
स्पेशल डेस्क
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने H-1B वीजा के लिए नई नीति की घोषणा की है, जिसमें प्रत्येक H-1B वीजा आवेदन के लिए 100,000 डॉलर (लगभग 88 लाख रुपये) की वार्षिक फीस लागू की गई है। यह नियम 21 सितंबर से प्रभावी हो गया है और अगले 12 महीनों तक लागू रहेगा, जब तक इसे बढ़ाया न जाए। इस फैसले ने भारतीय पेशेवरों और अमेरिकी टेक उद्योग में हलचल मचा दी है, क्योंकि भारतीय नागरिक H-1B वीजा धारकों का लगभग 71-72% हिस्सा हैं।
भारत-अमेरिका हवाई किराए में उछाल
इस नीति की घोषणा के बाद, भारत से अमेरिका के लिए हवाई किराए में भारी वृद्धि देखी गई है। कई H-1B वीजा धारक, जो भारत में छुट्टियों या काम के सिलसिले में आए थे, इस डेडलाइन से पहले अमेरिका लौटने की कोशिश में हैं। नतीजतन, दिल्ली से न्यूयॉर्क (JFK) जैसे मार्गों पर एकतरफा टिकट की कीमतें 37,000 रुपये से बढ़कर 70,000-80,000 रुपये तक पहुंच गईं। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, यह वृद्धि घोषणा के कुछ घंटों के भीतर ही हुई। कई उड़ानें, जैसे दिल्ली से न्यूयॉर्क के लिए एयर इंडिया की उड़ान, जो 19:55 घंटे लेती है, अब 1.18 लाख रुपये तक की हैं, लेकिन ये उड़ानें डेडलाइन से पहले अमेरिका पहुंचने में असमर्थ हैं।
कंपनियों की प्रतिक्रिया
अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट, और जेपी मॉर्गन जैसी प्रमुख कंपनियों ने अपने H-1B वीजा धारक कर्मचारियों को तत्काल अमेरिका लौटने की सलाह दी है और उन्हें विदेश यात्रा से बचने को कहा है। माइक्रोसॉफ्ट ने अपने कर्मचारियों को एक आंतरिक ईमेल में सलाह दी कि वे “जब तक संभव हो अमेरिका में रहें” और H-4 वीजा धारकों (H-1B धारकों के आश्रितों) को भी यही सलाह दी गई है। कई H-1B धारकों ने अमेरिकी हवाई अड्डों पर अपनी विदेश यात्रा रद्द कर दी है।
भारतीय पेशेवरों पर प्रभाव
H-1B वीजा की नई फीस पहले की 1,500-4,500 डॉलर की तुलना में बहुत अधिक है। यह मध्यम स्तर के पेशेवरों और हाल के स्नातकों के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है, जिनकी औसत वार्षिक आय लगभग 118,000 डॉलर है। इस फीस के कारण कंपनियां H-1B कर्मचारियों को प्रायोजित करने में हिचकिचा सकती हैं, जिससे नौकरी बदलने की स्वतंत्रता कम हो सकती है।
H-1B वीजा अक्सर ग्रीन कार्ड का रास्ता होता है, लेकिन नई फीस और सख्त नियम इस प्रक्रिया को और जटिल बना सकते हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि “यह नीति भारतीय पेशेवरों को कनाडा, यूके, या यूएई जैसे देशों की ओर आकर्षित कर सकती है।”
अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
ट्रम्प प्रशासन का दावा है कि “यह कदम अमेरिकी नौकरियों की रक्षा करेगा और केवल “उच्च कुशल” श्रमिकों को अनुमति देगा। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि यह अमेरिकी टेक उद्योग को नुकसान पहुंचा सकता है, जो भारतीय और चीनी पेशेवरों पर बहुत अधिक निर्भर है। अमेजन (10,044 वीजा), माइक्रोसॉफ्ट (5,189), और मेटा (5,123) जैसी कंपनियां इस नीति से सबसे अधिक प्रभावित होंगी। स्टार्टअप्स और रिसर्च लैब्स को भी विशेषज्ञ प्रतिभा को आकर्षित करने में कठिनाई हो सकती है, जिससे नवाचार और प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हो सकती है।
भारत के G20 शेरपा अमिताभ कांत ने कहा कि “यह नीति अमेरिकी नवाचार को नुकसान पहुंचाएगी और भारत को लाभ देगी। उन्होंने सुझाव दिया कि इससे बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे, और गुरुग्राम जैसे शहरों में रिसर्च लैब्स, पेटेंट्स, और स्टार्टअप्स को बढ़ावा मिलेगा।
क्या हैं कानूनी चुनौतियां ?
कई आव्रजन वकीलों, जैसे चार्ल्स कक, का मानना है कि “ट्रम्प के पास इस तरह की फीस लगाने का कानूनी अधिकार नहीं है, क्योंकि यह कांग्रेस के दायरे में आता है। इस नीति के खिलाफ मुकदमे दायर होने की संभावना है, और इसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है।
H-1B वीजा की नई फीस और सख्त नियमों ने भारतीय पेशेवरों और अमेरिकी टेक उद्योग में अफरा-तफरी मचा दी है। हवाई किराए में वृद्धि और कंपनियों के तत्काल दिशानिर्देशों ने स्थिति को और जटिल कर दिया है। हालांकि यह नीति अमेरिकी नौकरियों की रक्षा के लिए है, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभाव अमेरिकी नवाचार और भारतीय पेशेवरों की अमेरिकी सपने की खोज पर पड़ सकते हैं। भारतीय सरकार इस मामले की निगरानी कर रही है और इसके प्रभावों का आकलन कर रही है।