
स्पेशल डेस्क
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने भारतीय राजनीति में हलचल मचा दी है। उन्होंने 21 जुलाई को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया, जिसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 22 जुलाई को स्वीकार कर लिया। हालांकि, इस इस्तीफे के पीछे केवल स्वास्थ्य कारणों से अधिक सियासी कारणों की अटकलें लगाई जा रही हैं। आइये इस मामले की पूरी रिपोर्ट और सियासी बहस के कारणों का विश्लेषण एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं।
इस्तीफे की घोषणा और आधिकारिक कारण
जगदीप धनखड़ ने अपने इस्तीफे में स्वास्थ्य कारणों को प्राथमिकता देने और चिकित्सकीय सलाह का पालन करने की बात कही। उनके पत्र में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मंत्रिपरिषद के प्रति आभार व्यक्त किया गया। उन्होंने लिखा, “संविधान के अनुच्छेद 67(क) के तहत मैं तत्काल प्रभाव से उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देता हूँ।”
हालांकि, विपक्ष और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस इस्तीफे की टाइमिंग और परिस्थितियाँ सवाल खड़े करती हैं, क्योंकि धनखड़ उस दिन संसद के मानसून सत्र में सक्रिय थे और पूरे दिन सदन को संचालित करते दिखे।
सियासी बहस का कारण स्वास्थ्य कारणों पर संदेह
धनखड़ ने भले ही स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया, लेकिन विपक्ष का कहना है कि वह पूरे दिन सक्रिय थे। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि उन्होंने शाम 5:45 बजे तक धनखड़ से मुलाकात की थी और 7:30 बजे फोन पर बात हुई थी, जिसमें वह स्वस्थ लग रहे थे।
विपक्षी नेताओं जैसे मल्लिकार्जुन खरगे, प्रमोद तिवारी और इमरान मसूद ने सवाल उठाया कि अगर स्वास्थ्य कारण था, तो इस्तीफा सत्र शुरू होने से पहले क्यों नहीं दिया गया ? कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि धनखड़ को पहले AIIMS में भर्ती किया गया था और मंच पर बेहोशी जैसी घटनाएँ हुई थीं, लेकिन ये दावे पुष्ट नहीं हैं।
केंद्र सरकार के साथ तनाव
सूत्रों के अनुसार, धनखड़ और केंद्र सरकार के बीच मतभेद थे, खासकर जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार करने को लेकर। इस प्रस्ताव को 65 से अधिक विपक्षी सांसदों ने पेश किया था, जिसे धनखड़ ने राज्यसभा सभापति के रूप में स्वीकार किया। सरकार को इसकी जानकारी नहीं थी, जिसके बाद एक वरिष्ठ मंत्री के साथ उनकी तीखी बहस हुई।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, इस बहस में धनखड़ ने अपने संवैधानिक अधिकारों का हवाला दिया, लेकिन सरकार ने इसे अनदेखी माना। यह टकराव उनके इस्तीफे की एक बड़ी वजह माना जा रहा है।
विपक्ष के साथ टकराव
धनखड़ का राज्यसभा सभापति के रूप में विपक्ष के साथ अक्सर टकराव रहा। उनके बयानों और सख्त रवैये को लेकर विपक्ष ने उन पर पक्षपात का आरोप लगाया। दिसंबर 2024 में विपक्ष ने उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी पेश किया था। हालांकि, मार्च 2025 के बाद धनखड़ ने विपक्षी नेताओं जैसे मल्लिकार्जुन खरगे और अरविंद केजरीवाल से मुलाकात कर संबंध सुधारने की कोशिश की थी, लेकिन यह पर्याप्त नहीं रहा।
सियासी अटकलें और बीजेपी के आंतरिक समीकरण
कुछ विपक्षी नेताओं ने दावा किया कि धनखड़ का इस्तीफा बीजेपी और आरएसएस की आंतरिक राजनीति का हिस्सा हो सकता है। कांग्रेस सांसद सुखदेव भगत ने इसे बिहार विधानसभा चुनाव से जोड़ा, जबकि कुंवर अली दानिश ने सुझाव दिया कि यह योगी आदित्यनाथ को उपराष्ट्रपति बनाने की तैयारी हो सकती है। राकेश टिकैत जैसे किसान नेताओं ने भी कहा कि गांवों में चर्चा है कि धनखड़ का इस्तीफा “लिया गया” है, न कि उन्होंने स्वेच्छा से दिया।
