
अनिल गुप्ता, नई दिल्ली
विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की दो दिवसीय बैठक दिल्ली स्थित बाबा नत्था सिंह वाटिका में सम्पन्न हुई। बैठक में देशभर से विभिन्न पंथों के लगभग 225 वरिष्ठ संतों ने भाग लिया। परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार ने बैठक के प्रमुख बिंदुओं की जानकारी साझा की।
धार्मिक अल्पसंख्यक की परिभाषा पर बहस की आवश्यकता : विहिप
बैठक में धार्मिक अल्पसंख्यक की परिभाषा को लेकर विस्तृत चर्चा हुई। आलोक कुमार ने बताया कि संविधान में धार्मिक अल्पसंख्यकों को विशेषाधिकार प्राप्त हैं, लेकिन “धार्मिक अल्पसंख्यक” शब्द की कोई स्पष्ट परिभाषा संविधान में नहीं दी गई है।
उन्होंने कहा कि 1992 के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम में केंद्र सरकार को किसी भी धार्मिक समूह को अल्पसंख्यक घोषित करने का अधिकार दिया गया है, परन्तु यह भी आवश्यक है कि यह देखा जाए कि—
- क्या किसी समुदाय को धर्म के आधार पर कभी उत्पीड़न या भेदभाव झेलना पड़ा है?
- क्या वे सामाजिक, आर्थिक या शैक्षिक रूप से अन्य समुदायों से पिछड़ गए हैं?
विहिप के अनुसार भारत में मुस्लिम और ईसाई समुदायों को पंचांगों में किसी भी काल में धर्म के आधार पर व्यवस्थित उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ा तथा वे समाज के विभिन्न क्षेत्रों में भी पिछड़े नहीं हैं।
आलोक कुमार ने यह भी उल्लेख किया कि 2011 की जनगणना के अनुसार मुस्लिम आबादी 14% से अधिक थी और अब इसके 18–20% के बीच पहुँचने का अनुमान है। ऐसे में उनके अनुसार यह विचारणीय है कि धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक की श्रेणी का क्या औचित्य है।
केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल ने इस विषय पर व्यापक राष्ट्रीय बहस की आवश्यकता जताई, ताकि एक स्पष्ट और उचित निर्णय तक पहुंचा जा सके।
जिहाद की जड़ें कट्टरता में, न कि गरीबी में — विहिप
बैठक में हाल ही में लालकिले पर हुए बम विस्फोट की जांच रिपोर्टों पर भी चर्चा की गई। विहिप के अनुसार हमले में शामिल लोग गरीब या पिछड़े वर्ग से नहीं थे, बल्कि शिक्षित, संपन्न और सामाजिक रूप से स्थापित व्यक्तियों की भूमिका सामने आई है।
कुछ शैक्षणिक संस्थानों में कट्टरपंथी विचारों के प्रसार, भर्ती और प्रशिक्षण जैसे आरोपों पर भी चिंता व्यक्त की गई। परिषद के अनुसार वैश्विक स्तर पर आतंकवादियों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने वाले तंत्रों की भी जांच जरूरी है।
विहिप ने कहा कि कट्टरपंथी हिंसा केवल कानून-व्यवस्था का ही विषय नहीं है, बल्कि इसके वैचारिक और सामाजिक पहलुओं का भी गंभीरता से समाधान किया जाना चाहिए। संगठन ने ऐसी विचारधाराओं के विरुद्ध वैचारिक, सामाजिक और कानूनी स्तर पर कठोर प्रतिरोध की आवश्यकता बताई।
न्यायपालिका पर दबाव बनाने के प्रयासों की निंदा
बैठक में तमिलनाडु उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामीनाथन के एक निर्णय के विरोध में उनके विरुद्ध महाभियोग लाने की चर्चा को भी अनुचित बताया गया।
विहिप के अनुसार किसी न्यायाधीश के निर्णय से असहमति होने पर कानूनी प्रक्रिया के तहत सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है, परंतु महाभियोग की पहल न्यायपालिका पर अनावश्यक दबाव बनाने का प्रयास प्रतीत होती है। परिषद ने ऐसे प्रयासों की निंदा की।