
सरल डेस्क
जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के चशोती गांव में 14 अगस्त को दोपहर करीब 12:25 बजे बादल फटने (cloudburst) से आई प्राकृतिक आपदा ने भारी तबाही मचाई। इस घटना ने पूरे इलाके को खंडहर में बदल दिया, जिसमें मकान, गाड़ियां, मंदिर, और पुल बह गए। चिनाब नदी में अचानक उफान और मलबे के सैलाब ने कई जिंदगियों को लील लिया। यह आपदा मचैल माता यात्रा मार्ग पर हुई, जहां हजारों श्रद्धालु मौजूद थे, जिसके कारण हताहतों की संख्या में इजाफा हुआ। मचैल माता की वार्षिक यात्रा को फिलहाल रोक दिया गया है।
कितनी हुई मृतकों की संख्या ?
अब तक 65 शव बरामद किए गए हैं, जिनमें सीआईएसएफ के दो जवान भी शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार, मृतकों की संख्या 60 से 65 के बीच बताई जा रही है, और यह आंकड़ा बढ़ सकता है। 100 से अधिक लोग घायल हुए हैं, जिनमें 107 को अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने दावा किया कि “500 से 1000 लोग मलबे में दबे हो सकते हैं। लापता लोगों की सटीक संख्या अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन अनुमानित तौर पर सैकड़ों लोग लापता हैं। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सेना, और जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवान रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटे हैं।
हेलिकॉप्टर और ड्रोन की मदद से दूरदराज के इलाकों में फंसे लोगों को निकालने की कोशिश जारी है। अब तक 167 लोगों को सुरक्षित निकाला गया है, जिनमें 38 की हालत गंभीर है। रेस्क्यू ऑपरेशन में रस्सियों और मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन मलबे और नदी में बहे लोगों की तलाश में दिक्कतें आ रही हैं।
क्या पड़ा आपदा का प्रभाव ?
चशोती गांव, जो मचैल माता मंदिर के रास्ते पर स्थित है, सबसे अधिक प्रभावित हुआ। यह गांव शहर से 90 किमी दूर है, और यहाँ श्रद्धालुओं के लिए लगाया गया लंगर भी तबाह हो गया। मलबे और कीचड़ भरे पानी ने दुकानों, सुरक्षा चौकियों, और इमारतों को नष्ट कर दिया। सड़कें और बचाव मार्ग अवरुद्ध हो गए। इलाके का हरा-भरा परिदृश्य अब भूरे-धूसर मलबे में बदल गया है।
प्रशासन और सरकार की प्रतिक्रिया
पीएम मोदी ने 15 अगस्त को मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से फोन पर बात की और हर संभव मदद का भरोसा दिया। उन्होंने पीड़ित परिवारों के प्रति संवेदना जताई।
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने श्रीनगर के बख्शी स्टेडियम में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कहा कि “घटना की जांच होगी, और यह पता लगाया जाएगा कि क्या मौसम की चेतावनी के बावजूद लापरवाही हुई। उन्होंने किश्तवाड़ का दौरा भी किया।”
स्थानीय प्रशासन ने मचैल माता यात्रा को रोक दिया है और राहत शिविर स्थापित किए हैं।
क्या है स्थानीय स्थिति ?
आपदा के कारण स्वतंत्रता दिवस का समारोह फीका रहा। पीड़ितों के परिजन अस्पतालों और राहत शिविरों में अपनों की तलाश कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरें और वीडियो इस तबाही की भयावहता को दर्शा रहे हैं। यह आपदा हिमालय की नाजुक ढलानों पर हाल की दूसरी बड़ी घटना है। हाल ही में उत्तराखंड के उत्तरकाशी में 5 अगस्त को आई बाढ़ में 68 लोग लापता हुए थे। किश्तवाड़ में सड़क सुरक्षा और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की तैयारियों पर सवाल उठ रहे हैं।
आपदाओं के बढ़ते खतरे की ओर
किश्तवाड़ की इस आपदा ने न केवल भारी जान-माल का नुकसान किया, बल्कि क्षेत्र में आपदा प्रबंधन और मौसम चेतावनी प्रणाली की कमियों को भी उजागर किया। रेस्क्यू ऑपरेशन अभी भी जारी है, और मलबे में दबे लोगों को निकालने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि, लापता लोगों की संख्या और मलबे में दबे लोगों की स्थिति को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। यह घटना हिमालयी क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ते खतरे की ओर भी इशारा करती है।