
स्पेशल डेस्क
बादल फटना (Cloudburst) एक प्राकृतिक आपदा है, जिसमें बहुत कम समय में एक सीमित क्षेत्र (20-30 वर्ग किमी) में अत्यधिक भारी बारिश होती है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, यदि एक घंटे में 100 मिलीमीटर से अधिक बारिश होती है, तो इसे बादल फटना कहा जाता है। यह घटना आमतौर पर तब होती है जब गर्म हवाओं के कारण नमी से भरे बादल एक स्थान पर जमा हो जाते हैं, और उनका घनत्व बढ़ने से पानी की बूंदें अचानक तेजी से नीचे गिरती हैं। यह प्रक्रिया पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक आम है, क्योंकि पर्वतीय ढलानें बादलों को ऊपर उठाने और तेज बारिश के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान करती हैं।
हालांकि, देहरादून मौसम विभाग ने उत्तरकाशी की हालिया घटना को बादल फटने से इनकार किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह आपदा किसी ग्लेशियर झील के टूटने या ग्लेशियर के पिघलने से आई हो सकती है, क्योंकि क्षेत्र में केवल 30-40 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई, जो बादल फटने की परिभाषा (100 मिमी/घंटा) से कम है।
उत्तरकाशी में हादसा
5 अगस्त को उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में एक भीषण प्राकृतिक आपदा ने तबाही मचाई। यह क्षेत्र गंगोत्री धाम के पास हर्षिल घाटी में स्थित है, जो पर्यटकों के लिए एक प्रमुख पड़ाव है। खीर गंगा नदी में अचानक आए सैलाब और मलबे ने धराली बाजार और आसपास के कई घरों, होटलों, और दुकानों को नष्ट कर दिया। इस घटना में अब तक चार लोगों की मौत की पुष्टि हुई है, और 50 से अधिक लोग लापता बताए जा रहे हैं, जिनमें सेना के 10 जवान भी शामिल हैं।
घटना कहां हुई ?
धराली गांव, जो समुद्र तल से 2,745 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, गंगोत्री और हर्षिल के बीच बसा है।खीर गंगा नदी में जलस्तर अचानक बढ़ने से सैलाब आया, जो मलबे, पत्थरों, और लकड़ियों के साथ गांव में घुस गया। इससे कई इमारतें और होटल पूरी तरह बह गए।
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में दिखा कि मात्र 30-34 सेकंड में सैलाब ने गांव को तबाह कर दिया, जिसमें लोग भागते और चीखते नजर आए। एक वीडियो में किसी की आवाज “हाय मेरी मां चली गई…” सुनाई दी, जो इस त्रासदी की भयावहता को दर्शाता है। धराली बाजार और आसपास के क्षेत्र पूरी तरह मलबे में तब्दील हो गए। 5-12 होटल और कई घर पूरी तरह नष्ट हो गए, और 10-12 मजदूरों के मलबे में दबे होने की आशंका है। पास के आर्मी बेस कैंप और बचाव दल का हिस्सा भी प्रभावित हुआ। गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सड़कें क्षतिग्रस्त होने से यातायात बाधित है।
राहत और बचाव कार्य
सेना, NDRF, SDRF, ITBP, और जिला प्रशासन की टीमें युद्धस्तर पर राहत कार्य में जुटी हैं। हर्षिल में सेना का बेस कैंप होने के कारण त्वरित कार्रवाई शुरू हुई। MI-17 और चिनूक हेलिकॉप्टरों के साथ-साथ ड्रोन और सेंसर का उपयोग लोगों की तलाश के लिए किया जा रहा है।
उत्तराखंड सरकार ने राहत कार्यों के लिए 20 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं, और तीन IAS अधिकारियों की एक कमेटी गठित की गई है। प्रभावित लोगों को कोपांग के ITBP कैंप में ठहराया गया है, जहां आवश्यक सुविधाएँ दी जा रही हैं। प्रशासन ने हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं, और लोगों से नदी-नालों से दूर रहने की अपील की है।
पीएम मोदी से लेकर इन नेताओं ने दी प्रतिक्रिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से बात कर हर संभव मदद का आश्वासन दिया।
मुख्यमंत्री धामी ने स्थिति की निगरानी और राहत कार्यों को तेज करने का निर्देश दिया।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ITBP और NDRF की टीमें भेजने की घोषणा की।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने पीड़ितों के लिए सहायता की अपील की।
वरिष्ठ पत्रकार/ लेखक प्रकाश मेहरा ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा “उत्तराखंड के धराली, उत्तरकाशी में आई आपदा अत्यंत पीड़ादायक है। प्रभावित परिवारों के प्रति मेरी गहरी संवेदनाएं प्रकट करता हूं। ईश्वर से सभी पीड़ित लोगों के सुरक्षित होने की कामना करता हूँ।”
किन इलाकों में पड़ता है सबसे ज्यादा असर?
बादल फटने की घटनाएँ मुख्य रूप से हिमालयी क्षेत्रों में होती हैं, जैसे: उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, और पिथौरागढ़ जैसे जिले।
हिमाचल प्रदेश: मंडी, शिमला, और किन्नौर जैसे क्षेत्र।
जम्मू-कश्मीर: किश्तवाड़ और अन्य पर्वतीय क्षेत्र।
पूर्वोत्तर राज्य: सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, और मेघालय।
क्या है इसका कारण ?
पहाड़ी ढलानें बादलों को ऊपर उठने के लिए मजबूर करती हैं, जिससे भारी बारिश होती है। जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान वृद्धि और क्षेत्रीय जलचक्र में बदलाव बादल फटने की घटनाओं को बढ़ाते हैं।अवैध निर्माण से नदी किनारों पर बने होटल, होमस्टे, और अन्य संरचनाएँ आपदा की तीव्रता को बढ़ाती हैं।
घर, होटल, और बुनियादी ढांचे नष्ट हो जाते हैं। मलबे और पानी के तेज बहाव से रास्ते और पुल बह जाते हैं। नदियाँ प्रदूषित होती हैं, और पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है।
उत्तरकाशी में पहले भी हुईं घटनाएँ
सितंबर 2012: उत्तरकाशी में बादल फटने से 45 लोगों की मौत, 40 लापता।
जुलाई 2025: चमोली में बादल फटने से कई घर और गौशालाएँ नष्ट।
जुलाई 2025: रुद्रप्रयाग के केदारघाटी में बादल फटने से गाड़ियाँ और घर मलबे में दबे।
मौसम विभाग की चेतावनियाँ !
हालांकि बादल फटने की सटीक भविष्यवाणी मुश्किल है, भारी बारिश के अलर्ट का पालन जरूरी है। नदी किनारों पर अवैध निर्माण पर रोक लगाने की जरूरत। स्थानीय लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने और नदी-नालों से दूरी बनाए रखने की सलाह।त्वरित राहत और बचाव के लिए प्रशिक्षित टीमें और संसाधन तैयार रखने की आवश्यकता।
उत्तरकाशी के धराली में हुई इस आपदा ने एक बार फिर हिमालयी क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं की गंभीरता को उजागर किया है। हालांकि मौसम विभाग ने इसे बादल फटने की बजाय ग्लेशियर झील के टूटने की संभावना बताया है, लेकिन प्रभावित क्षेत्र में राहत कार्य तेजी से चल रहे हैं। जलवायु परिवर्तन और अवैध निर्माण जैसे कारकों को नियंत्रित कर भविष्य में ऐसी घटनाओं के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
हेल्पलाइन नंबर:- आपात स्थिति के लिए 112 या जिला आपातकालीन परिचालन केंद्र, हरिद्वार से संपर्क करें।