
दिल्ली डेस्क
सुप्रीम कोर्ट के बाहर डॉग लवर्स और वकीलों के बीच हुई हाथापाई का मामला 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से जुड़ा है, जिसमें दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाकर शेल्टर होम में रखने का आदेश दिया गया। इस फैसले के बाद 13 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के बाहर कुछ पशु प्रेमियों ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया, जो बाद में हिंसक हो गया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त 2025 को दिल्ली और एनसीआर में आवारा कुत्तों को पकड़ने, उन्हें शेल्टर होम में रखने और आठ हफ्तों के भीतर शेल्टर की क्षमता बढ़ाने का आदेश दिया। कोर्ट का कहना था कि “सड़कों को पूरी तरह से आवारा कुत्तों से मुक्त करना होगा ताकि बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित हो और रेबीज का खतरा कम हो।”
यह आदेश पशु जन्म नियंत्रण नियमावली 2023 (Animal Birth Control Rules, 2023) के “पकड़ो, बधिया करो, टीका लगाओ, छोड़ो” सिद्धांत के विपरीत था, जिसके कारण पशु प्रेमियों में असंतोष फैला।
विरोध और हिंसा
फैसले के बाद कुछ डॉग लवर्स और पशु अधिकार कार्यकर्ता सुप्रीम कोर्ट के बाहर इकट्ठा हुए और विरोध प्रदर्शन शुरू किया। इस दौरान कुछ वकीलों और डॉग लवर्स के बीच तीखी बहस हुई, जो जल्द ही मारपीट और हाथापाई में बदल गई। पुलिस की मौजूदगी के बावजूद स्थिति तनावपूर्ण रही। बाद में कुछ प्रदर्शनकारी इंडिया गेट पर भी विरोध करने पहुंचे।
पशु प्रेमी और कार्यकर्ता, जैसे मेनका गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी, ने इस फैसले को अव्यावहारिक और क्रूर बताया।
मेनका गांधी ने कहा कि “दिल्ली में लगभग तीन लाख आवारा कुत्ते हैं, जिनके लिए 3,000 शेल्टर होम बनाने की जरूरत होगी, जिसकी लागत 15,000 करोड़ रुपये होगी। साथ ही, कुत्तों की देखभाल के लिए डेढ़ लाख लोगों की आवश्यकता होगी, जो व्यवहारिक नहीं है।
राहुल गांधी ने इसे क्रूर और दूरदर्शिता की कमी वाला फैसला बताया, यह कहते हुए कि शेल्टर, नसबंदी, टीकाकरण और सामुदायिक देखभाल से बिना क्रूरता के समाधान संभव है।
वकीलों की भूमिका
कुछ वकील इस फैसले का समर्थन कर रहे थे, क्योंकि आवारा कुत्तों के हमलों से लोग परेशान हैं। दिल्ली में हर साल लगभग 30,000 कुत्ता काटने के मामले दर्ज होते हैं, और रेबीज से होने वाली मौतें भी एक बड़ी समस्या हैं। विरोध के दौरान वकीलों और डॉग लवर्स के बीच किसी बात पर कहासुनी हुई, जिसके बाद मारपीट की नौबत आ गई।
पहले से चल रहा विवाद
यह विवाद पहले से ही गर्माया हुआ था। जुलाई 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा में आवारा कुत्तों को सड़क पर खाना खिलाने की याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को फटकार लगाई थी और कहा था कि कुत्तों को घर में शेल्टर बनाकर खिलाएं, न कि सड़कों पर। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी मार्च 2025 में यह माना था कि आवारा कुत्तों की सुरक्षा जरूरी है, लेकिन आम लोगों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के बाहर विरोध हिंसक
सुप्रीम कोर्ट का आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाने का आदेश पशु प्रेमियों को स्वीकार नहीं हुआ, जिसके चलते विरोध प्रदर्शन शुरू हुए। 13 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के बाहर यह विरोध हिंसक हो गया, और डॉग लवर्स व वकीलों के बीच मारपीट की घटना हुई। यह मामला मानव सुरक्षा और पशु कल्याण के बीच संतुलन की कमी को दर्शाता है, जिसमें दोनों पक्षों के तर्क अपनी जगह हैं। एक तरफ आवारा कुत्तों से होने वाले हमले और रेबीज का खतरा है, तो दूसरी तरफ पशु प्रेमी इसे क्रूरता और अव्यावहारिक मानते हैं।