
यूपी डेस्क
उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के आबूनगर, रेडईया मोहल्ले में स्थित नवाब अब्दुल समद के मकबरे को लेकर 11 अगस्त को हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो गई। यह विवाद तब शुरू हुआ जब हिंदू संगठनों ने इस मकबरे को प्राचीन शिव मंदिर या ठाकुर जी (श्रीकृष्ण) का मंदिर बताकर वहां पूजा-पाठ करने का ऐलान किया। दूसरी ओर, मुस्लिम समुदाय ने इसे ऐतिहासिक मकबरा बताते हुए हिंदू संगठनों के दावों को खारिज किया। इस घटना ने स्थानीय माहौल को गरमा दिया, जिसके बाद प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भारी पुलिस बल तैनात किया।
हिंदू पक्ष के दावे मकबरा नहीं, प्राचीन मंदिर
हिंदू संगठनों, विशेष रूप से मठ मंदिर संरक्षण संघर्ष समिति, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी), बजरंग दल और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के स्थानीय नेताओं ने दावा किया कि यह मकबरा वास्तव में एक प्राचीन शिव मंदिर या ठाकुर जी (श्रीकृष्ण) का मंदिर है।
क्या कह रहे हैं हिन्दू संगठन ?
बीजेपी जिलाध्यक्ष मुखलाल पाल ने इसे लगभग 1,000 वर्ष पुराना मंदिर बताया और कहा कि इसे बाद में मकबरे का रूप दे दिया गया। हिंदू संगठनों का कहना है कि “मकबरे में कमल के फूल, त्रिशूल और परिक्रमा मार्ग जैसे प्रतीक मौजूद हैं, जो इसे मंदिर होने का सबूत देते हैं। स्थानीय लोगों ने यह भी दावा किया कि मकबरे में एक जंजीर गुम्बद से लटक रही है, जो मंदिर के अस्तित्व का प्रमाण है।
विश्व हिंदू परिषद के प्रदेश उपाध्यक्ष वीरेंद्र पांडे ने कहा कि “यह स्थान भगवान भोलेनाथ और श्रीकृष्ण का मंदिर था, जिसे “अराजक तत्वों” ने मकबरे में बदलने की कोशिश की।”
पूजा-पाठ और सौंदर्यकरण की मांग
हिंदू संगठनों ने 11 अगस्त 2025 को मकबरे में पूजा-पाठ और हवन करने का ऐलान किया था। इसके लिए उन्होंने जिला प्रशासन से अनुमति मांगी थी, जो नहीं दी गई। संगठनों ने मांग की कि इस स्थान को अतिक्रमण मुक्त कराकर हिंदुओं को सौंपा जाए और इसे पुनः मंदिर के रूप में स्थापित किया जाए। 11 अगस्त को बजरंग दल और अन्य हिंदू संगठनों के कार्यकर्ता मकबरे के पास पहुंचे, बैरिकेडिंग तोड़ दी, और वहां भगवा झंडा फहराने के साथ-साथ मजारों पर तोड़फोड़ की। कुछ प्रदर्शनकारियों ने “जय श्रीराम” के नारे भी लगाए।
प्रशासन पर निष्क्रियता
हिंदू संगठनों ने प्रशासन पर आरोप लगाया कि उन्होंने इस मामले की जांच के लिए पहले से दी गई सूचना पर कोई कार्रवाई नहीं की। वीएचपी ने दावा किया कि उनके पास मंदिर होने के ऐतिहासिक और धार्मिक साक्ष्य हैं, और प्रशासन को इसकी जांच करानी चाहिए थी। मुस्लिम समुदाय और राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल ने दावा किया कि यह मकबरा सैकड़ों वर्ष पुराना है और सरकारी दस्तावेजों में खसरा नंबर 753 पर “मकबरा मांगी” के नाम से दर्ज है।
राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल के मोहम्मद नसीम ने कहा कि यह मकबरा नवाब अब्दुल समद और अबू मोहम्मद का है, जिसके निर्माण में लगभग 10 साल लगे थे। इसे राष्ट्रीय संपत्ति के रूप में संरक्षित किया गया है। मुस्लिम पक्ष ने हिंदू संगठनों के दावों को “बेबुनियाद” और “माहौल खराब करने की साजिश” करार दिया।
राजनीतिक साजिश का आरोप
मुस्लिम संगठनों ने इस विवाद को “राजनीतिक खेल” बताया और आरोप लगाया कि हिंदू संगठन और बीजेपी समर्थित समूह जानबूझकर मस्जिदों और मकबरों में मंदिर ढूंढकर साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। मोहम्मद नसीम ने कहा, “क्या हर मस्जिद और मकबरे के नीचे मंदिर ढूंढा जाएगा? यह लोकतंत्र नहीं, राजतंत्र है।” उन्होंने इस मुद्दे पर आंदोलन की चेतावनी दी।
