
स्पेशल डेस्क
भारत की शिक्षा व्यवस्था, खासकर प्रतियोगी परीक्षाओं के संदर्भ में, पिछले कुछ वर्षों में कई चुनौतियों का सामना कर रही है। पेपर लीक, भर्ती घोटाले, और परीक्षा केंद्रों पर अनियमितताओं ने न केवल शिक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि लाखों छात्रों के भविष्य को भी अनिश्चितता के भंवर में डाल दिया है। आइये इस विशेष रिपोर्ट में, हम इन समस्याओं के कारणों, सरकार के कदमों, और उनके प्रभावों का विश्लेषण करेंगे, साथ ही पिछले पांच वर्षों में पेपर लीक के मामलों की स्थिति को एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा की इस विश्लेषण से समझते हैं।
शिक्षा व्यवस्था के डगमगाने के कारण
पेपर लीक की घटनाएं देशभर में एक गंभीर समस्या बन चुकी हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, प्रिंटिंग प्रेस, बैंक लॉकर, और परीक्षा केंद्रों पर सुरक्षा व्यवस्था में कमी के कारण पेपर लीक हो रहे हैं। नकल माफिया, कोचिंग सेंटर, और कुछ भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत इस समस्या को और गंभीर बना रही है।
उदाहरण के लिए, राजस्थान में 2019 के बाद से औसतन हर साल तीन पेपर लीक की घटनाएं सामने आई हैं, जिसने लगभग 40 लाख छात्रों को प्रभावित किया।
परीक्षा केंद्रों पर अपर्याप्त सुरक्षा
कई परीक्षा केंद्रों पर उचित निगरानी और तकनीकी संसाधनों की कमी देखी गई है। अत्याधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग करके नकल की घटनाएं सामने आई हैं, जैसे कि राजस्थान में 14 मई 2023 को आयोजित राजस्व अधिकारी और अधिशासी अधिकारी की परीक्षा में।
हरियाणा, उत्तर प्रदेश, और अन्य राज्यों में भी बोर्ड और भर्ती परीक्षाओं में पेपर लीक की घटनाएं सामने आई हैं, जिससे केंद्रों की विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं।
वेंडर्स और प्रिंटिंग प्रेस की भूमिका
प्रिंटिंग प्रेस, जहां प्रश्नपत्र छपते हैं, और वेंडर्स, जो इन्हें परीक्षा केंद्रों तक पहुंचाते हैं, अक्सर पेपर लीक का स्रोत पाए गए हैं। उदाहरण के लिए, गुजरात में सूर्या ऑफसेट प्रिंटिंग प्रेस से 2021 में पेपर लीक का मामला सामने आया था। कमीशन और भर्ती एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी भी एक बड़ा कारण है।
सरकारी नौकरियों की सीमित संख्या और सामाजिक रूप से नौकरी को शिक्षा का अंतिम लक्ष्य मानने की मानसिकता ने पेपर लीक माफिया को बढ़ावा दिया है। यह माफिया प्रति छात्र 20-50 लाख रुपये तक वसूल करता है। शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी प्राप्त करना बन गया है, जिसके कारण कौशल विकास पर ध्यान कम हो रहा है।
परीक्षा नियामक संस्थाओं की कमजोरी
राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (NTA) जैसे संस्थानों की विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं। कांग्रेस ने इसे “वीक” करार देते हुए मांग की है कि परीक्षाओं की जिम्मेदारी शिक्षा विभाग को दी जाए। पिछले सात वर्षों में देशभर में 70 से अधिक पेपर लीक की घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिनमें से अधिकांश पिछले पांच वर्षों में हुई हैं। इनका प्रभाव लगभग 1.5-2 करोड़ छात्रों पर पड़ा है।
राजस्थान: सबसे अधिक प्रभावित राज्य, जहां 2019 के बाद हर साल औसतन तीन पेपर लीक हुए। REET 2021 और SI भर्ती 2021 जैसे मामले प्रमुख हैं।
उत्तर प्रदेश: यूपी टीईटी, पुलिस भर्ती, और अन्य परीक्षाओं में पेपर लीक के कारण कई परीक्षाएं रद्द हुईं।
गुजरात: 2021 और 2023 में जूनियर क्लर्क और अन्य भर्ती परीक्षाओं में लीक की घटनाएं।
मध्य प्रदेश, हरियाणा, तेलंगाना: बोर्ड और भर्ती परीक्षाओं में लीक के मामले सामने आए।
बिहार: पिछले पांच वर्षों में 400 से अधिक छात्र प्रदर्शन पेपर लीक और अनियमितताओं के खिलाफ हुए।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम
केंद्र और राज्य सरकारों ने पेपर लीक और भर्ती घोटालों को रोकने के लिए कई उपाय किए हैं, हालांकि इनकी प्रभावशीलता पर सवाल बने हुए हैं कानूनी कदम केंद्र सरकार: 21 जून 2024 को ‘लोक परीक्षा (अनुचित साधन रोकथाम) विधेयक, 2024’ लागू किया गया। इसके तहत पेपर लीक करने वालों को 10 साल तक की सजा और 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। यह कानून UPSC, SSC, रेलवे, बैंकिंग, और NTA की परीक्षाओं पर लागू है।
राजस्थान में गहलोत सरकार ने 2023 में पेपर लीक के लिए उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान किया।मध्य प्रदेश में मोहन यादव सरकार ने 2024 में 1 करोड़ जुर्माना और 10 साल की गैर-जमानती सजा का कानून बनाया। पेपर लीक को संगठित अपराध मानने और केंद्रीय एजेंसी द्वारा जांच की सिफारिश की गई है।
डिजिटल लॉकर सिस्टम !
