
स्पेशल डेस्क
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) चुनाव को दुनिया का सबसे बड़ा छात्र संगठन का चुनाव माना जाता है, जिसमें 7 लाख से अधिक छात्र शामिल होते हैं। यह न केवल कैंपस की राजनीति का केंद्र है, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति का “मिनी थिएटर” भी कहलाता है। चाहे BJP हो, कांग्रेस हो या लेफ्ट पार्टियां, हर दल यहां जोर-शोर से उतर आता है। कारण? युवा वोट बैंक, भविष्य के नेताओं का निर्माण और राष्ट्रीय मुद्दों का टेस्टिंग ग्राउंड। 2025 के चुनाव में भी यही देखने को मिला, जहां ABVP (BJP की छात्र इकाई) ने तीन प्रमुख पद जीते, जबकि NSUI (कांग्रेस की छात्र इकाई) को सिर्फ एक मिला। आइए विस्तार में विश्लेषण एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं।
DUSU क्या है और क्यों महत्वपूर्ण ?
DUSU की स्थापना 1949 में हुई थी, और यह DU के 91 कॉलेजों व 16 फैकल्टीज के छात्रों का प्रतिनिधित्व करता है। हर साल सितंबर में चार मुख्य पदों (प्रेसिडेंट, वाइस प्रेसिडेंट, सेक्रेटरी, जॉइंट सेक्रेटरी) के लिए चुनाव होते हैं। बजट लगभग 24 लाख रुपये का होता है, जो छात्रों के मुद्दों जैसे हॉस्टल, फीस, सुरक्षा पर खर्च होता है। लेकिन असलियत में, यह राष्ट्रीय दलों का अड्डा बन चुका है। DU पूरे देश से छात्र लाता है, इसलिए यहां के रुझान राष्ट्रीय चुनावों का संकेत देते हैं। उदाहरण के लिए, 2019 से ABVP का दबदबा BJP की युवा अपील को दिखाता है।
DUSU में नेताओं की पौध
DUSU से निकले कई नेता आज केंद्रीय मंत्रिमंडल में हैं, जैसे पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली (BJP), सुषमा स्वराज (BJP), अजय माकन (कांग्रेस), अलका लांबा (कांग्रेस)। यह दलों के लिए “नर्सरी” है। क्यों लगाते हैं दांव ? हर दल DUSU को युवाओं को लुभाने और संगठन मजबूत करने के लिए इस्तेमाल करता है। यहां छात्र विंग्स के जरिए राष्ट्रीय एजेंडे को कैंपस तक पहुंचाया जाता है।
छात्र विंग 2025 चुनाव में प्रदर्शन बीजेपी ABVP (RSS से संबद्ध) राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, विकास। कैंपस में सांस्कृतिक कार्यक्रमों से प्रभाव। पिछले 10 सालों में 8 बार प्रेसिडेंट पद जीता। तीन पद जीते (प्रेसिडेंट: आर्यन मान, सेक्रेटरी, जॉइंट सेक्रेटरी)। बिहार, यूपी के BJP नेता जैसे विजय सिन्हा, दयाशंकर सिंह ने प्रचार किया।
कांग्रेस और अन्य दलों की स्थिति
कांग्रेस NSUI सामाजिक न्याय, महिला सुरक्षा, रोजगार। राष्ट्रीय मुद्दों (जैसे बेरोजगारी) को जोड़कर प्रचार। 2017 के बाद कमजोर, लेकिन 2024 में वाइस प्रेसिडेंट जीता। सिर्फ वाइस प्रेसिडेंट (राहुल झांसला) जीता। प्रेसिडेंट जोसलिन नंदिता चौधरी हार गईं। सचिन पायलट, दीपेंद्र हुड्डा जैसे नेता प्रचार में उतरे।
लेफ्ट (CPI/CPM)
SFI-AISA गठबंधन वामपंथी विचारधारा, छात्र अधिकार, जाति-विरोधी। JNU जैसी जगहों पर मजबूत, लेकिन DU में कम प्रभाव। 2024 में पहली बार SFI-AISA का गठबंधन। कोई पद नहीं जीता। अंजलि (प्रेसिडेंट) और सोहन कुमार (वाइस प्रेसिडेंट) तीसरे नंबर पर। महिला आरक्षण जैसे मुद्दे उठाए।
अन्य (AAP) ASAP पारदर्शिता, मुद्दा-आधारित राजनीति। पैसे-बल के खिलाफ। 2025 में पहली बार उतरी। कोई उम्मीदवार नहीं, लेकिन NSUI की हार पर तंज कसा कि AAP ही BJP को हरा सकती है।
BJP का दिल क्यों ?
ABVP पिछले दशक से दबदबे में है। 2025 में प्रेसिडेंट आर्यन मान ने NSUI की जोसलिन को भारी अंतर से हराया। BJP नेता इसे “मोदी मैजिक” का प्रमाण मानते हैं। युवाओं को राष्ट्रवाद से जोड़ना उनका फोकस है। कांग्रेस का दर्द क्यों ? NSUI ने 2025 में 17 साल बाद महिला को प्रेसिडेंट टिकट दिया, लेकिन हार गई। आंतरिक कलह (गुटबाजी) और गलत उम्मीदवार चयन का आरोप। फिर भी, वाइस प्रेसिडेंट पर यादव वोटों से जीत ने कुछ राहत दी।
लेफ्ट का संघर्ष क्यों ? वे विचारधारा पर जोर देते हैं, लेकिन DU जैसे विविध कैंपस में जाति-क्षेत्रवाद हावी रहता है। SFI-AISA का गठबंधन नया था, लेकिन प्रभाव सीमित रहा।
2025 चुनाव की हाइलाइट्स
18 सितंबर को 39.36% टर्नआउट (60,272 वोट)। 21 उम्मीदवार, जिनमें 7 महिलाएं। EVM पर आरोप-प्रत्यारोप लगे—NSUI ने छेड़छाड़ का दावा किया, ABVP ने बूथ कैप्चरिंग का। प्रेसिडेंट पर ABVP की दीपिका झा vs NSUI की जोसलिन। 17 साल बाद महिला प्रेसिडेंट की उम्मीद टूटी।
क्यों हर दल का दिल धड़कता है ?
18-23 साल के 3.5 लाख नए वोटर दिल्ली विधानसभा (2025) और लोकसभा (2029) के लिए ट्रेंड सेट करते हैं। DUSU जीत से कैंपस नेटवर्क बढ़ता है। BJP ने इसे “युवा मन पढ़ने” का टूल बनाया। हार-जीत से दल की इमेज बनती-बिगड़ती है। NSUI की हार पर X पर ट्रोलिंग हुई कि “कांग्रेस BJP को नहीं हरा सकती”। बूथ कैप्चरिंग, EVM टैंपरिंग जैसे आरोप हर बार। 2025 में भी प्रोफेसर्स पर पक्षपात के दावे।
राजनीति का कैंपस संस्करण
DUSU चुनाव छात्र मुद्दों से ज्यादा राष्ट्रीय दलों की जंग बन चुका है। BJP का दबदबा जारी है, लेकिन NSUI-लेफ्ट को युवाओं के असंतोष (जैसे NOTA वोट्स 16% तक) से सबक लेना चाहिए। असल सवाल क्या छात्रों के हॉस्टल-फीस जैसे मुद्दे कभी प्राथमिकता पाएंगे, या यह हमेशा “मिनी संसद” बने रहेगा ? 2025 की जीत ABVP को मिली, लेकिन 2026 के दिल्ली विधानसभा में असर दिखेगा।