
स्पेशल डेस्क
भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का उम्मीदवार घोषित करके एक रणनीतिक चाल चली है, जिसे कई विश्लेषकों ने ‘सियासी सिक्सर’ करार दिया है। यह निर्णय न केवल पार्टी की रणनीति को दर्शाता है, बल्कि कई सामाजिक, क्षेत्रीय और वैचारिक समीकरणों को साधने का प्रयास भी है। आइए, इसे पांच प्रमुख बिंदुओं को इस विशेष विश्लेषण में एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं
दक्षिण भारत को सियासी संदेश
सीपी राधाकृष्णन तमिलनाडु के तिरुपुर जिले से हैं और कोन्गू वेल्लालर (गौंडर) समुदाय से संबंध रखते हैं, जो तमिलनाडु के पश्चिमी हिस्से में प्रभावशाली है। BJP ने उनके नाम पर मुहर लगाकर दक्षिण भारत, खासकर तमिलनाडु, में अपनी पैठ मजबूत करने का दांव खेला है। तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, और BJP इस क्षेत्र में अपनी सियासी जमीन तैयार करना चाहती है, जहां वह अभी तक DMK और AIADMK जैसे क्षेत्रीय दलों के मुकाबले कमजोर रही है। राधाकृष्णन की उम्मीदवारी तमिलनाडु के मतदाताओं को यह संदेश देती है कि BJP दक्षिण भारत को राष्ट्रीय राजनीति में महत्व दे रही है। AIADMK जैसे दलों ने इसे ‘तमिलों के लिए गर्व का क्षण’ बताया है, जबकि DMK ने भी इसे स्वागत योग्य कदम कहा है, हालांकि वह विपक्षी गठबंधन के फैसले के साथ रहेगी।
संघ की विचारधारा को प्राथमिकता
राधाकृष्णन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से लंबे समय से जुड़े हैं और 16 साल की उम्र से ही संघ के स्वयंसेवक रहे हैं। BJP ने उनके चयन से RSS को यह संदेश दिया है कि वह अपनी वैचारिक जड़ों के प्रति समर्पित है। यह कदम खासकर 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद महत्वपूर्ण है, जब BJP ने संघ की पृष्ठभूमि वाले नेताओं को अधिक तवज्जो दी है। राधाकृष्णन की स्वच्छ छवि और संघ के प्रति उनकी निष्ठा BJP के कार्यकर्ताओं और RSS को एकजुट रखने में मदद करती है।
OBC समुदाय को साधने की रणनीति
राधाकृष्णन OBC समुदाय से आते हैं, और उनकी उम्मीदवारी के जरिए BJP ने सामाजिक समीकरण साधने का प्रयास किया है। पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी OBC समुदाय से थे, और BJP ने इस बार भी OBC नेता को चुनकर विपक्ष, खासकर कांग्रेस के OBC केंद्रित नैरेटिव को कमजोर करने की कोशिश की है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी OBC मुद्दों और जातिगत जनगणना पर जोर देते रहे हैं। ऐसे में BJP का यह कदम OBC वोट बैंक को मजबूत करने और बिहार जैसे राज्यों में अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने की रणनीति का हिस्सा है, जहां OBC राजनीति केंद्र में है।
विपक्षी एकता को चुनौती
NDA ने राधाकृष्णन के नाम की घोषणा पहले करके विपक्षी गठबंधन (INDIA ब्लॉक) को रणनीतिक रूप से बैकफुट पर धकेल दिया है। उनकी स्वच्छ और गैर-विवादित छवि के कारण विपक्षी दलों, जैसे शिवसेना (उद्धव गुट) और DMK, ने उनकी उम्मीदवारी की तारीफ की है। उदाहव ठाकरे के नेता संजय राउत ने उन्हें ‘गैर-विवादित और अनुभवी’ बताया, जबकि DMK ने इसे तमिलनाडु के लिए गर्व का विषय कहा। यह स्थिति विपक्षी एकता को कमजोर कर सकती है, क्योंकि क्षेत्रीय दल, खासकर तमिलनाडु में, राधाकृष्णन का विरोध करने में हिचक सकते हैं। इसके अलावा, उपराष्ट्रपति चुनाव में व्हिप लागू नहीं होता, जिससे क्रॉस-वोटिंग की संभावना बढ़ जाती है।
पार्टी कार्यकर्ताओं को प्रेरणा
राधाकृष्णन की उम्मीदवारी BJP के कार्यकर्ताओं को यह संदेश देती है कि पार्टी अपने समर्पित और जमीनी नेताओं को महत्व देती है। राधाकृष्णन ने RSS से लेकर BJP तक लंबा सफर तय किया है, जिसमें वह तमिलनाडु में BJP के प्रदेश अध्यक्ष और दो बार कोयंबटूर से सांसद रहे। उनकी यह यात्रा कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणादायक है। BJP ने उनके चयन से यह भी सुनिश्चित किया कि उपराष्ट्रपति का पद विचारधारा और अनुभव के आधार पर किसी ऐसे नेता को मिले, जो पार्टी लाइन के साथ मजबूती से खड़ा हो, जैसा कि जगदीप धनखड़ के मामले में नहीं था, जिनका BJP से वैचारिक जुड़ाव अपेक्षाकृत कम था।
क्या होगा रणनीति का प्रभाव
BJP ने राधाकृष्णन के चयन से न केवल दक्षिण भारत, OBC समुदाय, और RSS को साधा है, बल्कि विपक्ष को रणनीतिक रूप से कमजोर भी किया है। NDA के पास संसद में 427 सांसदों का समर्थन है, जो जीत के लिए आवश्यक 392 से अधिक है। इसके अलावा, राधाकृष्णन की स्वच्छ छवि और अनुभव उन्हें राज्यसभा को प्रभावी ढंग से संचालित करने में सक्षम बनाता है, जिससे BJP को संसदीय कार्यवाही में संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी।
BJP की दीर्घकालिक सियासी रणनीति
BJP ने सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर एक साथ कई सियासी समीकरण साधे हैं। यह कदम दक्षिण भारत में पार्टी की स्थिति मजबूत करने, OBC वोट बैंक को लुभाने, RSS के साथ वैचारिक एकजुटता दिखाने, और विपक्षी एकता को कमजोर करने की रणनीति का हिस्सा है। 9 सितंबर 2025 को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव में उनकी जीत लगभग तय मानी जा रही है, लेकिन यह चयन केवल एक चुनावी जीत से कहीं अधिक है—यह BJP की दीर्घकालिक सियासी रणनीति का प्रतीक है।