यूपीएससी ने डिजिटल लॉकर सिस्टम लागू किया, जिसमें प्रश्नपत्र मल्टी-लेयर डिजिटल लॉक बॉक्स में रखे जाते हैं और परीक्षा शुरू होने से 30 मिनट पहले दो उम्मीदवारों की उपस्थिति में खोले जाते हैं। प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग भी अनिवार्य की गई है। कुछ राज्यों में आधार और बायोमेट्रिक्स का उपयोग बढ़ाया गया है।
राजस्थान में RPSC और RSSB के लिए पहली बार परीक्षा कैलेंडर जारी किया गया। उत्तराखंड में CM धामी ने पेपर लीक के दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया की बात कही। मध्य प्रदेश में 1937 के पुराने परीक्षा कानून को बदलने की प्रक्रिया शुरू की गई।
क्या हुई जांच और कार्रवाई ?
राजस्थान, उत्तर प्रदेश, और गुजरात में STF और SOG ने कई मास्टरमाइंड्स को गिरफ्तार किया। उदाहरण के लिए, यूपी पुलिस भर्ती केस में मुख्य आरोपी राजीव को गिरफ्तार किया गया। राजस्थान में RPSC सदस्य बाबूलाल कटारा सहित कई लोगों को गिरफ्तार किया गया।
छात्रों का भविष्य,अनिश्चितता का दौर
पेपर लीक और परीक्षा रद्द होने से छात्रों की सालों की मेहनत बर्बाद हो रही है। उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश में नर्सिंग छात्र कुणाल कुमार ने बताया कि 2022 की भर्ती परीक्षा का परिणाम दो साल बाद भी नहीं आया। बार-बार की अनियमितताओं ने छात्रों में शिक्षा प्रणाली और सरकार के प्रति अविश्वास पैदा किया है। बिहार में 400 से अधिक प्रदर्शन इस असंतोष का प्रतीक हैं।
विशेषज्ञ के तौर पर प्रकाश मेहरा का मानना है कि “शिक्षा को केवल नौकरी से जोड़ने की मानसिकता ने कौशल विकास को प्रभावित किया है, जिससे छात्रों का भविष्य सीमित हो रहा है।”
केंद्रीकृत और पारदर्शी प्रणाली
विशेषज्ञ एक केंद्रीकृत भर्ती कैलेंडर और यूपीएससी जैसी एकल एजेंसी की सलाह देते हैं। डिजिटल लॉकर, बायोमेट्रिक्स, और ऑन-साइट पेपर प्रिंटिंग को बढ़ावा देना। शिक्षा को केवल नौकरी से जोड़ने के बजाय कौशल विकास पर ध्यान देना चाहिए। नकल माफिया की संपत्ति जब्त करना और त्वरित सजा सुनिश्चित करना।
“शिक्षित भारत, विकसित भारत” ?
शिक्षा व्यवस्था में पेपर लीक और भर्ती घोटाले एक गंभीर संकट हैं, जो लाखों छात्रों के भविष्य को प्रभावित कर रहे हैं। सरकार ने कठोर कानून और तकनीकी सुधारों की दिशा में कदम उठाए हैं, लेकिन इनकी प्रभावशीलता अभी साबित होनी बाकी है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, और गुजरात जैसे राज्यों में बार-बार होने वाली घटनाएं सिस्टम की कमजोरियों को उजागर करती हैं। प्रकाश मेहरा की काल्पनिक रिपोर्ट इस संकट को ऐतिहासिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में देखने का एक प्रयास हो सकता है, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था वाकई में “शिक्षित भारत, विकसित भारत” के संकल्प को पूरा कर पाएगी?