाता तोड़ने की घोषणा की, जिसने विपक्षी एकता को एक बड़ा झटका दिया है। AAP के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी अब INDIA गठबंधन का हिस्सा नहीं है और यह गठबंधन केवल 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए बनाया गया था। इस फैसले ने संसद में विपक्ष की एकजुटता और प्रभाव पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आइए, इस पूरी स्थिति का विश्लेषण करें और इसकी संभावित रिपोर्ट प्रस्तुत करें।
AAP के गठबंधन छोड़ने का कारण
AAP और कांग्रेस के बीच दिल्ली और पंजाब में लंबे समय से तनाव रहा है। हाल ही में, कांग्रेस के दिल्ली इकाई के नेता अजय माकन ने AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल को “फर्जीवाल” और “राष्ट्र-विरोधी” जैसे शब्दों से संबोधित किया था, जिससे AAP नेतृत्व में भारी नाराजगी थी।कांग्रेस की युवा इकाई ने केजरीवाल के खिलाफ “महिला सम्मान योजना” और “संजीवनी योजना” जैसी “गैर-मौजूद” योजनाओं के वादों को लेकर शिकायत दर्ज की थी, जिसे AAP ने BJP के साथ कांग्रेस की साठगांठ के रूप में देखा।
AAP ने आरोप लगाया कि “कांग्रेस और BJP के बीच “गुप्त, भ्रष्ट समझौता” है, जिसके तहत दोनों दल एक-दूसरे के राजनीतिक अस्तित्व को बनाए रखने के लिए काम कर रहे हैं। AAP के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनुराग ढांडा ने दावा किया कि राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी सार्वजनिक रूप से विरोधी दिखते हैं, लेकिन पर्दे के पीछे एक-दूसरे का समर्थन करते हैं।
2024 लोकसभा चुनाव के बाद गठबंधन की प्रासंगिकता खत्म
AAP ने कहा कि INDIA गठबंधन केवल 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए बनाया गया था, जिसमें विपक्षी दलों ने मिलकर 240 सीटें हासिल की थीं। इस उपलब्धि के बाद AAP का मानना है कि गठबंधन का उद्देश्य पूरा हो चुका है।timesofindia.indiatimes.comthehindu.com
AAP ने यह भी स्पष्ट किया कि वह अब बिहार, दिल्ली, और अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी।
कांग्रेस की नेतृत्व क्षमता पर सवाल
संजय सिंह ने कांग्रेस की गठबंधन में नेतृत्वकारी भूमिका पर सवाल उठाए, यह पूछते हुए कि क्या कांग्रेस ने विपक्षी एकता को बनाए रखने में कोई ठोस कदम उठाया। उन्होंने कहा, “क्या कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के बाद कोई बैठक बुलाई? यह बच्चों का खेल नहीं है।”thehindu.com
AAP नेतृत्व का मानना है कि कांग्रेस की रणनीति और निर्णय लेने की प्रक्रिया में कमी है, जिसके कारण गठबंधन की एकता कमजोर हुई है।
संसद में विपक्ष की आवाज पर प्रभाव
AAP के INDIA गठबंधन से बाहर होने का संसद में विपक्ष की एकता और प्रभाव पर कई तरह से असर पड़ सकता है INDIA गठबंधन, जिसमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (TMC), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK), समाजवादी पार्टी (SP), और अन्य क्षेत्रीय दल शामिल हैं, ने 2024 के लोकसभा चुनाव में BJP के नेतृत्व वाले NDA को कड़ी टक्कर दी थी। गठबंधन ने 234 सीटें जीतीं, जो विपक्ष की ताकत को दर्शाता है।
AAP के बाहर होने से यह एकता कमजोर हो सकती है, खासकर दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में, जहां AAP का मजबूत जनाधार है। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पहले ही गठबंधन की प्रासंगिकता पर सवाल उठाते हुए कहा था कि 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद इसका कोई स्पष्ट भविष्य नहीं दिखता।
संसद में समन्वय की कमी
