
विशेष डेस्क
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण (6 नवंबर को मोकामा में मतदान) में मोकामा सीट हमेशा से ही बाहुबलियों की जंग का प्रतीक रही है। यहां 2005 से लगातार पांच बार विधायक रह चुके अनंत सिंह (जेडीयू) का वर्चस्व रहा, लेकिन 2020 में वे आरजेडी के टिकट पर जीते थे। इस बार जेडीयू से मैदान में लौटे अनंत सिंह की गिरफ्तारी ने न सिर्फ उनकी उम्मीदवारी को चुनौती दी है, बल्कि पूरे समीकरण को उलट-पुलट कर दिया है। दुलारचंद यादव हत्याकांड (30 अक्टूबर को जनसुराज प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी के प्रचार के दौरान हुई) में अनंत सिंह को मुख्य आरोपी बनाकर 1 नवंबर की आधी रात को गिरफ्तार किया गया। अब वे बेउर जेल में 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में हैं। क्या इससे मोकामा का सियासी दृश्य बदल गया ? हां, बिल्कुल—सहानुभूति लहर, वोट बंटवारा और एनडीए की रणनीति सब प्रभावित हुए हैं। आइए, विस्तार में एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं।
हत्या से गिरफ्तारी तक
मोकामा के टाल क्षेत्र में प्रचार के दौरान अनंत सिंह समर्थकों और जनसुराज प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी के बीच झड़प। गाली-गलौज से शुरू हुई घटना पथराव और फायरिंग में बदल गई। इसी दौरान आरजेडी नेता दुलारचंद यादव की गोली मारकर हत्या हो गई। पुलिस ने इसे “सामूहिक दंगा” करार दिया, जिसमें अनंत सिंह को नेतृत्वकर्ता बताया।
31 अक्टूबर को पुलिस ने 81 लोगों को गिरफ्तार किया, जिसमें अनंत सिंह के करीबी मणिकांत ठाकुर और रणजीत राम शामिल। दुलारचंद के शव यात्रा के दौरान पथराव हुआ, माहौल तनावपूर्ण। 1 नवंबर, आधी रात 150 पुलिसकर्मियों की टीम ने अनंत सिंह को उनके बाढ़ स्थित घर से गिरफ्तार किया।
गिरफ्तारी के तुरंत बाद अनंत सिंह के फेसबुक पेज से वीडियो जारी “सत्यमेव जयते! मुझे मोकामा की जनता पर पूर्ण भरोसा है। अब चुनाव मोकामा की जनता लड़ेगी।” यह वीडियो 9 घंटे में 25 लाख व्यूज बटोर चुका। 2 नवंबर कोर्ट ने 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजा। अनंत सिंह पर पहले से 28 मामले थे, यह 29वां जुड़ गया।
मुख्य उम्मीदवार और मूल समीकरण
मोकामा (पटना जिले की अनुसूचित जाति आरक्षित सीट) में वोटर बेस: यादव (25-30%), भूमिहार (20%), दलित (25%), ईबीसी/ओबीसी (बाकी)। अनंत सिंह (भूमिहार) का वर्चस्व हमेशा भूमिहार-यादव गठजोड़ पर टिका रहा।
पहले का अनुमान था कि अनंत सिंह भारी (1 लाख वोटों से जीत का दावा), लेकिन वीणा देवी टक्कर में। पीयूष का एंट्री भूमिहार वोट बांट रहा था। गिरफ्तारी ने अनंत को “शहीद” बना दिया।
गिरफ्तारी का प्रभाव्..क्या बदला समीकरण ?
हां, पूरी तरह। यहां पॉइंट-वाइज विश्लेषण सहानुभूति लहर (Sympathy Wave): अनंत सिंह की गिरफ्तारी को एनडीए “षड्यंत्र” बता रहा। केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने 3 नवंबर को मोकामा में प्रचार किया: “अब हर व्यक्ति अनंत सिंह बनकर चुनाव लड़े। अनंत बाबू थे तो जिम्मेदारी कम थी, अब हमने कमान संभाल ली।” अनंत की पत्नी नीलम देवी महिलाओं की टीम बना वोट मांग रही हैं।
वोट बंटवारा और एकजुटता
भूमिहार वोट (मुख्य फैक्टर) अब अनंत के पक्ष में शिफ्ट। पहले सूरजभान-पीयूष बंटवारा था, अब “अनंत को बचाओ” का नारा। यादव वोट आरजेडी के पास मजबूत, लेकिन अनंत का स्थानीय कनेक्ट (टाल किसानों के लिए योजनाएं) उन्हें फायदा। जनसुराज का पीयूष: हत्या कांड से प्रभावित, गिरफ्तारी का खतरा। वोटर बेस कमजोर।
सुरक्षा प्रभाव डीएम त्यागराजन
“100% हथियार जमा, सख्ती बढ़ेगी। ” मोकामा में भारी फोर्स तैनात, तनाव लेकिन शांत। यह बदमाशी रोक सकता है, अनंत समर्थकों को फायदा। डीजीपी विनय कुमार ने कहा कि “दंगा था, अनंत पर सामूहिक जिम्मेदारी।” पुलिस रिमांड पर ले सकती है, लेकिन नामांकन वैध (दोष सिद्ध होने तक)।
एनडीए ललन सिंह-अशोक चौधरी सक्रिय। नीतीश कुमार का समर्थन। अनंत की रिहाई पर जोर।महागठबंधन तेजस्वी यादव चुप, लेकिन वीणा देवी का प्रचार तेज। हत्या को “एनडीए की साजिश” बता रहे।
क्या अनंत सिंह जेल से जीत सकते हैं ?
हां, संभव 2015 में जेल से लड़े, हार गए लेकिन अंतर कम था। इस बार सहानुभूति मजबूत। अनंत का दावा “1 लाख वोट से जीत।” कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक “मोकामा अनंत को जेल से जिताएगा।” प्रचार न कर पाना, पुलिस सख्ती से समर्थक डर सकते हैं। अगर रिमांड बढ़ा, तो मुश्किल।
राजनीतिक विश्लेषक (प्रकाश मेहरा): “समीकरण अनंत के हक में पलटा। सूरजभान को नुकसान।” लेकिन अगर वोटर “परिवर्तन” चाहें, तो वीणा देवी फायदे में।
सीन पूरी तरह बदल गया !
अनंत सिंह का जेल जाना मोकामा को “वर्चस्व की जंग” से “सहानुभूति की जंग” में बदल चुका है। पहले टक्कर का मुकाबला था, अब अनंत की जीत तय लग रही—भूमिहार एकजुटता और वायरल कैंपेन से। लेकिन चुनाव आयोग की सतर्कता और विपक्ष का काउंटर-अटैक गेम चेंजर हो सकता है। हालांकि मोकामा की जनता फैसले करेगी बाहुबली को जेल से बुलाएं या नया चेहरा चुनें ? 6 नवंबर का रिजल्ट बताएगा