Written by- Sakshi Srivastava
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर जो सस्पेंस बना हुआ है, वह लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। गुरुवार को दिल्ली में हुई महायुति की बैठक में इस मुद्दे पर कोई स्पष्टता नहीं मिली। सूत्रों के मुताबिक, इस बैठक में मुख्यमंत्री के चेहरे पर कोई निर्णय नहीं लिया गया, जिससे सस्पेंस और गहरा गया। अब सभी की नजर मुंबई में होने वाली बैठक पर है, जहां इस मुद्दे पर अधिक चर्चा और निर्णय की उम्मीद जताई जा रही है।
राजनीतिक समीकरण और सहयोगी दलों के बीच तकरार के कारण यह स्थिति काफी पेचीदा हो गई है। आने वाले दिनों में महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद को लेकर स्थिति साफ हो सकती है, लेकिन फिलहाल यह मामला लटकता हुआ नजर आ रहा है।
शिवसेना नेता मनीषा कायंदे ने महायुति की बैठक के बाद अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि कार्यवाहक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर पूरा विश्वास जताया है, क्योंकि वे एनडीए (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) के अहम सदस्य हैं। मनीषा कायंदे ने यह भी स्पष्ट किया कि शिवसेना विधायक दल ने एकनाथ शिंदे को अपना नेता चुना है और अब विभागों तथा अन्य मुद्दों पर निर्णय लेने का काम शिंदे पर छोड़ दिया गया है।
इस बयान से यह साफ होता है कि शिंदे की सरकार और पार्टी की प्राथमिकता केंद्र सरकार के साथ सामंजस्य बनाए रखने की है, और उन्होंने मुख्यमंत्री पद के मामले में स्पष्ट दिशा देने के लिए अपने नेतृत्व को पीएम मोदी और अमित शाह पर भरोसा जताया है। पार्टी ने अब यह निर्णय लिया है कि वे सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर एकनाथ शिंदे की अगुवाई में बात करेंगे।
कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने महायुति के नेतृत्व को लेकर सवाल उठाते हुए कहा कि यह लोकतंत्र का मजाक है कि पूर्ण बहुमत होने के बावजूद महायुति अपने नेता का चयन नहीं कर पा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह गठबंधन सिर्फ स्वार्थ पर आधारित है, और भले ही महायुति को बहुमत मिला हो, लेकिन उसे जनता का विश्वास और समर्थन प्राप्त नहीं होगा।
प्रमोद तिवारी ने ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) पर भी चिंता जताई और कहा कि यदि ईवीएम में गड़बड़ी नहीं होती तो चुनाव के परिणाम अलग होते। उनका मानना है कि चुनाव बैलेट पेपर से होने चाहिए, जैसा कि अन्य देशों में भी होता है, जहां ईवीएम बनने के बावजूद बैलेट पेपर से चुनाव किए जाते हैं। यह टिप्पणी कांग्रेस द्वारा ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जाने और चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता की मांग की एक कड़ी के रूप में देखी जा रही है।
उनकी बात से यह जाहिर होता है कि कांग्रेस महायुति के नेताओं के बीच चल रहे सस्पेंस को लेकर न केवल राजनीतिक मुद्दों पर बल्कि चुनाव प्रक्रिया पर भी गंभीर सवाल उठा रही है।
शिवसेना (यूबीटी) सांसद संजय राउत ने एकनाथ शिंदे और अजित पवार के खिलाफ तीखा बयान दिया है, जिसमें उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण फैसले दिल्ली में ही होंगे। राउत ने आरोप लगाया कि शिंदे और पवार को अपनी बात रखने के लिए बार-बार दिल्ली जाना पड़ेगा, जहां उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की बातों को सुनना पड़ेगा।
राउत ने अजित पवार को लेकर भी टिप्पणी की और कहा कि वे हमेशा डिप्टी सीएम रहेंगे, क्योंकि उनका राजनीतिक इतिहास इसी पद के इर्द-गिर्द घूमता है। इसके साथ ही राउत ने व्यंग्य करते हुए यह भी कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद अजित पवार का चेहरा जो फीका पड़ गया था, अब वह ईवीएम के “कमाल” से फिर से चमक उठा है। उन्होंने यह भी मजाक करते हुए कहा कि अब दिल्ली में “तीन मूर्ति” वाला एक नया मंदिर बनना चाहिए, जिसमें बीच में ईवीएम, एक तरफ पीएम और दूसरी तरफ अमित शाह हो।
यह बयान संजय राउत की राजनीतिक शैली का एक उदाहरण है, जहां वे महायुति के नेताओं की आलोचना करते हुए उनका मजाक उड़ा रहे हैं और महाराष्ट्र की राजनीति में दिल्ली के बढ़ते हस्तक्षेप पर सवाल उठा रहे हैं। राउत का यह बयान स्पष्ट रूप से ईवीएम और महायुति के बीच चल रहे राजनीतिक समीकरणों पर एक कटाक्ष के रूप में देखा जा रहा है।