AAP ने स्पष्ट किया है कि वह संसद में राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर विपक्षी दलों का समर्थन करेगी, लेकिन गठबंधन का हिस्सा नहीं रहेगी। इसका मतलब है कि AAP के सांसद स्वतंत्र रूप से काम करेंगे, जिससे विपक्षी दलों के बीच समन्वय कम हो सकता है। उदाहरण के लिए, AAP ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर, दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ी तोड़ने, और बिहार में विशेष गहन संशोधन (SIR) जैसे मुद्दों को संसद में उठाने की बात कही है। यदि अन्य विपक्षी दल इन मुद्दों पर एकजुट नहीं हुए, तो विपक्ष की आवाज बिखरी हुई नजर आ सकती है।
क्षेत्रीय दलों का समर्थन
दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले TMC, SP, और शिवसेना (UBT) जैसे INDIA गठबंधन के कुछ दलों ने AAP का समर्थन किया था, जबकि कांग्रेस अलग-थलग पड़ गई थी। इससे यह संकेत मिलता है कि गठबंधन के अन्य क्षेत्रीय दल AAP के साथ सहानुभूति रख सकते हैं, लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व में कमी के कारण समग्र विपक्षी रणनीति प्रभावित हो सकती है।
कांग्रेस, जो गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है, अब नेतृत्व और रणनीति को लेकर और अधिक सवालों का सामना करेगी। AAP के बाहर होने से अन्य क्षेत्रीय दलों में भी असंतोष बढ़ सकता है, खासकर उन दलों में जो पहले से ही कांग्रेस के निर्णय लेने की प्रक्रिया से असंतुष्ट हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
राजनीतिक विश्लेषक तनवीर एजाज ने कहा कि दिल्ली में AAP और कांग्रेस के बीच समन्वय की कमी पहले से ही 2024 के लोकसभा चुनाव में दिखी थी, जहां BJP ने दिल्ली की सभी सात सीटें जीती थीं। AAP के गठबंधन से बाहर होने से यह समस्या और गहरी हो सकती है
विशेषज्ञ के तौर पर प्रकाश मेहरा का मानना है कि “AAP जैसे क्षेत्रीय दलों की स्वतंत्रता विपक्ष को कमजोर करने के बजाय कुछ राज्यों में मजबूत कर सकती है। AAP का दिल्ली और पंजाब में मजबूत आधार है, और यह अकेले चुनाव लड़कर अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकता है।
कांग्रेस की चुनौती: दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तनवीर एजाज के अनुसार, कांग्रेस को दिल्ली में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए नेतृत्व और संगठनात्मक ढांचे में सुधार करना होगा। शीला दीक्षित के निधन के बाद से दिल्ली कांग्रेस में नेतृत्व का अभाव रहा है
AAP की भविष्य की रणनीति
AAP ने स्पष्ट किया है कि वह बिहार, दिल्ली, और अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी। पार्टी ने पहले ही पंजाब और गुजरात में स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़कर अपनी ताकत दिखाई है।
संसद में सक्रिय भूमिका
AAP ने कहा कि वह संसद में राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर विपक्षी दलों के साथ सहयोग करेगी, लेकिन गठबंधन की औपचारिक संरचना का हिस्सा नहीं रहेगी। इससे AAP को अपनी स्वतंत्र पहचान बनाए रखने में मदद मिल सकती है। यदि अरविंद केजरीवाल जेल से बाहर आते हैं, तो यह AAP के लिए गेम-चेंजर हो सकता है। केजरीवाल की लोकप्रियता दिल्ली और पंजाब में पार्टी की ताकत को बढ़ा सकती है।
AAP का INDIA गठबंधन से बाहर होना विपक्षी एकता के लिए एक बड़ा झटका है, लेकिन इसका संसद में विपक्ष की आवाज पर प्रभाव सीमित हो सकता है। AAP ने स्पष्ट किया है कि वह राष्ट्रीय मुद्दों पर विपक्ष का समर्थन जारी रखेगी, जिससे संसद में कुछ हद तक एकजुटता बनी रह सकती है। हालांकि, कांग्रेस और AAP के बीच बढ़ती कटुता और गठबंधन में नेतृत्व की कमी विपक्ष की दीर्घकालिक रणनीति को प्रभावित कर सकती है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में AAP और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होने की संभावना है, जिसका फायदा BJP को मिल सकता है। साथ ही, यदि गठबंधन के अन्य दल भी कांग्रेस के नेतृत्व से असंतुष्ट होते हैं, तो INDIA गठबंधन का भविष्य और अधिक अनिश्चित हो सकता है