न्यायपालिका पर टिप्पणियाँ
धनखड़ की सुप्रीम कोर्ट और न्यायपालिका पर टिप्पणियाँ भी विवाद का कारण रहीं। अप्रैल 2025 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर कहा था कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं, जिसे सरकार की ओर से टिप्पणी माना गया और आलोचना हुई।
जयराम रमेश ने दावा किया कि “धनखड़ न्यायपालिका से जुड़ा कोई बड़ा ऐलान करने वाले थे, जो उनके इस्तीफे से रुक गया।”
राष्ट्रपति भवन में अचानक मुलाकात
धनखड़ ने बिना पूर्व सूचना के 21 जुलाई की रात 9 बजे राष्ट्रपति भवन पहुँचकर इस्तीफा सौंपा, जिससे अधिकारियों में हड़कंप मच गया। उन्हें 25 मिनट इंतजार करना पड़ा। सूत्रों के अनुसार, धनखड़ को उम्मीद थी कि सरकार उन्हें मनाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
विपक्ष की प्रतिक्रिया कांग्रेस
जयराम रमेश, मल्लिकार्जुन खरगे और केसी वेणुगोपाल ने सरकार से इस्तीफे के असली कारणों को स्पष्ट करने की मांग की। खरगे ने इसे बीजेपी का आंतरिक मामला बताया, लेकिन साथ ही सरकार पर निशाना साधा। अन्य विपक्षी दल: संजय राउत, गौरव गोगोई, अशोक गहलोत और मनोज झा ने इसे सियासी दबाव का नतीजा बताया। डिंपल यादव ने कहा कि “दाल में कुछ काला है।” पप्पू यादव ने दावा किया कि धनखड़ ने “आहत होकर” इस्तीफा दिया और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के बयान को चेयर का अपमान बताया।
सत्तापक्ष की प्रतिक्रिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धनखड़ के स्वास्थ्य की कामना की, लेकिन सरकार की ओर से कोई विस्तृत बयान नहीं आया।
धनखड़ के इस्तीफे का कारण

सीनियर जर्नलिस्ट प्रकाश मेहरा का मानना है कि “धनखड़ का इस्तीफा स्वास्थ्य कारणों के साथ-साथ सियासी मतभेदों से भी जुड़ा हो सकता है। खासकर, जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार करना और सरकार के साथ उनके तनावपूर्ण संबंध, विशेष रूप से न्यायपालिका पर उनकी टिप्पणियों और सदन के संचालन को लेकर, इस्तीफे की प्रमुख वजहें मानी जा रही हैं।
धनखड़ का सियासी सफर और विवाद
धनखड़ ने 1989 में जनता दल के साथ राजनीति शुरू की, झुंझुनू से सांसद बने और चंद्रशेखर सरकार में मंत्री रहे। 2003 में बीजेपी में शामिल हुए और 2019 में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बने, जहाँ उनका ममता बनर्जी सरकार के साथ टकराव रहा। राज्यपाल के रूप में ममता बनर्जी के साथ तनाव, राज्यसभा सभापति के रूप में विपक्ष के साथ टकराव, और सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणियाँ उनके सियासी करियर के विवादास्पद पहलू रहे।
क्या है आगे की प्रक्रिया ?
धनखड़ के इस्तीफे के बाद हरिवंश नारायण सिंह को कार्यवाहक सभापति बनाया गया है। निर्वाचन आयोग जल्द ही नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया शुरू करेगा। विपक्ष “वेट एंड वॉच” की रणनीति पर है और सत्तापक्ष के उम्मीदवार पर निर्भर करेगा कि उनकी रणनीति क्या होगी।
जगदीप धनखड़ का इस्तीफा स्वास्थ्य कारणों से होने का दावा किया गया, लेकिन सियासी गलियारों में इसे केंद्र सरकार और बीजेपी नेतृत्व के साथ मतभेद, खासकर जस्टिस वर्मा के महाभियोग प्रस्ताव और विपक्ष के साथ तनाव से जोड़ा जा रहा है। विपक्ष इसे बीजेपी की आंतरिक राजनीति और संभावित बड़े सियासी बदलाव का संकेत मान रहा है। हालांकि, कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, और धनखड़ ने इस्तीफे के बाद चुप्पी साध ली है। यह मामला अभी भी रहस्यमयी बना हुआ है, और आने वाले दिनों में और स्पष्टता की उम्मीद है।