
सरल डेस्क
बिहार विधानसभा चुनाव के बीच मुजफ्फरपुर और दरभंगा में राहुल गांधी ने तेजस्वी यादव के साथ संयुक्त रैलियों से महागठबंधन के प्रचार अभियान की शुरुआत की। राहुल के भाषणों में पीएम मोदी, नीतीश कुमार, अडानी-अंबानी पर तीखे हमले, वोट चोरी, संविधान बचाओ, यमुना प्रदूषण, रोजगार और छठ पूजा जैसे मुद्दे प्रमुख रहे। लेकिन ये रैलियां महागठबंधन के लिए उतनी ही चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती हैं, जितनी एनडीए के लिए। चुनावी एक्सपर्ट प्रकाश मेहरा के ओपिनियन एनालिसिस के अनुसार, राहुल का ये प्रचार तेजस्वी के लिए कई मोर्चों पर मुसीबत खड़ी कर सकता है।
निजी हमले भारी पड़ते हैं, फिर से भारी पड़ सकते हैं
राहुल ने मोदी पर “वोट के लिए डांस भी कर लेंगे” और नीतीश पर “बीजेपी का रिमोट कंट्रोल” जैसे व्यक्तिगत हमले बोले। ये भाषण वायरल हो गए, लेकिन बिहार की राजनीति में ऐसे हमले उल्टे पड़ते हैं। तेजस्वी को पहले भी लालू परिवार के भ्रष्टाचार के कारण निशाना बनाया गया है, और राहुल के ये बयान RJD की छवि को और नुकसान पहुंचा सकते हैं। BJP ने इसे पकड़ लिया है, और सोशल मीडिया पर #ShameOnRahulGandhi जैसे ट्रेंड चल रहे हैं, जो महागठबंधन को कमजोर दिखा रहे हैं।
छठ को ‘नाटक’ बताना बिहार की आस्था पर चोट
राहुल ने कहा कि मोदी को “छठ पूजा या यमुना सफाई से मतलब नहीं, बस वोट चाहिए”। इसे बिहार की लोक आस्था का अपमान बताया जा रहा है। छठ बिहार का बड़ा त्योहार है, और ये विवाद महागठबंधन के हिंदू वोट बैंक (विशेषकर महिलाओं और EBC) को नाराज कर सकता है। तेजस्वी को सफाई देनी पड़ रही है, जो उनकी छवि को प्रभावित करेगी।
तेजस्वी के ‘बिहार का तेजस्वी प्रण’ को छाया
राहुल ने वोटर लिस्ट रिवीजन, संविधान और रोजगार पर पुरानी बातें दोहराईं, जबकि महागठबंधन का घोषणापत्र ‘बिहार का तेजस्वी प्रण’ (28 अक्टूबर को लॉन्च) नई स्कीमों (जैसे 25 लाख बीमा, 30 हजार सैलरी जीविका दीदियों को) पर केंद्रित है। राहुल की अनुपस्थिति में तेजस्वी अकेले प्रचार कर रहे थे, लेकिन अब ये रैलियां घोषणापत्र को पीछे धकेल रही हैं।
गठबंधन में बढ़ती खींचतान
तेजस्वी को ‘डैमेज्ड गुड्स’ बनाना वोटर अधिकार यात्रा के दौरान राहुल ने तेजस्वी को कभी सीएम चेहरा नहीं माना, और सीट बंटवारे पर एकतरफा रुख अपनाया। आज की रैलियों में भी तेजस्वी को ‘सहयोगी’ की तरह पेश किया गया, न कि लीडर। तेज प्रताप यादव का बयान (“लालू अब राहुल-तेजस्वी को मार्गदर्शन देते हैं, मुझे नहीं”) परिवारिक कलह को उजागर कर रहा है। ये गठबंधन की एकजुटता पर सवाल उठा सकता है।
राहुल की अनुपस्थिति का लंबा साया
कांग्रेस का ‘गायब फैक्टर’ राहुल सितंबर के बाद पहली बार बिहार पहुंचे, जबकि घोषणापत्र लॉन्च में उनकी तस्वीर तो थी लेकिन वो खुद गायब। हिंदुस्तान की रिपोर्ट के मुताबिक, इससे कांग्रेस में बेचैनी बढ़ी, और तेजस्वी अकेले मैदान संभालते नजर आए। अब रैलियों से राहुल लौटे हैं, लेकिन देरी ने महागठबंधन को एनडीए (मोदी-शाह-योगी) के मुकाबले कमजोर दिखाया। तेजस्वी को ये ‘अकेलापन’ चुनाव में भारी पड़ सकता है, खासकर EBC-दलित वोट पर।
क्या ये मुसीबतें गठबंधन तोड़ देंगी ?
ये 5 बातें तेजस्वी के लिए चुनौती हैं क्योंकि बिहार का वोटर जाति-आस्था-रोजगार पर भावुक होता है। राहुल का प्रचार महागठबंधन को ऊर्जा दे सकता है, लेकिन अगर BJP इसे ‘आस्था अपमान’ और ‘गठबंधन कलह’ के रूप में भुनाती है, तो नुकसान RJD का ज्यादा होगा। कई रिपोर्ट्स दिखाते हैं कि विपक्षी हमले तेज हो गए हैं। फिर भी, तेजस्वी की युवा अपील और घोषणापत्र अगर ग्राउंड पर उतर जाए, तो ये मुसीबतें उलट सकती हैं। चुनावी मैदान में अभी सब कुछ संभव है—बिहार की जनता फैसला करेगी।