
स्पेशल डेस्क
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि “बिना विधिवत धर्म परिवर्तन के अलग-अलग धर्मों के लोगों के बीच हुई शादी को कानूनन वैध नहीं माना जा सकता। यह फैसला 26 जुलाई को न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की एकलपीठ ने सोनू उर्फ शाहनूर की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। इस मामले में कोर्ट ने न केवल अंतरधार्मिक विवाह की वैधता पर टिप्पणी की, बल्कि उत्तर प्रदेश में कथित फर्जी आर्य समाज मंदिरों द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्रों की जांच के लिए भी निर्देश दिए।
क्या है याचिका का आधार
याचिकाकर्ता सोनू उर्फ शाहनूर ने महाराजगंज के निचलौल थाने में दर्ज एक आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग की थी। इस मामले में उन पर अपहरण, दुष्कर्म, और पॉक्सो एक्ट के तहत आरोप लगे थे। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसने 14 फरवरी 2020 को प्रयागराज के एक आर्य समाज मंदिर में पीड़िता से शादी की थी और अब वह बालिग है, इसलिए दोनों का वैवाहिक जीवन वैध है।
विरोधी पक्ष की दलील
सरकारी वकील (एजीए) ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि पीड़िता घटना के समय नाबालिग थी, जैसा कि उसके हाईस्कूल प्रमाणपत्र से सिद्ध होता है। इसके अलावा, याचिकाकर्ता और पीड़िता अलग-अलग धर्मों से हैं, और बिना विधिवत धर्म परिवर्तन के उनकी शादी अवैध है। साथ ही, आर्य समाज मंदिर द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र को फर्जी करार दिया गया, क्योंकि यह उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण नियम, 2017 के तहत पंजीकृत नहीं था।
अंतरधार्मिक विवाह की वैधता
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिना विधिवत धर्म परिवर्तन के अलग-अलग धर्मों के बीच हुई शादी कानूनन मान्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि केवल आर्य समाज मंदिर का प्रमाणपत्र पर्याप्त नहीं है, क्योंकि यह विवाह उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण नियम, 2017 के तहत पंजीकृत नहीं था।
यह फैसला इस आधार पर लिया गया कि दोनों पक्षों के बीच धर्म परिवर्तन की कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया, जो अंतरधार्मिक विवाह को वैध बनाने के लिए आवश्यक है। कोर्ट ने पाया कि पीड़िता घटना के समय नाबालिग थी, जिसके कारण याचिकाकर्ता के दावे को और कमजोर कर दिया।
आर्य समाज मंदिरों की जांच
कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में कथित फर्जी आर्य समाज मंदिरों द्वारा नाबालिग अंतरधार्मिक जोड़ों को विवाह प्रमाणपत्र जारी करने पर चिंता जताई। गृह सचिव, उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया गया कि डीसीपी रैंक के अधिकारी के माध्यम से इन मंदिरों की जांच की जाए और अनुपालन रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत की जाए। अगली सुनवाई 29 अगस्त 2025 को निर्धारित की गई है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की मांग को खारिज कर दिया और आपराधिक मामले की कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया।
बिना धर्म परिवर्तन के शादी
कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि “आर्य समाज मंदिरों में फर्जी विवाह प्रमाणपत्र जारी करने के कई मामले सामने आए हैं, जो कानून का उल्लंघन है। यह फैसला विशेष रूप से उन मामलों पर लागू होता है जहां विवाह के लिए धर्म परिवर्तन नहीं किया गया और विवाह पंजीकरण नियमों का पालन नहीं हुआ।
हालांकि, यह ध्यान देने योग्य है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पहले एक अन्य मामले में (31 मई 2024) कहा था कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत अंतरधार्मिक जोड़े बिना धर्म परिवर्तन के शादी कर सकते हैं। इस अधिनियम के तहत विवाह को कानूनी मान्यता दी जा सकती है, बशर्ते सभी औपचारिकताएं पूरी की जाएं। इस फैसले में कोर्ट ने एक अंतरधार्मिक लिव-इन जोड़े को सुरक्षा प्रदान की थी और उन्हें विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी पंजीकृत करने का निर्देश दिया था।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का फैसला
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 31 मई 2024 को एक मामले में कहा था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत हिंदू लड़की और मुस्लिम लड़के की शादी बिना धर्म परिवर्तन के अवैध है। यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट के विशेष विवाह अधिनियम से संबंधित फैसले से भिन्न है, जिससे अंतरधार्मिक विवाहों की वैधता को लेकर कुछ भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पहले भी (2020 और 2014 में) कहा था कि केवल शादी के लिए किया गया धर्म परिवर्तन वैध नहीं है। कोर्ट ने नूर जहां बेगम केस का हवाला देते हुए कहा था कि बिना आस्था और विश्वास के धर्म परिवर्तन इस्लाम के खिलाफ है।
लव जिहाद और अवैध धर्मांतरण के मुद्दे
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला अंतरधार्मिक विवाहों के लिए विधिवत धर्म परिवर्तन या विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकरण की आवश्यकता पर जोर देता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिना कानूनी प्रक्रिया के अंतरधार्मिक विवाह अवैध माने जाएंगे, खासकर जब विवाह प्रमाणपत्र फर्जी हों या नाबालिग शामिल हों। साथ ही, फर्जी विवाह प्रमाणपत्र जारी करने वाली संस्थाओं पर नकेल कसने के लिए जांच के आदेश दिए गए हैं। यह फैसला लव जिहाद और अवैध धर्मांतरण के मुद्दों पर चल रही बहस को और गर्म कर सकता है।