
विशेष डेस्क
चुनाव आयोग (ECI) ने बिहार में विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया के तहत 1 अगस्त को ड्राफ्ट मतदाता सूची प्रकाशित की। इस सूची में 7.24 करोड़ मतदाताओं के नाम शामिल थे, लेकिन 65 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटा दिए गए। इनमें से 22.34 लाख मृतक, 36.28 लाख स्थायी रूप से अन्य राज्यों में स्थानांतरित या अनट्रेसबल, और 7.01 लाख डुप्लिकेट मतदाता बताए गए। इस बड़े पैमाने पर नाम हटाने की कार्रवाई ने विवाद खड़ा कर दिया, खासकर क्योंकि यह बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से कुछ महीने पहले किया गया। विपक्षी दलों और गैर-सरकारी संगठनों (जैसे Association for Democratic Reforms – ADR) ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए, इसे मतदाता दमन (voter suppression) का प्रयास बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने, जस्टिस सूर्य कांत और जॉयमाला बागची की बेंच के नेतृत्व में, ECI को निर्देश दिया कि “वह 65 लाख हटाए गए मतदाताओं की सूची को उनके नाम और हटाने के कारणों (जैसे मृत्यु, प्रवास, डुप्लिकेशन) सहित 19 अगस्त तक जिला निर्वाचन अधिकारियों और बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट पर प्रकाशित करे। कोर्ट ने पारदर्शिता पर जोर देते हुए कहा कि “यह कदम मतदाताओं के मताधिकार को प्रभावित कर सकता है, इसलिए निष्पक्ष प्रक्रिया जरूरी है।”
सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्देश
हटाए गए 65 लाख मतदाताओं की सूची को बूथ-वार और जिला-वार ऑनलाइन प्रकाशित करना, जिसमें प्रत्येक मतदाता का नाम और हटाने का कारण (मृत्यु, प्रवास, डुप्लिकेशन आदि) स्पष्ट हो। सूची को पंचायत भवनों, ब्लॉक विकास कार्यालयों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित करना। इसके अलावा, स्थानीय और अंग्रेजी अखबारों, दूरदर्शन, ऑल इंडिया रेडियो, और सोशल मीडिया के माध्यम से व्यापक प्रचार करना।
आधार और EPIC स्वीकार्य
जिन मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं, वे अपनी पहचान साबित करने के लिए आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र (EPIC) का उपयोग कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि आधार और EPIC आसानी से उपलब्ध दस्तावेज हैं, इसलिए इन्हें स्वीकार किया जाए। ECI को 19 अगस्त तक अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने और अगली सुनवाई 22 अगस्त को निर्धारित की गई।
ECI की प्रतिक्रिया
ECI ने शुरू में तर्क दिया कि प्रतिनिधित्व जनता अधिनियम, 1950 या मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के तहत हटाए गए मतदाताओं की अलग सूची प्रकाशित करने की कोई वैधानिक बाध्यता नहीं है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के दबाव के बाद, ECI ने सूची प्रकाशित करने पर सहमति जताई। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने 17 अगस्त को घोषणा की कि “बिहार की ड्राफ्ट मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख नामों की सूची को निर्देशानुसार प्रकाशित किया गया है।”
ECI ने यह भी स्पष्ट किया कि “ड्राफ्ट सूची से नाम हटाना अंतिम नहीं है। 1 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक दावा-आपत्ति अवधि के दौरान, फॉर्म 6 के साथ आवेदन करके कोई भी पात्र मतदाता अपने नाम को अंतिम सूची में शामिल करवा सकता है।”
जिलेवार हटाए गए मतदाताओं की संख्या
पटना: 3.95 लाख
मधुबनी: 3.52 लाख
पूर्वी चंपारण: 3.16 लाख
गोपालगंज: 3.10 लाख
सिवान: 3.42 लाख
गया: 2.46 लाख
पूर्णिया: 2.74 लाख
अररिया: 1.58 लाख
शेखपुरा: 26,000 (सबसे कम)
क्या है विवाद और विपक्ष का रुख ?
राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस, और CPI (ML) लिबरेशन ने ECI पर पक्षपात का आरोप लगाया। RJD नेता तेजस्वी यादव ने इसे “वोटबंदी” करार दिया और कहा कि यह गरीबों और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को निशाना बनाता है। कांग्रेस ने पूछा कि कितने “विदेशी नागरिक” (जैसे बांग्लादेशी या रोहिंग्या) की पहचान हुई और क्या उनके नाम हटाए गए।
सत्तारूढ़ गठबंधन (NDA) बीजेपी और जद (यू) ने ECI का समर्थन करते हुए कहा कि “SIR अवैध मतदाताओं को हटाने और मतदाता सूची को शुद्ध करने के लिए जरूरी है। उन्होंने विपक्ष पर “वोटबैंक” की राजनीति का आरोप लगाया।”
ADR की याचिका ADR ने मांग की कि “हटाए गए मतदाताओं की बूथ-वार और विधानसभा-वार सूची, कारणों सहित, प्रकाशित की जाए। उन्होंने यह भी पूछा कि क्या प्रभावित मतदाताओं को नोटिस जारी किए गए।”
प्रभाव और अगले कदम
यह विवाद बिहार विधानसभा चुनाव (नवंबर 2025 में अपेक्षित) से पहले मतदाता विश्वास और निष्पक्षता पर सवाल उठाता है। यदि हटाए गए मतदाताओं को पुनः शामिल नहीं किया गया, तो मतदान प्रतिशत प्रभावित हो सकता है, जो करीबी सीटों पर परिणाम को बदल सकता है। ECI ने कहा कि “अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर 2025 को प्रकाशित होगी। तब तक, दावा-आपत्ति अवधि में सुधार के लिए विशेष शिविर आयोजित किए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट 22 अगस्त को अगली सुनवाई में ECI की अनुपालन रिपोर्ट की समीक्षा करेगा।
SIR विवाद में पारदर्शिता और जवाबदेही
सुप्रीम कोर्ट का आदेश बिहार SIR विवाद में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाने की प्रक्रिया ने मतदाता अधिकारों और चुनावी निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। ECI की ताजा कार्रवाई और कोर्ट की निगरानी से यह तय होगा कि क्या यह प्रक्रिया लोकतांत्रिक विश्वास को बहाल कर पाएगी। मतदाताओं को सलाह दी जाती है कि वे अपनी स्थिति जांचें और जरूरी दस्तावेज (आधार/EPIC) के साथ दावा दायर करें।