जब हिंदू संगठनों ने मकबरे में तोड़फोड़ की और भगवा झंडा फहराया, तो मुस्लिम समुदाय के लोग भी मौके पर पहुंचे और पथराव शुरू कर दिया, जिससे स्थिति और तनावपूर्ण हो गई। मुस्लिम पक्ष ने प्रशासन से मांग की कि मकबरे को मंदिर बताने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
प्रशासन की कार्रवाई विवाद की शुरुआत
यह विवाद तब शुरू हुआ जब हिंदू संगठनों ने मकबरे को मंदिर बताते हुए 11 अगस्त को पूजा-पाठ और सौंदर्यकरण की अनुमति मांगी। प्रशासन ने अनुमति देने से इनकार कर दिया, लेकिन हिंदू संगठनों ने बैरिकेडिंग तोड़कर मकबरे में प्रवेश किया। मकबरे में तोड़फोड़ और भगवा झंडा फहराए जाने के बाद मुस्लिम समुदाय ने विरोध किया, जिससे दोनों पक्ष आमने-सामने आ गए। पथराव और झड़प की घटनाएं भी हुईं।
प्रशासन और पुलिस की प्रतिक्रिया
जिला प्रशासन ने मकबरे के आसपास बैरिकेडिंग की थी और भारी पुलिस बल तैनात किया था, लेकिन यह व्यवस्था भीड़ को नियंत्रित करने में नाकाफी साबित हुई। पुलिस ने लाठीचार्ज कर भीड़ को तितर-बितर किया और अतिरिक्त बल तैनात किया, जिसमें बांदा से एक ASP, एक DSP, 6 इंस्पेक्टर और 5 थानों की पुलिस फोर्स शामिल थी।
डीएम रवींद्र सिंह और एसपी अनूप कुमार सिंह ने स्थिति को सामान्य बताया और कहा कि दोनों पक्षों को समझाकर घर भेज दिया गया है। दंगा नियंत्रण स्कीम लागू की गई, और डीजीपी मुख्यालय मामले पर नजर रख रहा है। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों द्वारा लगाए गए भगवा झंडे हटा दिए और स्पष्ट किया कि अब वहां कोई झंडा नहीं है।
क्या है वर्तमान स्थिति ?
11 अगस्त की दोपहर तक स्थिति नियंत्रण में बताई गई, लेकिन इलाके में तनाव बना हुआ है। प्रशासन ने शांति बनाए रखने की अपील की है और पूरे शहर में पुलिस और प्रांतीय सशस्त्र बल (PAC) की तैनाती की गई है। प्रशासन ने सख्ती से कहा कि कानून-व्यवस्था बिगाड़ने की कोशिश करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
यह विवाद केवल एक इमारत को लेकर नहीं है, बल्कि आस्था, इतिहास और राजनीति के टकराव का रूप ले चुका है। हिंदू संगठनों का कहना है कि ऐतिहासिक साक्ष्यों को मिटाकर मंदिर को मकबरे में बदला गया, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे धार्मिक धरोहरों को निशाना बनाकर माहौल खराब करने की साजिश मानता है।
इतिहास और दस्तावेज
मुस्लिम पक्ष सरकारी दस्तावेजों का हवाला देता है, जिसमें यह स्थान मकबरे के रूप में दर्ज है। वहीं, हिंदू पक्ष का कहना है कि उनके पास मंदिर होने के ऐतिहासिक और धार्मिक साक्ष्य हैं, जैसे कमल, त्रिशूल और परिक्रमा मार्ग। इस घटना ने फतेहपुर में साम्प्रदायिक तनाव को बढ़ा दिया है। मुस्लिम संगठनों ने इसे “हिंदू-मुस्लिम विवाद को भड़काने की राजनीतिक रणनीति” करार दिया है, जबकि हिंदू संगठन इसे अपनी आस्था की रक्षा का मामला बता रहे हैं।
फतेहपुर का मकबरा-मंदिर विवाद एक जटिल मुद्दा है, जिसमें दोनों पक्ष अपने-अपने ऐतिहासिक और धार्मिक दावों के साथ खड़े हैं। हिंदू संगठन इसे प्राचीन मंदिर मानते हैं और पूजा-पाठ की मांग कर रहे हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय इसे सैकड़ों साल पुराना मकबरा बताकर इसके संरक्षण की मांग कर रहा है। प्रशासन ने फिलहाल स्थिति को नियंत्रित कर लिया है, लेकिन तनाव बरकरार है। इस मामले में साक्ष्यों की निष्पक्ष जांच और दोनों समुदायों के बीच संवाद जरूरी है ताकि साम्प्रदायिक सौहार्द बना रहे।