
श्रीकांत द्विवेदी
दिल्ली डेस्क
भारतीय पत्रकारिता में नई सोच और नई ऊर्जा भरने वाले युवा लेखक प्रकाश मेहरा आज सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि उभरती पीढ़ी के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। उनकी लेखनी ने न जाने कितने युवाओं को पत्रकारिता की ओर मोड़ा, और उनकी कविताओं ने सोशल मीडिया पर एक अलग ही पाठक वर्ग तैयार किया है। उनकी साहित्यिक शैली में जो ईमानदारी और सामाजिक सरोकार है, वही उन्हें बाकी लेखकों से अलग पहचान दिलाता है।
उनकी पहली चर्चित पुस्तक “वे टू जर्नलिज़्म” ने देश और विदेश में अभूतपूर्व सफलता हासिल की। कई शिक्षण संस्थानों, मीडिया प्रोफेशनल्स और स्थापित पत्रकारों ने उन्हें बधाई देते हुए कहा— “इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी उपलब्धि… यह इतिहास की नई रचना है।”
अब “जर्नलिज़्म विदआउट बॉर्डर”—एक नई शुरुआत की दस्तक
हालाँकि उनकी नई पुस्तक “जर्नलिज़्म विदआउट बॉर्डर” कुछ अनिवार्य कारणों से समय पर प्रकाशित नहीं हो पाई, लेकिन अब यह पुस्तक अगले माह रिलीज़ होने जा रही है। इस पुस्तक से उम्मीदें सिर्फ साहित्यिक नहीं, बल्कि पत्रकारिता के भविष्य को दिशा देने वाली हैं। पत्रकारों, विद्यार्थियों और उनके विशाल पाठक वर्ग में इस पुस्तक को लेकर जबरदस्त उत्सुकता है।
इस पुस्तक से जुड़े सूत्रों के अनुसार इसमें—
- सीमाओं से परे पत्रकारिता
- फील्ड रिपोर्टिंग की वास्तविक चुनौतियाँ
- न्यूज़रूम की अनकही कहानियाँ
- मीडिया के बदलते परिदृश्य
- और पत्रकार की सामाजिक ज़िम्मेदारी
जैसे महत्वपूर्ण विषयों को एक नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है।
गाँव सवाड़: सैनिकों की धरती और एक युवा पत्रकार का संघर्ष
प्रकाश मेहरा केवल एक लेखक नहीं, बल्कि अपने क्षेत्र के विकास के लिए लगातार लड़ने वाले एक जागरूक नागरिक भी हैं। उनका गाँव सवाड़, जिसे सैनिक बाहुल्य क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, वर्षों से बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग करता रहा है। लेकिन इस संघर्ष को दिशा मिली—जब गाँव के लोगों के साथ-साथ प्रकाश मेहरा ने भी इस लड़ाई को अपनी कलम और आवाज़ के माध्यम से उठाया।
केंद्रीय विद्यालय: वर्षों पुराना सपना, जो अब हकीकत बन रहा है
सवाड़ में केंद्रीय विद्यालय की स्थापना एक ऐसा सपना था जिसे ग्रामीणों ने वर्षों से संजो रखा था। यह सपना तब साकार हुआ जब—
- ग्रामीणों ने अपनी जमीनें दान की
- टिनशेड बनवाए
- बारिश-धूप की परवाह किए बिना आंदोलन जारी रखा
- और प्रकाश मेहरा ने सीएम हेल्पलाइन, आरटीआई और निरंतर रिपोर्टिंग के माध्यम से इस मुद्दे को प्रशासन तक पहुँचाया
प्रकाश मेहरा कहते हैं “मेरे गाँव के लोग शिक्षा के लिए समर्पित हैं। कोई भी विद्यालय ले लीजिए—चाहे शिक्षा हो या खेल, हमारे बच्चे हमेशा आगे रहते हैं। हम सिर्फ सैनिकों का गाँव नहीं, बल्कि एक आदर्श गाँव हैं। इस सपने को सच करने में हर ग्रामीण की मेहनत है, मेरा योगदान सिर्फ एक छोटा हिस्सा है।”
चिकित्सा व्यवस्था: एक अनदेखा संकट, जिसे उजागर किया मेहरा ने
सवाड़ क्षेत्र की स्वास्थ्य व्यवस्था लंबे समय से चिंताजनक है। प्राथमिक चिकित्सा केंद्र तो है, पर सुविधाएँ नहीं।
प्रकाश मेहरा जब इस विषय पर जानकारी लेने पहुँचे, तो जो तथ्य सामने आए, उन्होंने उन्हें चौंका दिया।
- गाँव से अस्पताल 10 किलोमीटर दूर
- अगर वह भी उपलब्ध न हो तो 13 किलोमीटर दूर थराली जाना अनिवार्य
- एम्बुलेंस और डॉक्टर की उपलब्धता अनिश्चित
मेहरा कहते हैं “ये व्यवस्था देखकर मैं हैरान रह गया। आपातकाल में लोगों को 10–13 किलोमीटर सफर करना पड़ता है। क्या ग्रामीणों का जीवन इतना सस्ता है कि उनकी परेशानियाँ कोई नहीं सुनता?”
विकास कार्यों की धीमी रफ़्तार पर सख्त प्रश्न
जब उन्होंने क्षेत्र के विकास संबंधी दस्तावेज़ मांगे, तो उत्तर निराशाजनक थे। कुछ अधिकारियों के जवाबों ने तो स्थिति को और भी स्पष्ट कर दिया।
उनके शब्दों में “एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा ‘आप कुछ मानवता तो दिखाइए।’ मैं सोच में पड़ गया कि जब व्यवस्था के जिम्मेदार लोग ही संवेदनहीन हो जाएँ, तो जनता अपनी मूल समस्याओं का समाधान कब पाएगी? हम कब तक इस सिस्टम से लड़ते रहेंगे?”
प्रकाश मेहरा: कलम से संघर्ष तक की यात्रा जारी
आज प्रकाश मेहरा की पहचान केवल एक लेखक या पत्रकार तक सीमित नहीं है।
वे—
- सामाजिक मुद्दों पर मुखर आवाज़ हैं
- अपने गाँव और क्षेत्र के लिए लगातार संघर्षरत हैं
- पत्रकारिता को नई दृष्टि देने वाले युवा चेहरे हैं
- और एक ऐसी पीढ़ी की प्रेरणा हैं जो शब्दों से बदलाव लाना चाहती है
उनकी आने वाली पुस्तक “जर्नलिज़्म विदआउट बॉर्डर” न सिर्फ पत्रकारिता की किताब होगी, बल्कि समाज और व्यवस्था के प्रति उनकी सोच और अनुभवों का दर्पण होगी।